प्रलय का जाल
पूर्वाभ्यास करते देखो, जैगुआर, फैअम और मिराज को।
पहले से ज्यादा खतरा है, आज विश्व समाज को।
मानव कल्याण से कहीं अधिक, संहार पर व्यय अब होता है।
किंतु देख मासूम तेरा, सूखी रोटी को रोता है।
युवती पर लज्जा वसन नही, तू आतुर विध्वंस मचाने को।
प्रलय का जाल बिछाता है, तुझे आएगा कौन बचाने को।
सृजन करना था ध्येय तेरा, अपनाता क्यों विध्वंस को?
रे राज करेगा किस पर तू, जब देगा मिटा निज वंश को?
परमाणु बम से प्यार हुआ, प्रलय को देता निमंत्रण है।
यह विवेक नही विक्षिप्तता है, क्यों स्वयं पर खोता नियंत्रण है?
आराध्य देव यदि स्रष्टï है, क्यों सृष्टिï से नही प्यार?
सृष्टिï संहारक बना रहा, क्यों नित नूतन हथियार ?
खुश करना है आराध्य देव, तो कर सृष्टिï से प्यार।
विध्वंस नही सृजन के हित, कर धरती पर आविष्कार।
परमाणु युद्घ विभीषिका से, सारी सृष्टिï थर्राती है। दुर्वह शस्त्रों के भारों से, धरनी भी खड़ी कराहती है।