कश्मीर की कश्मीरियत के लिए आत्म बलिदान देने वाली कोटारानी
पिछले लेख में हम कश्मीर की वीरांगना कोटारानी के बौद्घिक चातुर्य और देशभक्ति की चर्चा कर रहे थे। इस लेख को भी हम कोटा रानी के लिए ही समर्पित रखेंगे। उससे पूर्व हम देखें कि सर वी.एम. नॉयपाल इस्लाम के विषय में क्या कहते हैं-‘‘इस्लाम अपने मौलिक स्वरूप में एक अरबी धर्म है। हर एक व्यक्ति जो अरब नही है, पर मुसलमान है, वह धर्मांतरित व्यक्ति है। इस्लाम केवल एक अंतरात्मा की वस्तु नही है, और ना निजी विश्वास है। यह साम्राज्यवादी मांगों की पूर्ति चाहता है। एक धर्मांतरित व्यक्ति का संसार संबंधी दृष्टिकोण परिवर्तित हो जाता है। उसके पवित्र स्थान अरब देशों में है। उसकी धार्मिक भाषा अरबी है। उसका ऐतिहासिक दृष्टिकोण भी परिवर्तित हो जाता है। वह जो कुछ अपना था, उसे नकार देता है। चाहे वह पसंद करे या न करे, वह अरबी संस्कृति का एक अंग बन जाता है। धर्म परिवत्र्तित व्यक्ति को उस हर वस्तु से जो उसकी अपनी थी, मुंह मोडऩा पड़ता है। (इसमें व्यक्ति को अपनी राष्ट्रीयता, अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों के इतिहास, अपनी भाषा, अपनी भूषा, अपने भाषण और अपनी पहचान सभी से कट जाना अनिवार्य है। स्पष्ट है कि एक धर्मांतरित व्यक्ति भारत में रहकर भी अरब की राष्ट्रीयता के प्रति निष्ठावान बन जाता है-लेखक) सामाजिक व्यवस्थाओं में अनेक अड़चनें आ जाती हैं। जो हजारों वर्षों तक भी अनिर्णीत रहती हैं। उसे बार-बार बदलना पड़ता हैं। लोग वे कौन हैं और क्या है के विषयों में विभिन्न कल्पनाएं विकसित कर लेते हैं, और धर्मांतरित देशों के इस्लाम में मनस्ताप और नकारात्मकता का एक तत्व बना रहता है। इन देशों को आसानी से उत्तेजित किया जा सकता है।’’
रानी जानती थी दुष्परिणाम
(बियोण्ड बिलीफ पृष्ठ 1) इस्लाम के नाम पर जिस धार्मिक राज्य की स्थापना का सपना ले लेकर आक्रांता कश्मीर की ओर बढ़ रहे थे, रानी उसके दुष्परिणामों को भलीभांति जानती थीं। इसलिए वह उस आंदोलन को कश्मीर की धरती पर जीवित और प्रज्ज्वलित रखना चाहती थी, जिसे देश के अन्य भागों में लोग चला रहे थे-और वह आंदोलन था, अपनी स्वतंत्रता और धर्म की रक्षा का। दुर्भाग्य से रानी का पति रिंचन मुसलमान बन गया था तो भी रानी अपने धर्म का पालन करती रही। उसके सामने विकल्प था कि वह रिंचन से दूरी बना लेती या विद्रोह कर देती। पर उसने ऐसा भी नही किया पति के प्रति वह निष्ठावान बनी रही। इसके पश्चात वह अपने दूसरे पति उड्डयन देव के प्रति उस समय भी निष्ठावान रही जब वह राज्य छोडक़र भाग गया और रानी को जब सारी समस्याओं से मुक्ति मिल गयी तो वह पुन: दरबार में आ गया। रानी ने उसका पूरा सम्मान करते हुए अपने महल में उसे रखा। पर राज्य की बागडोर उसने ही संभाले रखी।
रानी के प्रशासनिक सुधार
