अपनी पुस्तक पर चल रहे विवाद के बीच कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद बोले – हिंदुओं पर राज करना मुसलमानों का अधिकार
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की एक किताब आई है। नाम है: सनराइज ओवर अयोध्या (Sunrise Over Ayodhya: Nationhood in Our Times)। इस किताब में उन्होंने हिंदुत्व को बोको हरम और ISIS जैसा बताया है। इससे उनकी अपनी पार्टी के भी कुछ लोग सहमत नहीं हैं। पर अपने साथी नेताओं की इस असहमति को उन्होंने बड़ी ढिठाई के साथ अनदेखा कर दिया। वहीं उनकी पार्टी ने हमेशा की तरह खुद को उनके इस बयान से दूर कर लिया है।
इसमें कुछ भी नया नहीं। ऐसा करना वर्षों से कांग्रेस पार्टी का सामान्य व्यवहार, या कहें तो एक तरह का राजनीतिक दर्शन सा रहा है। पार्टी भाजपा के एक कार्यकर्ता के दूर के रिश्तेदार के भी आचरण और बयान को दल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जोड़ने में समय नहीं लगाती। लेकिन अपने पदाधिकारियों, मंत्रियों और नेताओं के बयानों और राजनीतिक आचरण से खुद को बड़ी आसानी से अलग कर लेती है।
खुर्शीद ने बड़ी सरलता और ढिठाई से सार्वजनिक मंचों और मीडिया में हिंदुत्व के अपने मूल्यांकन का बचाव किया और लगातार करते जा रहे हैं। वैसे हिंदुओं के प्रति उनकी यह सोच नई नहीं है। अपनी एक अन्य किताब ‘एट होम इन इंडिया (At Home in India)’ में उन्होंने 1984 के सिख नरसंहार पर जो उद्धगार व्यक्त किए हैं, वह किसी से छिपा नहीं है।
बाटला हाउस मुठभेड़ में आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति भी उनकी इसी राजनीतिक सोच का नतीजा है। वे केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित इस्लामी संगठन सिमी के लिए सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ चुके हैं और कश्मीर के हिंदुओं के विरुद्ध घाटी में हुई हिंसा और नरसंहार पर भी वे अपने विचार सार्वजनिक मंचों पर समय-समय पर व्यक्त करते रहे हैं।
प्रश्न यह है कि विदेशों से शिक्षा प्राप्त और मॉडर्न मुस्लिम की छवि वाले खुर्शीद के मन में हिंदुओं के प्रति ऐसी घृणा क्यों है? विदेशी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त और आधुनिक दुनिया और सभ्यता को समझने का दावा करने वाला भारत सरकार का एक पूर्व मंत्री ऐसा क्यों और कैसे हो सकता है? हिंदुत्व के प्रति उसकी ऐसी सोच के पीछे कौन सी मानसिकता काम करती है?
ऐसा क्यों है कि खुर्शीद को कभी इस्लाम में व्याप्त बुराइयों के विरोध में बोलते हुए नहीं सुना जाता? उनके मुँह से यह क्यों नहीं सुनाई देता कि आधुनिक विश्व के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिम समाज को अपने अंदर सुधार लाने की आवश्यकता है? इसके पीछे क्या यह कारण है कि खुर्शीद खुद को एक शासक के तौर पर देखते हैं या फिर वे इस धारणा के पोषकों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो यह मानते हैं कि मुसलमानों ने हिंदुओं पर राज किया है और उन्हें फिर से वही करना चाहिए?
इस समय जब खुर्शीद की किताब भारतवर्ष के बहुसंख्यक हिंदू समाज को इस्लामी आतंकी संगठनों के साथ खड़ा करने के लिए चर्चा में है, ठीक उसी समय एक और मुस्लिम लेखक वसीम रिज़वी द्वारा लिखी गई किताब भी चर्चा में है। किताब में वर्णित विषय इस्लाम और मुस्लिम समाज में सुधार की गुंजाइश की बात और एक संभावना की तलाश करता है।
विडंबना यह है कि इसके कारण रिज़वी को तरह-तरह की धमकियाँ मिल रही हैं। हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि रिज़वी को अपनी जान खतरे में लगती है। इससे क्या यह समझा जाय कि पढ़े-लिखे और खुद के लिए मॉडर्न और मॉडरेट मुस्लिम जैसा विशेषण सुनने के आदी खुर्शीद ने अपने लिए आसान रास्ता चुना है कि उन्होंने अपने समाज में किसी सुधार की संभावना को न देखने का मन इसलिए बनाया है कि इसमें खतरा है?
कुछ लोगों ने 15 नवंबर 2021 को खुर्शीद के हिंदुत्व पर दिए गए बयान के विरोध में उनका पुतला जलाया। उनके नैनीताल निवास पर हमला किया। मकान के एक हिस्से में तोड़-फोड़ की और आग लगाने की कोशिश भी की। अब इस घटना को आगे रख कर खुर्शीद हिंदुत्व के प्रति अपने विचार को सही ठहराने का प्रयास कर रहे हैं।
पर अपनी सोच के बचाव की इस प्रक्रिया में वे जिस बात को हजम कर गए वो यह है कि इस घटना के बाद स्थानीय प्रशासन ने न केवल FIR दर्ज किया, बल्कि हमलावरों की पहचान कर इस अपराध के लिए समुचित कार्रवाई की शुरुआत भी कर ली। यह लोकतांत्रिक प्रशासन द्वारा उठाया गया ऐसा कदम या ऐसी सुविधा है जो किसी बोको हरम वाले या इस्लामिक स्टेट में किसी हिंदू के लिए उपलब्ध नहीं होगा। फिर भी आने वाले समय में खुर्शीद अपने घर पर हुए इस हमले को आगे रखकर बार-बार बड़ी बेशर्मी से हिंदुत्व को असहिष्णु बताते जाएँगे।
सलमान खुर्शीद द्वारा हिंदुत्व को इस्लामी आतंकी संगठनों के समकक्ष खड़ा करने का कारण चाहे जो हो, हिंदू समाज द्वारा इसके विरोध के पीछे के तर्क अकाट्य हैं। समस्या यह है कि यदि खुर्शीद के मन में इतिहास, तथ्य और तर्क के लिए जरा भी सम्मान होता तो वे ऐसी बात न करते।
ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना लगभग असंभव है कि वे अपनी बात पर पुनर्विचार करेंगे। हाँ, इस प्रक्रिया में वे आधुनिक सामाजिक और राजनीतिक विमर्श में प्रचलित इस थ्योरी को सही साबित करते नज़र आएँगे कि मॉडरेट मुस्लिम का होना एक परिकल्पना है जिसके पक्ष में तथ्य प्रस्तुत करना बहुत कठिन काम है।