गाँधी चाहते थे भगत सिंह की फाँसी, नेताजी को नहीं किया सपोर्ट’: कंगना का ‘बापू’ पर बड़ा हमला

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दूसरा गाल आगे करने से भीख मिलती है, आज़ादी नहीं’,

फोटो साभार: फेसबुक/Gettyमहात्मा गाँधी के जिस अधखुले इतिहास से कंगना रनौत द्वारा धूल हटाने से गाँधी के अंधभक्तों के पेट में मरोड़ होनी स्वाभाविक है। ये वही महात्मा गाँधी है, जो देश में तुष्टिकरण का जनक है। कंगना को अपमानित करने से पूर्व गाँधी अंधभक्तों को सच्चाई से परहेज नहीं करना चाहिए। 

जब ऊधम सिंह ने ब्रिटेन जाकर जलिआंवाला बाग़ के हत्यारे को मारा जाने पर शहीद ऊधम सिंह के विरुद्ध किन अपशब्दों का प्रयोग किया था, क्या महात्मा गाँधी को शोभा देता था? फिर किस हैसियत से महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार के साथ नेताजी को सौंपने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे? इन गाँधी के अंधभक्तों के कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही नहीं, कई क्रांतिकारी गुमनाम हो गए। 

बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने ‘1947 में भीख में आज़ादी’ वाले अपने बयान का फिर से बचाव किया है। उन्होंने एक पुरानी खबर शेयर की, जिसमें लिखा है कि किस तरह महात्मा गाँधी इस बात को लेकर राज़ी हो गए थे कि अगर सुभाष चंद्र बोस मिलते हैं तो उन्हें अंग्रेजों को सौंप दिया जाएगा। कंगना रनौत ने लिखा, “जिन्होंने सच में आज़ादी की लड़ाई लड़ी, उन्हें उन लोगों ने अपने मालिकों को सौंप दिया, जिनके खून में वो साहस, गर्मी और आग नहीं ही कि वो स्वतंत्रता के लिए लड़ सकें।”

दूसरे, जब गाँधी ने ये कहा था कि “पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा”, फिर क्यों उनके जीते-जी भारत का विभाजन हुआ? तीसरे, चंडीगढ़ से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक के फरवरी 12, 2006 को प्रकाशित निम्न पृष्ठ को देखिए, और निर्णय करो कि भारत को आज़ादी दिलाने में नेताजी का कितना बड़ा योगदान था। महात्मा गाँधी कहाँ से आ गए?

‘थलाईवी’ की अभिनेत्री ने लिखा कि भारतीयों पर अत्याचार करने वालों के विरुद्ध लड़ने का साहस न रखने वाले कुछ नेता सत्ता के भूखे थे, धूर्त थे। उन्होंने लिखा कि ऐसे ही लोगों ने हमें सिखाया कि अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो, ऐसे ही आज़ादी मिलेगी। कंगना रनौत ने लिखा कि आज़ादी ऐसे नहीं मिलती है, बल्कि इस तरह से सिर्फ भीख ही मिल सकती है। साथ ही उन्होंने लोगों को अपने नायकों को अच्छे से चुनने की सलाह दी।

कंगना रनौत ने दावा किया कि महात्मा गाँधी ने कभी भी भगत सिंह या नेताजी सुभाष चंद्र बोस का समर्थन नहीं किया। उन्होंने दावा किया कि ऐसे सबूत मौजूद हैं, जो बताते हैं कि महात्मा गाँधी चाहते थे कि भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ाया जाए। उन्होंने लोगों से कहा कि आपको चुनने की ज़रूरत है कि आप किसे अपना नायक मानते हैं, किसका समर्थन करते हैं। कंगना रनौत ने लिखा कि इन सभी को अपनी याद में एक साथ रखना और हर साल उनकी जयंती पर याद करना पर्याप्त नहीं है।

                                                 इंस्टाग्राम पर कंगना रनौत की ‘स्टोरी’

