सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी
आज सामान्य तौर पर माना जाता है कि गाय का दूध 30 रूपए प्रति लीटर होता है और घी 500 रूपए प्रति लीटर। यह गणित कहां से आता है, इसके बारे में कुछ चर्चा करते हैं। पहले हमें परिभाषाएं स्पष्ट कर लेनी चाहिए।
गाय : भारतीय भूभाग पर देसी गौवंश का वह सदस्य है जो मुक्त क्षेत्र में विचरण कर पौष्टिक वनस्पतियों का सेवन करती है और दिन में तीन से छह लीटर दूध देती है। इस गौवंश के इस सदस्य के अलावा किसी भी जानवर के थन से निकाला गया सफेद रंग का स्राव उस दूध के टर्म को क्वालिफाई नहीं करता, जिसे हम पौष्टिक दूध कहते हैं। अगर किसी को ज्यादा साइंटिफिक कीड़ा काट रहा हो तो उसे जान लेना चाहिए कि कुतिया के दूध में सर्वाधिक प्रोटीन होता है और किसी भी पालतू जानवर द्वारा अपने शिशु को थन के जरिए दिया जाने वाला सबसे पौष्टिक आहार होता है, और सफेद रंग का भी होता है। अगर आपको वैज्ञानिक कट्टरवाद का सहारा लेना है तो जेनेटिकली इंजीनियर्ड कुतिया बनाने का प्रयास करें जो दिन में 15 से 20 किलो दूध दे, उससे पोषण प्राप्त करें।
गौ पालन : इसका अर्थ दूध देने वाली गाय का पालन नहीं है। इसका अर्थ होता है गौवंश का पालन। एक बछिया पैदा होने से लेकर निर्वाण प्राप्त करने तक जो भी खाएगी, रहेगी, सेवा सुश्रुषा करवाएगी, उन सभी का खर्च पालन में शामिल माना जाएगा। अपने जीवनकाल के दौरान वह बछिया और बछड़े दोनों देगी, उनका पालन भी गौ पालक के हिस्से रहेगा। चाहे वह इसके लिए गोचर भूमि का इस्तेमाल करे या खुद की अंटी से पैसा लगाकर सेवा करे। ऐसा नहीं है कि 25 हजार में भरी पूरी गाय लेकर आए, जब दुहती रही, दुहते रहे, फिर सड़क पर या जंगल में छोड़ आए। यह गौ पालन नहीं, गाय माता के साथ अत्याचार है। ऐसी गाय का दूध पीने से जो संस्कार बनेंगे, उससे आपके बच्चे जेएनयू छाप बनेंगे। बुढ़ापे में आपके साथ भी वैसा व्यवहार करेंगे, जो गौ पालक ने गाय के साथ किया है। भले ही आप मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं है, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आप खुद इसके बीज बो रहे हैं।
दूध : हर सफेद रंग का द्रव्य दूध नहीं होता। देसी गाय के दूध का एक निश्चित कंपोजिशन होता है, इसके साथ ही चेतना का एक बड़ा अंश साथ में जुड़ा होता है। आप चाहें तो मूढ़मति बनकर आध्यात्मिक पक्ष को नजरअंदाज कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे, बाद में इसके कार्य कारण संबंधों को झेलना आप ही को है, आप खुद को धोखा देंगे, कल समय आपको धोखा देगा। गाय के दूध में जो कंपोजीशन है, वह केवल उसके चिकनाई वाले अंश तक सीमित नहीं है। चिकनाई वाले अंश तक पहुंचने तक गाय के दूध से काफी चीजें ऐसी भी आती हैं, जो केवल गाय के दूध से ही मिलनी संभव है। भैंस या भैंस जैसी जर्सी और होलस्टींन से नहीं। ईमानदारी से गौ का पालन किया जाए तो एक गाय परिवार के पालन में लगने वाले खर्च और गौ पालक का लाभ जोड़कर दूध की कीमत कम से कम 100 रूपए प्रति लीटर पड़ती है। लेकिन दुधारू गाय लेकर लाभ लेना और टली हुई गाय को आवारा छोड़ देना, दूध की कीमत को कम करने में मदद करता है। यह आपका पोषण नहीं गौवंश के साथ धोखाधड़ी है।
घृत या घी : घी निकालने की एकमात्र विधि यह है कि गाय का दूध लिया जाए, भारी बर्तन में धीमी आंच में गर्म किया जाए, ठंडा होने पर जसोदा मैया को याद करते हुए जमावन दिया जाए। जो चक्की की तरह जमा हुआ दही है, उसे तड़के मिट्टी के बर्तन में मथा जाए और बीच बीच में पानी के छींट डालकर अधिक मक्खन निकालने का प्रयास किया जाए और एकत्रित हुए मक्खन को भारी बर्तन में बहुत धीमी आंच से देर तक गर्म करने पर जो ऊपरी सतह पर हल्का पीला, पतला और खुशबूदार पदार्थ आए, उसे घी कहते हैं। यह बिलौना विधि है। इस विधि के अलावा क्रीम से, इमल्सीफिकेशन से, मलाई से और दूसरी किसी भी विधि से निकाले गए घी में फैट तो हो सकती है, घृत नहीं होगा। आपको चिकनाई ही खानी है तो एक बार पैट्रोलियम ग्रीस या सुअर की चर्बी खाकर देखिए, बहुत चिकने होते हैं।
छाछ: बिलौने से घी निकालने पर एक लीटर दूध से सवा लीटर तक छाछ मिल सकती है, यानी एक किलो घी अपने पीछे 30 लीटर छाछ छोड़ता है। जो गौपालक एक माह में 100 लीटर घी बेच रहा है, उसे 3000 लीटर छाछ का भी निस्तारण करना पड़ेगा। पुराने जमाने में गांवों में इसी कारण छाछ आसानी से मिल जाती थी, राजस्थान में पीने को पानी नहीं मिले, छाछ जरूर मिल जाती।
भाव : घी का भाव उपरोक्त विधि से निकालने पर 30 रूपए लीटर दूध के हिसाब से गौपालक का न्यूनतम खर्च जोड़कर 1000 रूपए से कम होने की सूरत में घी में फिलर अथवा दूसरी विधियों के इस्तेमाल की आशंका अधिक है। उसे ना खरीदें। 500 रूपए से 700 रूपए प्रतिलीटर के भाव में आप केवल मूर्ख बन सकते हैं।