सुरेश हिन्दुस्थानी
मध्यप्रदेश में वर्तमान में व्यापमं मामला राजनीति का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है, सत्ताधारी दल भाजपा और कांगे्रस दोनों के लिए यह मामला अपने अपने हिसाब से संजीवनी देने का काम कर रहा है, लेकिन जब सच उजागर होगा, तब शायद कहानी कुछ और ही निकल सकती है, अब इस मामले में किसी भी प्रकार की जल्दबाजी न करते हुए जांच एजेंसियों की जांच की प्रतीक्षा करनी चाहिए। व्यापमंं घोटाले में कांग्रेस ने जिस प्रकार की राजनीति की है, उससे यह तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस को इस मामले की पूरी जानकारी नहीं है, अगर जानकारी है तो इसे कांग्रेस की दबाव बनाने की राजनीति भी निरूपित किया जा सकता है। क्योंकि इस मामले में जो अंदर की बात दिखाई देती है, उसमें कांग्रेस के आसपास भी जांच का घेरा दिखाई देता है, हम जानते हैं कि कांग्रेस के सत्ता काल के समय से यह घोटाला चल रहा है, इसमें कांग्रेस के कई लोग भी शामिल दिखाई देते हैं। खुद दिग्विजय सिंह इसमें शामिल हो सकते हैं, क्योंकि इस मामले में कई प्रकरण उनके शासनकाल के भी हैं। दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल की जांच हो जाये तो संभवत: इस प्रकरण का सच सामने आ जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो यह मामला कांगे्रस के गले की घंटी साबित हो सकता है।
कहावत है कि किसी भी मामले में झूठ को अगर सफाई के साथ बोला जाए तो वह झूठ एक अंतराल के बाद सत्य जैसा प्रदर्शित होने लगता है, व्यापमं घोटाले की कहानी में भी कुछ इसी प्रकार का खेल दिखाई देता है। मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाले का मामला भले ही कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर रहा हो, लेकिन इसके पीछे के जो निहितार्थ हैं, उन पर विचार करना बहुत ही जरूरी है, इसमें एक बात तो तय है कि जिस प्रकार से मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार का संचालन कर रहे हैं, उस कारण दूर दूर तक कांग्रेस की वापसी की संभावनाएं दिखाई नहीं देतीं। हमें यह भी ध्यान रझना होगा कि इस प्रकरण में भाजपा शायद उतनी दोषी नहीं है, जितनी कांग्रेस के टार जुडते दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस की राजनीति हमेशा इसी प्रकार की रही है, जब भी कांग्रेस किसी मामले में फँसती दिखाई देती है, कांग्रेस उस मामले में इतना भ्रम पैदा कर देती है कि उसका सच सामने नहीं आ पाता।
व्यापमं घोटाले में कुछ इसी प्रकार का खेल दिखाई दे रहा है, इसमें सत्यता कितनी है, यह तो जांच के बाद पता चलेगा, लेकिन कांग्रेस ने जिस प्रकार से राजनीतिक दबाव बनाने का खेल खेला है, उससी तो ऐसा ही लगता है कि कांग्रेस को इस खेल के अंदर की वे सभी बातें मालूम हैं, जो भाजपा के किसी नेता को नहीं पता, सवाल यह आता है कि कांग्रेस को इसकी एक एक बात का पता कैसे है। शिवराज सरकार के समय उछला यह मुद्दा वास्तव में किसके शासन की देन है, अंदर की बात यह है कि व्यापमं का यह खेल कांग्रेस के शासन काल में प्रारम्भ हुआ, और वही समूह आगे भी सक्रिय रहा, इसमें कांग्रेस के कई नेता भी जेल के अंदर जा चुके हैं। कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना को कौन नहीं जानता, ये भोपाल से विधानसभा का चुनाव तक लड़ चुके हैं, दिग्विजय के खास समर्थक संजीव सक्सेना आज व्यापमं