कंगना रनौत ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी में लिखा, “उन सभी को एक साथ अपनी यादों में रखना और हर साल जयंती पर याद करना केवल बेवकूफाना ही नहीं है, बल्कि गैर-जिम्मेदाराना और सतही भी है। लोगों को न सिर्फ अपना इतिहास पता होना चाहिए, बल्कि अपने नायकों के बारे में भी ज्ञान होना चाहिए।” बता दें कि ‘टाइम्स नाउ’ के एक शो में ‘1947 में भीख में आज़ादी मिली’ वाले उनके बयान का लिबरल और सेक्युलर गिरोह विरोध कर रहा है। कंगना ने कहा था कि हमें वास्तविक आज़ादी 2014 में मिली।

                                 कंगना ने लोगों को दी सोच-समझ कर अपना नायक चुनने की सलाह

बता दें कि मराठी और हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता विक्रम गोखले ने अभिनेत्री कंगना रनौत के ‘भीख में आजादी’ वाले बयान का समर्थन किया था। उन्होंने कहा था कि कंगना रनौत ने जो कहा वह उससे सहमत हैं। मराठी थिएटर और सिनेमा के सबसे बेहतरीन कलाकारों में से एक माने जाने वाले विक्रम गोखले ने कहा था कि भारत को कभी भी ‘हरा’ नहीं होना चाहिए और इसे ‘भगवा’ बनाए रखने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा था, “बहुत से स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें फाँसी दी गई थी, बड़े-बड़े लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की। वे मूकदर्शक बने रहे।”

गांधी जी और आचार्य चतुरसेन

गांधी जी और आचार्य चतुरसेन

‘बापू, यह हैं आचार्य चतुरसेन, महान इतिहासकार और लेखक,’ 

जमनालाल बजाज ने महात्मा गांधी से चतुरसेन का परिचय कराते हुए आगे कहा, ‘आपने कहा था ना नवजीवन के लिए संपादक चाहिए, यह सबसे योग्य पात्र हैं, इन्हें दे दीजिए यह कार्यभार।’

‘नमस्ते बापू’ आचार्य चतुरसेन ने गांधी जी का अभिवादन किया

‘नमस्ते शब्द में वेदों की बू आती है, यह ठीक नहीं है।’ गांधी जी बोले।

‘जी,’ आचार्य चतुरसेन आगे बोले, ‘तो फिर राम—राम बापू।’

‘देखे राम—राम बोलना हिन्दू—मुस्लिम एकता के लिए सही नहीं है।’ गांधी जी ने फिर कहा।

‘वंदेमातरम बापू।’ आचार्य जी ने पुन: अभिवादन किया।

‘नहीं वंदेमातरम् भी सही नहीं है, इसमें बुतपरस्ती की बू आती है। हमें आजादी चाहिए तो ऐसी भाषा का प्रयोग करना होगा, जिससे मुस्लिमों को ठेस न पहुंचे।’

‘जय बापू।’

‘हूं,’ गांधी जी फिर आगे बोले, ‘हम तुम्हें नवजीवन का संपादक बनाते हैं, एक हजार वेतन मिलेगा। सबकुछ तुम्हें ही करना होगा। मेरे नाम से लेख लिखने होंगे, न्यूज छापनी होंगी, मेरे भाषण लिखकर देने होंगे। और हां संपादक में मेरा नाम जाएगा, तुम किसी से यह नहीं कहोगे कि यह सब तुम करते हो।’

‘बापू मैं सबकुछ करने को तैयार हूं, लेकिन संपादक में मेरा नाम जाना चाहिए, आपका नहीं।’

‘नहीं यह नहीं हो सकता।’ गांधी जी ने विरोध किया।

‘तो फिर यह आचार्य चतुरसेन भी ऐसे स्वार्थी और तुष्टिकरण करने वाले को जीवन में कभी बापू नहीं कहेगा और तुम्हारे दर्शन आज के बाद नहीं करेगा।’ कहकर आचार्य चतुरसेन चले गए।

आचार्य चतुरसेन ने जीवन में फिर कभी गांधी के दर्शन नहीं किए।

आचार्य चतुरसेन की आत्मकथा का एक अंश

प्रस्तुति : मधु धामा

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