आज बार बार घर वापसी की बात होती है। लव जेहाद की बात होती है। परन्तु असफलता क्यों होती है। इतिहास से जानिए।
पाकिस्तान की कोट लखपत जेल सर्वाधिक कुख्यात है, विशेषकर भारतीय कैदियों के लिए. सातवें और आठवें दशक में वहां कैद रहे भारतीय जासूस मोहनलाल भास्कर ने अपनी अत्यन्त चर्चित एवं रोचक पुस्तक “मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था” में उस कोट लखपत जेल का उल्लेख एक टॉर्चर चैम्बर के रूप में किया है. मोहनलाल भास्कर ने अपनी उस पुस्तक में कोट लखपत जेल में उस समय तैनात रहे राजा गुल अनार खान नाम के एक सब इंस्पेक्टर पर एक पूरा अध्याय लिखा है. अपनी पुस्तक में भास्कर जी ने लिखा है कि कोट लखपत जेल के कैदियों, विशेषकर भारतीय कैदियों के मध्य “गुल अनार खान” की दहशत किसी यमदूत की दहशत की तरह ही थी. उसकी मुख्य ड्यूटी भारतीय जासूसों को यातनाएं देकर उनसे “सच” उगलवाने की थी. इस कारण गुल अनार खान से भास्कर जी का भी सामना हुआ था. कई दौर लम्बी इसी इंटेरोगेशन प्रक्रिया के दौरान भास्कर जी के साथ गुल अनार खान का संवाद कुछ अधिक घनिष्ठ हो गया था. भास्कर जी से उसने बताया था कि वो मूलतः एक चंद्रवंशी राजपूत है. उसके पूर्वज राजस्थान की किसी रियासत के राजा थे और औरंगजेब के अत्याचारों से जान बचाने के लिए गर्भवती पत्नी के साथ रियासत छोड़कर सरगोधा जाकर बस गए थे. वहां भी प्राणों पर आए संकट के कारण उन्हें इस्लाम ग्रहण करना पड़ा था. उन्होंने बाद में हिन्दू धर्म में वापस आने के प्रयास किए तो उन्हें स्वीकारने के बजाय उनका तिरस्कार किया गया. गुल अनार खान ने भास्कर जी से कहा था कि आज भी यहां जितने मुसलमान हैं, लगभग उन सभी के पूर्वज हिन्दू ही थे. उन सबकी कहानी बिल्कुल यही है कि किसी संकट में कुछ समय के लिए दिखावे के लिए ही मुसलमान बने उनके पूर्वजों द्बारा वापसी के प्रयास उनके निकट संबंधियों द्बारा कहीं संपत्ति के लोभ में कहीं अन्य स्वार्थों और धार्मिक कट्टरता के कारण तिरस्कृत हुए, ठुकरा दिए गए. परिणामस्वरूप तब से एक नफरत घृणा उन लोगों में पनपी जिसकी जडें आज बहुत मजबूत हो चुकी हैं. मेरे मन में भी वह नफरत और घृणा भारतीय कैदियों के प्रति है. इसीलिए उनके साथ ज्यादा निर्मम हो जाता हूं.l
1946 में बंगाल की धरती नोआखली के भयानक हत्याकांड से लाल हो गई। हज़ारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा गया। स्त्रियों का सतीत्व लूटा गया और न जाने कितनों को बलात मुसलमान बनाया गया। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी उस समय अखिल भारतीय शुद्धि सभा के प्रधान थे। इस सारी समस्या पर विचार करने के लिए उन्होंने हिन्दू महासभा भवन में एक बैठक बुलाई। सनातन धर्मियों के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी करपात्री जी उपस्थित थे और आर्यसमाज के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी विद्यानन्द जी।
डॉ मुखर्जी ने दो प्रश्न विशेष रूप से प्रस्तुत किये-
- बलात मुसलमान बनाये गये हिन्दुओं को कैसे वापस लाया जाये!
- हिन्दू महासभा के हाथों में शासन की बागडोर जैसे आये!
पहले प्रश्न के उत्तर में स्वामी करपात्री जी ने कहा कि जो फिर से हिन्दू बनना चाहेगा, उसे एक पाव गौ का गोबर खाना होगा। आर्य समाज के प्रतिनिधि स्वामी विद्यानन्द ने कहा कि जो यह कहे कि मैं हिन्दू हूँ, उसे हिन्दू मान लिया जाये। उसके लिए न किसी प्रकार गोबर खाने की आवश्यकता है और न किसी प्रकार के संस्कार की।
डॉ मुखर्जी ने स्वामी विद्यानन्द जी की बात का समर्थन करते हुए आपबीती हुई एक अत्यंत मार्मिक घटना सुनाई। उन्होंने कहा कि जब मैं नोआखली गया तो मुझे एक बुढ़िया मिली। उसने मुझे बताया कि मुझे और मेरी तरह अन्य बहनों को एक प्रकार मुसलमान बनाया कि दो मौलवियों ने पगड़ी का एक-एक छोर पकड़ा और हमें तलवार का भय दिखाकर पगड़ी को हाथ से पकड़ने का आदेश दिया। डर के मारे हमने पगड़ी अपने हाथों में ले ली। मौलवियों ने कलमा पढ़ा और हमें मुसलमान मान लिया गया। परन्तु जिस समय वे कलमा पढ़ रहे थे, उस समय मैं मन ही मन राम-राम कह रही थीं। मुझे बताओ कि वह बुढ़िया मुसलमान कब हुई, जो उसे फिर से हिन्दू बनने के लिए पाव गोबर खाने के लिए कहूं। मैं स्वामी विद्यानन्द जी से पूरी तरह सहमत हूँ।
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