पिछले लगभग एक वर्ष से चल रहा तथाकथित किसान आंदोलन सभी राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय बना हुआ था। इसका कारण केवल एक था कि इस आंदोलन के सूत्रधारों ने इसका चेहरा तो राकेश टिकैत को बना लिया परंतु इसकी योजना संभवत: टिकैत को भी मालूम नहीं होगी कि वास्तव में इस आंदोलन के पीछे इसके सूत्रधारों का वास्तविक उद्देश्य क्या था ? टिकैत मोहरा बनकर राजनीति करने के लिए बैठ गए। उनके साथ जिस प्रकार देश को तोड़ने वाली शक्तियों ने आकर समर्थन देना आरंभ किया , उससे यह स्पष्ट हो गया था कि यह आंदोलन फर्जी किसानों का आंदोलन है।
इस आंदोलन को देश से हजारों किलोमीटर दूर बैठे खालिस्तान समर्थक और भारत विरोधी लोग अपना सहयोग, समर्थन व संरक्षण दे रहे थे। जिसकी जितनी भी फंडिंग हो रही थी वह भी विदेशों में बैठे इन्हीं लोगों के द्वारा हो रही थी। इस सबकी सूचनाएं निश्चित रूप से सरकार के पास भी रही हैं। जिससे केंद्र सरकार इन तथाकथित फर्जी किसानों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कठोर कार्यवाही करने से बच रही थी । वास्तव में सरकार की स्थिति इस फर्जी किसान आंदोलन से निपटने समय छुरी और खरबूजे वाली हो रही थी। अपने ही लोगों पर किसी भी प्रकार की निर्ममता का प्रदर्शन करना सरकार के लिए गले की फांस बन चुका था । निश्चित रूप से टिकैत के समर्थन में जितने भी किसान इस आंदोलन में आ रहे थे वह पूर्णतया निर्दोष और वस्तुस्थिति से पूर्णतया अपरिचित रहे। उन्हें पता नहीं था कि सच क्या है ? परंतु वह बहक अवश्य गए थे। सरकार किसानों को (आंदोलनजीवियों को नहीं) समझाने में सचमुच असफल रही । जबकि टिकैत उन्हें भ्रमित करने में सफल हो चुके थे। यदि यह भ्रमित लोग पुलिस की लाठी खाते या कहीं गोली खाते तो सचमुच यह लोकतंत्र के लिए पूर्णतया गलत होता। जहां सरकार अपने पवित्र उद्देश्य को भी स्पष्ट करने में असफल रही हो और इसके उपरांत भी देश की परिस्थितियां नाजुक बनती जा रही हों, वहां सरकार को पीछे हटने में संकोच नहीं करना चाहिए। निश्चित रूप से ऐसी स्थिति को समझकर प्रधानमंत्री ने विशालहृदयता का परिचय दिया है। वह निश्चित रूप से किसानों के भले में ही इन कानूनों को लाए थे, परंतु जब किसानों को समझाने में असफल रहे तो उन्होंने पीछे हटना उचित माना।
यह तथाकथित फर्जी किसान कानून व्यवस्था को अपने हाथों में लेकर किसी भी सीमा तक जाने को तैयार थे। टिकैत पूर्णतया आतंकवादियों के हाथों की कठपुतली बन चुके थे। इसके अतिरिक्त विदेशों में रहने वाले अलगाववादी नेता भी उनके निरंतर संपर्क में थे । जो उनकी छोटी सी भी गतिविधि को देश विरोधी गतिविधियों में परिवर्तित करने की योजनाओं पर काम कर रहे थे। सरकार को इस बात की पूरी सूचना थी कि खेल किधर से किधर जाने वाला है? यदि परिस्थितियां विपरीत होतीं और देश में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती तो उसका पूरा लाभ विपक्ष लेने के लिए तैयार बैठा था । इतना ही नहीं, कानून व्यवस्था की स्थिति को बड़ी मुश्किल से केंद्र की मोदी सरकार पटरी पर लाई है उसे सांप्रदायिक दंगों या किसी भी प्रकार की विषमताओं के माध्यम से फिर से बद से बदतर करने के लिए विपक्ष घात लगाए बैठा था। जिसे मोदी समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने अपने एक तीर से कई निशाने साधे हैं । जहां उन्होंने किसानों को तथाकथित नेताओं को शांत कर दिया है , वहीं विपक्ष के नेताओं को भी मुद्दाविहीन कर दिया है।