मामले के आरोप में जेल की हवा खा रहे हैं। व्यापमं घोटाले में जिस प्रकार जांच की मांग की जा रही है, वह जांच तो होनी ही चाहिए, लेकिन इस जांच का दायरा कांग्रेस शासन काल से कर दिया तो शायद का मूल स्वरूप सामने आ जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यापमं घोटाले का खेल दिग्विजय के शासन काल में शुरू हुआ था। सवाल यह है कि कांग्रेस इस घोटाले की जांच उस समय से क्यों नहीं कराना चाहती। कांग्रेस के नेताओं को लग रहा होगा कि इस प्रकार की जांच होने पर हम ही लपेटे में आ जाएँगे।
वर्तमान में मध्यप्रदेश में कांग्रेस पूरी तरह से हासिए पर है, राजनीतिक रूप से कांग्रेस के पास ऐसा कोई कार्यक्रम भी नहीं है, जिसके सहारे वह अपनी स्थिति में सुधार कर सके, इसलिए यह भी हो सकता है कि कांग्रेस अपनी खोई ताकत को प्राप्त करने के लिए इस मुद्दे को हवा दे रही हो, लेकिन कहीं ऐसा न जाये कि ललित मोदी की तरह यह मुद्दा भी कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी साबित हो जाये। और ऐसा हो भी सकता है कि क्योंकि व्यापमं घोटाले में भाजपा की भूमिका क्या है, यह जांच का विषय हो सकता है, लेकिन कांग्रेस भी इस मामले में अछूती नहीं है। इस मामले में जितने वरिष्ठ चिकित्सकों के नाम सामने आए हैं, वे किसी न किसी रूप में कांग्रेस के नेताओं के नजदीक ही माने जाते रहे हैं। इसके अलावा सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह घोटाला कांग्रेस शासन काल की ही देन है, इस मामले में जो अराजनीतिक व्यक्ति आज भाजपा के समीप दिखाई देते हैं, उनमें से अधिकांशत: कांग्रेस के शासनकाल में कांग्रेस के समीप दिखाई देते थे। ऐसे में यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस मामले की अगर शुरू से जांच हो जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
व्यापमं घोटाले की सीबीआई जांच की घोषणा किए जाने पर जितनी ज्यादा भाजपा को खुशी मिली है, उससे ज्यादा कांग्रेस को दुख हुआ है, कारण यह है कि मध्यप्रदेश में कम से कम व्यापमं के मुद्दे पर कांग्रेस अपनी राजनीति करती आई है, अब जांच की घोषणा होने के बाद कांग्रेस के हाथ से यह मुद्दा भी निकल गया। जांच की घोषणा के बाद कांग्रेस ने जिस प्रकार से मौन व्रत धारण किया है उससे तो यही लगता है, कि कांग्रेस गंभीरता से यह नहीं चाहती थी कि इस प्रकरण की जांच हो जाये। कांग्रेसियों को शायद इस बात की भी भनक होगी, कि इस प्रकरण की जांच की परिणति में क्या सामने आयेगा।
वर्तमान में कांग्रेस की सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि अब कांग्रेस को कोई दूसरा मुद्दा तलास करना पड़ेगा। जिसके सहारे वह मध्यप्रदेश में राजनीति कर सके।
कांग्रेस ने व्यापमं मामले में जो आरोप लगाए हैं उनमें कितनी सच्चाई है यह जांच होने के बाद पता चल जाएगा। लेकिन इन आरोपों को एकदम सच भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि मुद्दे को जितनी जोरदार तरीके से उठाया गया, उस जोश के साथ कांग्रेस ने जांच का स्वागत नहीं किया। बस इसी बात से कांगे्रस पर सवालों का पुलिन्दा नजर आता है। हम तो चाहते हैं कि कांगे्रस द्वारा लगाए गए आरोप के लपेटे में कांगे्रस नहीं आए और मध्यप्रदेश में कांगे्रस फिर से राजनीति करने की शक्ति ग्रहण कर अपनी राजनीतिक उपयोगिता प्रमाणित करे।
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