चारों ओर से निश्चिंत होकर कोटारानी अब राज्य का प्रशासन चलाने लगी। प्रजा को पूर्ण एवं शीघ्र न्याय दिलाने हेतु उसने राज्य के न्यायालयों की व्यवस्था में अनेक परिवर्तन किये। अचला के साथ हुए युद्घ में जिन सैनिकों और अधिकारियों ने योग्यता एवं शौर्य का प्रदर्शन किया था, उन्हें राजकीय सम्मान प्रदान किये गये। युद्घ में धोखा देने वालों को सेवामुक्त करके दंडित किया गया। इसी तरह रानी ने अपने मंत्रिमंडल का भी पुनगर्ठन किया। कोटारानी एक जन्मजात प्रशासिका थी। उसने अपनी सूझबूझ से सारे प्रदेश में अनेक सामाजिक सुधारों को भी आरंभ किया।
(‘हमारी भूलों का स्मारक’ :धर्मांतरित कश्मीर पृष्ठ 90)
रानी को समझा नही गया
हम देख रहे हैं कि जहां हमारे राष्ट्रभक्तों की एक लंबी श्रंखला के हमें इतिहास में दर्शन हो रहे हैं, वहीं एक धूमिल सी परंतु स्पष्ट ‘जयचंदी परंपरा’ की रेखा भी साथ-साथ चल रही है। जिसमें पग-पग पर छल है, और भारत माता के प्रति विद्रोह का भाव है। रानी ने एक देशभक्त वीरांगना के रूप में शासन को चलाना तो आरंभ कर दिया परंतु उसके लिए नई-नई चुनौतियां सामने आती रहीं। दरबार का पुरूष वर्ग एक महिला को अपना स्वामी देखना पसंद नही करता था। वास्तव में यह मानसिकता देश के लिए घातक थी, जो विद्रोही लोगों को यह नही समझने दे रही थी कि रानी ने अभीतक क्या खोया और क्या पाया है? और यदि खोया है तो वह किसके लिए खोया है, साथ ही यदि कुछ पाया भी है तो उसे भी खोकर किसकी सेवा में लग गयी है?
फिर भी रानी घबराई नही
यद्यपि रानी के प्रति और उसकी सेवाओं के प्रति निष्ठावान अधिकारियों की भी कमी नही थी, परंतु जो विद्रोही परिस्थितियां बन रही थीं उससे रानी की ऊर्जा का अपव्यय होना निश्चित था। रानी घबरायी नही और वह रणक्षेत्र में डटी रही। निर्भीकता और निडरता के साथ रानी ने समस्याओं को सामना किया। उसने चुनौती देने वालों से निपटना आरंभ किया और उनमें से बहुतों को रानी ने निपटा भी दिया।
रानी को कर लिया गया गिरफ्तार
रानी कुछ निश्चिंतता अनुभव कर रही थी, कि एक सैन्य अधिकारी ने उसके महल पर आक्रमण कर दिया। रानी ने स्वयं सैन्य संचालन का दायित्व निभाते हुए महल से बाहर आकर युद्घ करना आरंभ किया। जिसमें रानी को कैद करने में उक्त सैन्य अधिकारी सफल हो गया।
रानी ने साहस नही छोड़ा
इस पर भी रानी ने साहस नही छोड़ा और वह विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए कैद में रहकर भी समाधान परक उपाय खोजने में लगी रही। अंत में रानी के एक विश्वसनीय मंत्री कुमार भट्ट ने रानी का मार्ग सरल कर दिया। उसने इस विषय परिस्थिति में रानी का साथ दिया और अपने प्राणों को संकट में डालकर रानी को कैद से बाहर निकालने में उसने सहायता की। रानी दीवार फांदकर कारावास से बाहर निकलने में सफल हो गयी।