प्रधानमंत्री के आलोचक कह रहे हैं कि उन्होंने यह कदम पांच प्रांतों में होने वाले चुनावों के दृष्टिगत उठाया है। यदि प्रधानमंत्री ने ऐसा भी किया है तो भी राजनीति में ऐसा करके उन्होंने कोई पाप नहीं किया है। प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता (जिसमें सत्ता पक्ष का राजनीतिक दल और उसका नेता भी सम्मिलित है) को परिस्थितियों का राजनीतिक लाभ उठाने का लोकतंत्र में अधिकार है।
इस समय हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि देश का पूरा विपक्ष देश विरोधी शक्तियों के हाथों में खेल रहा है। वह मोदी को हटाते हटाते ‘देश को हटाने’ तक की स्थिति को भी अपनी स्वीकार्यता देता जा रहा है ।अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल में संपन्न हुए चुनावों में हमने देखा कि वहां पर किस प्रकार हिंदुओं के साथ अत्याचार किए गए ? जिस पर पूरा विपक्ष मौन साध कर बैठ गया। उसे वहां पर हिंदू मरते हुए दिखाई नहीं दे रहे थे बल्कि उन्हें वे नरेंद्र मोदी के समर्थक मरते हुए दिखाई दे रहे थे और यदि ऐसा हो रहा था तो उनकी नजरों में वह सब ठीक था।
जहां का विपक्ष अपना धर्म भूल कर भ्रष्ट हो चुका हो और निकृष्ट आचरण में उतर गया हो वहां पर यह भी अपेक्षा की जा सकती है कि वह तथाकथित फर्जी किसानों के साथ भी खड़ा होकर कुछ भी कर सकता था। जब तथाकथित फर्जी किसान दिल्ली की सड़कों पर नंगा नाच कर रहे थे तब भी विपक्ष उनके साथ खड़ा हुआ दिखाई दे रहा था। माना कि लोकतंत्र में अपना विरोध प्रदर्शित करने का सभी को अधिकार है, परंतु विरोध की भी अपनी सीमाएं हैं। विरोध को कभी भी नंगा नाच करने के लिए खुला नहीं छोड़ा जा सकता। विपक्ष ने तथाकथित फर्जी किसानों के उस नंगे नाच को अपना समर्थन देकर यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वह मोदी विरोध में जाते-जाते राष्ट्र विरोधी तक जाने को भी तैयार है। ऐसे में यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि कनाडा, अमेरिका और दूसरे भारत विरोधी देशों के खालिस्तानी देश में किसी भी प्रकार की आग लगाते तो उस आग में भी हमारे देश का विपक्ष हाथ सेंकने का काम कर रहा होता। ऐसी परिस्थितियों में तो प्रधानमंत्री ने जो कुछ भी किया है वह उचित किया है।
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा का समय भी बहुत ही उचित चुना। पूरा देश और पंजाब विशेष रूप से जब गुरु पर्व मना रहा था तब उन्होंने गुरु पर्व की शुभकामनाएं कृषि कानूनों को वापस लेने के द्वारा देकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया । प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया कि ‘सरकार ने नाराज किसानों को समझाने का हरसंभव प्रयास किया। कई मंचों से उनसे बातचीत हुई, लेकिन वो नहीं माने। इसलिए, अब तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला किया गया है।’
कांग्रेस ने कहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने से ‘अभिमान हारा है और किसान जीता है ।’ वास्तव में कांग्रेस का इस प्रकार का बयान उसकी राजनीतिक हताशा को ही इंगित करता है । क्योंकि कांग्रेस इस समय मुद्दा विहीन है। और जैसे तैसे ले देकर उसे जो एक मुद्दा मिला था वह भी उसके हाथ से छिन गया है । इसलिए उसने अपनी हताशा में ऐसा कहा है। जबकि प्रधानमंत्री ने इस प्रकार की घोषणा करते समय जिस विनम्रता का प्रदर्शन किया, उससे किसानों और अन्य देशवासियों का उनके प्रति सम्मान का भाव और भी अधिक बढा है ।
