आज प्रकाश पर्व पर हमारे प्रधानमंत्री जी की कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा से क्या उन करोड़ो छोटे किसानों के जीवन में भी उजाला होगा, जिनको लाभ पहुंचाने के लिए ये कानून बनाए जाने की आवश्यकता की शासन सहित अनेक विशेषज्ञों व वरिष्ठ स्तंभकारो ने बार-बार प्रशंसा की थी ?
लेकिन यह दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था में वोटों की राजनीति अनेक निर्णयों पर राष्ट्रीय नीतियों को इसी प्रकार प्रभावित करती रहेगी तो यह अन्यायकारी और विनाशकारी भी हो सकता है l
ऐसे में अगर भारत विरोधी शक्तियां, आतंकवादी, अलगाववादी और अन्य आन्दोलनजीवी भी एकजुट उत्साहित होकर भीड़ तंत्र का धनबल और बाहुबल के आधार पर अनुचित लाभ उठाएंगे तो देश की सम्प्रभुता और अखंडता के समक्ष एक बड़ा संकट खड़ा होगा तो उसका उत्तरदायित्व किसका होगा ?
लोकतंत्र के प्रहरियों को ऐसे राष्ट्रघाती तत्वों के प्रहारों से सुरक्षित रहने के आवश्यक उपाय ढूँढने ही होंगे l ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में चुनाव प्रणाली में आवश्यक सुधार के साथ-साथ मताधिकार के लिए कोई न्युनतम योग्यता का निर्धारण किए जाने की आज गहन आवश्यकता है l
माननीय मोदी जी ने अपने सभी सांसदों, विधायकों, महापौरों, पार्षदों , ग्राम प्रधानों, पार्टी के अधिकारियों एवं सदस्यों से बार – बार विनती की थी कि अपने-अपने क्षेत्रों के गांव-गांव में जाकर किसानों को कृषि कानूनों के लाभों को समझाओ, लेकिन भोगवादी राजनीतिक संस्कृति इतनी अधिक प्रभावी हो चुकी है कि “मोदी जी के नाम पर सत्ता का सुख भोगने वाले अधिकांश नेताओं की प्राथमिकता विभिन्न योजनाओं में कितना लेन-देन होगा पर गिद्ध जैसी दृष्टि बनी होने के कारण प्राय: अधिकांश ने कृषि कानूनों के लाभों का प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता को नहीं समझा l
लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अलगाववाद जब चरम पर हो तो राष्ट्र के प्रति समर्पण और त्याग की भावना वाले “मोदी और योगी ” जैसे नेताओं को स्वार्थी तत्वों और चाटुकारों आदि से सावधान रहना ही होगा अन्यथा लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रहार होता ही रहेगा l
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)
गाजियाबाद