नेहरू की बदमाशी का एक नमूना…
“विभाजन के बाद 1947 में पाकिस्तान में हिंदुओं की हत्याओं, लड़कियों से बलात्कार का नंगा नाच हो रहा था। लाहौर से हर ट्रैन में हिंदुओं की लाशें आ रही थी और उन पर मंडराते कुत्ते, गिद्ध दिखाई दे रहे थे, तब नेहरू ने रेडियो पर शरणार्थी शिविरों में रह रहे हिंदुओं से धैर्य और शांति बनाये रखने की अपील की। यह अपील दिल्ली, अमृतसर, लुधियाना, जलंधर आदि सभी शरणार्थी शिविरों में सुनी गई।
दूसरे दिन नेहरू इंदिरा को साथ लेकर एक शिविर में गया। वहां नेहरू तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश में एक 80 वर्षीय वृद्ध ने इंदिरा को स्पर्श कर दिया। यह देखकर नेहरू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और तुरंत ही उसने उस वृद्ध के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया। वह वृद्ध सज्जन लाहौर का एक प्रसिद्ध व्यापारी था, जो आज वक़्त की मार के कारण बेबस अकिंचन था।
तमाचा खा कर वो जोर से हंसा और नेहरू के मुंह पर बोला, ‘इंदिरा मेरी पोती समान है, क्योंकि आप खुद मेरे बेटे की उम्र के हो। आपका ध्यान आकर्षित करने के प्रयास में आपकी पुत्री से मेरा हाथ लग जाने भर से आप क्रोधित हो गए और मुझे तमाचा जड़ दिया और रेडियो पर हमें गुस्से पर नियंत्रण रखकर शांत रहने की सलाह देते हो! आपको पता है मेरी तीन जवान पोतियों को मुसलमान मेरे सामने उठा ले गए, फिर भी आप कहते हैं मैं धैर्य और शांति बनाये रखुं?’
ये शब्द सुनकर नेहरू दो टांगो के बीच दूम दबाकर एक कुत्ते की तरह वहां से इंदिरा को साथ लेकर खिसक गया।”
(स्रोत: श्री अश्व घोष की पुस्तक “The Koran and The Kafir” का एक अंश, अनुवाद: राजेश आर्य)