देशवासियों से माफी मांग मांग कर प्रधानमंत्री ने इन तीनों कृषि कारणों को वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा, ‘साथियों, मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए, सच्चे मन से और पवित्र हृदय से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गई होगी। जिसके कारण दिए के प्रकाश जैसा सत्य, कुछ किसान भाइयों को हम समझा नहीं पाए।’ पीएम ने कहा कि चूंकि सरकार हर प्रयास के बावजूद किसानों को समझा नहीं पाई, इसलिए कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लिया गया है। पीएम ने कहा कि इसकी प्रक्रिया भी इसी संसद सत्र में पूरी कर दी जाएगी।
वास्तव में केंद्र की मोदी सरकार किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए ही तीन कृषि कानूनों को लाई थी। जिसका उद्देश्य किसानों की स्थिति को सुधारने के साथ-साथ उन्हें और भी अधिक शक्ति संपन्न बनाना था।
आज जब कृषि कानूनों को वापस ले लिया गया है तो आलोचना का एक दूसरा पक्ष भी है और उसे भी इस अवसर पर स्पष्ट किया जाना या उल्लिखित किया जाना आवश्यक है। प्रधानमंत्री मोदी के विषय में भाजपा कहती रही है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है।’ ’56 इंची सीने’ की बातें भी की जाती रही हैं और मोदी सरकार के अपने निर्णय पर अटल रहने की एक मजबूत सरकार की छवि बनाने का प्रयास भी भाजपा की ओर से किया जाता रहा है। परंतु अब जिस प्रकार केंद्र की मोदी सरकार ने अपने लिए गए जनहितकारी निर्णय को वापस लिया है उससे उसकी कैसी छवि बनेगी ? – भाजपा को इसका भी जवाब देना होगा। अब प्रश्न में से प्रश्न पैदा हो रहे हैं और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि केंद्र की मोदी सरकार यदि धारा 370 को हटाने में सफल रही है तो क्या अब ऐसी संभावना नहीं बनेंगी कि पुनः उस धारा को स्थापित कराने के लिए भी एक आंदोलन खड़ा हो। जो साल भर नहीं बल्कि 2 साल चले और केंद्र की मोदी सरकार फिर यही कहे कि हम ‘भटके हुए नौजवानों को’ सही समय पर समझाने में असफल रहे, इसलिए धारा 370 को भी फिर से स्थापित किया जाता है?
तब क्या भाजपा इसको भी ‘मोदी है तो मुमकिन है’ – ही कहेगी। ‘निर्णय लो और लौट जाओ’ इसे उचित नहीं कहा जा सकता । आज तक कृषि कानूनों के पक्ष में जितने लोग केंद्र की मोदी सरकार के साथ खड़े हुए थे, उन्हें दूसरे लोग अब बोलने नहीं देंगे। उनके लिए मोदी सरकार ने कैसी स्थिति पैदा कर दी है? इसे केवल वही जानते हैं।
ऐसी परिस्थितियों में केंद्र की मोदी सरकार से हमारा विनम्र अनुरोध है कि वह सोच समझकर निर्णय ले और यदि निर्णय एक बार ले लिए जाए तो उसे पूरी तत्परता और ईमानदारी से लागू कराने के प्रति अपना संकल्प व्यक्त करें। वोटों की राजनीति के लिए काम करते हुए तो अब से पहली भी कई सरकारों को देश देख चुका है । लेकिन मोदी जी से अपेक्षा है कि वह निहित स्वार्थों की अथवा वोटों की राजनीति से ऊपर उठकर देश को प्रथम मानते हुए निर्णय लें । यद्यपि उन्होंने जो कुछ भी इस समय किया है वह भी देश को प्रथम मानते हुए किया है, परंतु यह भी नहीं कह सकते कि इसमें वह पूर्णतया ईमानदारी दिखा रहे हैं । जब 5 प्रांतों के चुनाव सामने हैं तब यह निर्णय लेना निश्चित रूप से उनकी वोटों की राजनीति की सोच को प्रकट करता है।
इस सबके उपरांत भी हम प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय का स्वागत करते हैं। जिससे उन्होंने देश को इस समय अनावश्यक विवादों और फसादों से बचाने के लिए विनम्रतापूर्ण एक अच्छा निर्णय लिया है । परंतु भविष्य में वह इसकी पुनरावृत्ति ना करें, ऐसी अपेक्षा भी हम उनसे करते हैं।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत