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धर्म-अध्यात्म

दुर्योधन , अर्जुन और नई भगवद गीता

ब्रजकिशोर

मित्रों, एक बार एक पिता जी अपने महाधर्मनिरपेक्ष बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का उदाहरण दे रहे थे।बेटा! संघर्ष को जहाँ तक हो सके, रोकना चाहिए। महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में यह प्रस्ताव लेकर कि हम युद्ध नहीं चाहते. तुम पूरा राज्य रखो पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे बेटे ने पूछा पर इतना अव्यवहारिक प्रस्ताव लेकर कृष्ण गए ही क्यों थे? अगर दुर्योधन प्रस्ताव को मान लेता तो?

मित्रों, पिता ने कहा कि नहीं मानता और हरगिज नहीं मानता कृष्ण को पता था कि वह प्रस्ताव स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि यह उसके मूल चरित्र के विरुद्ध होता बेटे की उत्सुकता बढती जा रही थी उसने पूछा फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे? पिता ने बताया वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना धूर्त, कितना अन्यायी था। वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे कि देख लो बेटा युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा हर हाल में अब भी कोई शंका है तो निकाल दो मन से तुम कितना भी संतोषी हो जाओ कितना भी चाहो कि घर में चैन से बैठूँ। दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही लड़ना या न लड़ना तुम्हारा विकल्प नहीं है बेटा फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही सब अपने ही तो बंधु बांधव हैं।
मित्रों, फिर पिताजी ने आगे बताया कि कृष्ण ने अठारह अध्याय तक फंडा दिया। फिर भी शंका थी ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है ना! दुर्योधन को कभी शंका नहीं थी।उसे हमेशा पता था कि उसे युद्ध करना ही है. उसने गणित लगा रखा था।
मित्रों, यह तो आपलोग समझ ही गए होंगे कि इस कथा के दोनों पात्र बाप-बेटे हिन्दू थे क्योंकि धर्मनिरपेक्ष सिर्फ हिन्दू होते हैं। दूसरे मजहब वाले तो सिर्फ शर्मनिरपेक्ष होते हैं। पिताजी ने आगे बेटे को समझाया कि बेटे हम हिन्दुओं को भी समझ लेना होगा कि संघर्ष होगा या नहीं, यह विकल्प आपके पास नहीं है। आपने तो पाँच गाँव का प्रस्ताव भी देकर देख लिया। देश के दो टुकड़े मंजूर कर लिए उसमें भी हिंदू ही खदेड़ा गया अपनी जमीन जायदाद ज्यों की त्यों छोड़कर फिर हर बात पर विशेषाधिकार देकर भी देख लिया।हज के लिए सब्सिडी देकर देख ली, उनके लिए अलग नियम कानून (धारा 370) बनवा कर देख लिए, अलग पर्सनल लॉ देकर भी देख लिया. आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी गौमाता का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है। इसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है।उन्हें सबसे प्यारी वही मस्जिदें हैं, जो हजारों साल पुराने आपके ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं। उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है जो मंदिरों की घंटियों और पूजा-पंडालों से आती हैं।ये माँगें गाय को काटने तक नहीं रुकेंगी यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली. धीरे-धीरे यह हमारे घर तक आने वाली है।हमारी बहू-बेटियों तक आने वाली है। अब का नया तर्क है कि तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है ? हम तो काट कर खाएँगे। हमारे मजहब में लिखा है. कल कहेंगे कि तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह अपना खूबसूरत चेहरा ढके बिना घर से निकलती ही क्यों है? हम तो उठा कर ले जाएँगे।
मित्रों, अनुभवी पिता ने अनुभवहीन पुत्र से कहा कि उन्हें समस्या गाय से नहीं है, हमारे अस्तित्व से है। तुम जब तक हो उन्हें तुमसे कुछ ना कुछ समस्या रहेगी। इसलिए हे अर्जुन!! और कोई शंका मत पालो. कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते। 25 साल पहले कश्मीरी हिन्दुओं का सब कुछ छिन गया। वे शरणार्थी कैंपों में रहे पर फिर भी वे आतंकवादी नहीं बने। जबकि कश्मीरी मुस्लिमों को सब कुछ दिया गया वे फिर भी आतंकवादी बन कर जन्नत को जहन्नुम बना रहे हैं। पिछले सालों की बाढ़ में सेना के जवानों ने जिनकी जानें बचाई वो उन्हीं जवानों को पत्थरों से कुचल डालने पर आमादा हैं।पुत्र इसे ही कहते हैं संस्कार ये अंतर है धर्म और मजहब में एक जमाना था जब लोग मामूली चोर के जनाजे में शामिल होना भी शर्मिंदगी समझते थे।और एक ये गद्दार और देशद्रोही लोग हैं जो खुलेआम पूरी बेशर्मी से एक आतंकवादी के जनाजे में शामिल होते हैं। सन्देश साफ़ है कि एक कौम देश और दुनिया की तमाम दूसरी कौमों के खिलाफ युद्ध छेड़ चुकी है। अब भी अगर आपको नहीं दिखता है तो यकीनन आप अंधे हैं या फिर शत-प्रतिशत देशद्रोही।आज तक हिंदुओं ने किसी को हज पर जाने से नहीं रोका। लेकिन हमारी अमरनाथ यात्रा हर साल बाधित होती है। फिर भी हम ही असहिष्णु हैं!? ये तो कमाल की धर्मनिरपेक्षता है! इसलिए हे अर्जुन, संगठित होओ, सावधान रहो तभी जीवित और सुरक्षित रहोगे।

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