महानाश का कोलाहल
जब लड़ेंगे वादी प्रतिवादी क्या पड़ोसी का रक्षण होगा?
है कौन धरा पर जीव यहां, जो महानाश में अक्षुण्ण होगा?
है कौन चिकित्सक ऐसा यहां, जो उस क्षण में सक्षम होगा?
रे बोल परमाणु निर्माता, तेरी गद्दी का क्या होगा?
जब मानव ही मिट जाएगा, तो ऐसी जीत का क्या होगा?
क्या कभी ठंडे दिल से, यह विचार कर देखा?
निकट है काल की रेखा।
नाम ले विकास का, तू खोज रहा तबाहियां।
परमाणु परीक्षणों के कारण, मानवता की उड़ी हवाईयां।
तुम कहते हो टोही उपग्रह, मैं कहता हूं मौत की परछाईयां।
रे सोच जरा गर्वोन्नत मानव, ये तेरे गिरने की खाईयां।
है महानाश का कोलाहल, कोई सुनता नही आवाज को।
रे रोक सको तो रोको कोई, परमाणु युद्घ के बाज को।
उन्मत्त और विक्षिप्त है मानव, कोई तो समझो राज को।
तुम मेरे कानों से सुन लो, प्रलय के इस साज को।
देखो दूर क्षितिज पर देखो, हंसते हुए यमराज को।