रानी ने विद्रोही सैन्याधिकारी के विद्रोह का उचित पुरस्कार देने का मन बनाया और पूर्ण मनोयोग एवं रणकौशल के साथ उस सैन्याधिकारी पर आक्रमण कर दिया। विद्रोहियों के प्रति रानी ने कठोरता का प्रदर्शन किया और उन्हें समाप्त कर प्रशासन चलाने लगी। रानी ने सिद्घ कर दिया कि साहस के द्वारा मनुष्य हर विषम परिस्थिति से पार पा सकता है। रानी ने विषमताओं में भी अपना साहस और धैर्य बनाये रखकर जिस प्रकार विद्रोहियों का सफाया किया, उससे नारी जाति को भी वह इतिहास में गर्व और गौरव का स्थान दिला गयी। लोगों ने मान लिया कि नारी भी पुरूष से कम नही है, और यदि वह ठान ले तो कितनी भी बड़ी बाधा का सामना एक शेरनी की भांति कर सकती है।
शाहमीर को दीखने लगी रानी एक बाधा
जब रानी अपने स्वदेशी विद्रोही लोगों से पार पा रही थी, तो उसी समय शाहमीर का हृदय भी नये-नये षडय़ंत्रों की उधेड़ बुन में लगा हुआ था। वह विदेशी मुसलमान था और विश्व के स्वर्ग कश्मीर में साम्प्रदायिकता की आग लगाने की योजनाओं को यहां परिणाम तक पहुंचाना चाहता था। राजा रिंचन पहला धर्मांतरित भारतीय मुसलमान था, तो शाहमीर भारत में आने वाला पहला मुस्लिम धर्मप्रचारक था। उसके भीतर स्वाभाविक रूप से ही भारत के प्रति कोई निष्ठाभाव नही था। वह अपने उद्देश्य (भारत के कश्मीर का इस्लामीकरण) को यथाशीघ्र पूर्ण करना चाहता था। परंतु कोटारानी नाम की चट्टान उसके उद्देश्यों से वैसे ही लड़ रही थी जैसे नदी के मध्य में खड़ी कोई चट्टान जल के प्रबल वेग से लड़ती है। अत: शाहमीर को रानी सबसे बड़ी बाधा दीख रही थी, फलस्वरूप वह रानी को अपने मार्ग से हटाने की षडय़ंत्रकारी योजनाओं में लिप्त रहने लगा। इसके लिए वह जो भी उपाय हो सकता था, उसे अपनाने को तत्पर था। कश्मीर की राजनीतिक परिस्थितियां तो उसके अनुकूल थीं, परंतु उसे कोटारानी से भय लगता था। इसलिए अपने षडय़ंत्रों को सफल करने में उसे देर लग रही थी।
शाहमीर की साजिश
शाहमीर ने बुद्घि लगायी और उसने रानी के पति उड्डयन देव की मानसिक परिस्थितियों का अध्ययन करना आरंभ किया। उसे लगा कि राजा भी रानी द्वारा चलाये जा रहे शासन से दुखी है, तो उसने राजा उड्डयन देव को रानी के विरूद्घ भडक़ाना आरंभ कर दिया। उसने उड्डयनदेव को भ्रमित किया कि रानी अपने पूर्व पति रिंचन के पुत्र हैदर को ही सिंहासन देना चाहती है।
रानी हो गयी सावधान
जब रानी को इस षडय़ंत्र की भनक लगी तो वह भी सावधान हो गयी और उसने भी विदेशी धर्म प्रचारक शाहमीर को पाठ पढ़ाने की तैयारी कर ली।
रानी ने अपने पूर्व पति के पुत्र हैदर को सार्वजनिक रूप से अपने सभी अधिकारों से वंचित कर दिया। वह जानती थी कि यदि शासन के उत्तराधिकार का युद्घ भविष्य में छिड़ गया तो शाहमीर मुस्लिम होने के नाते हैदर को ही अपना समर्थन देता। जिससे अनावश्यक ही राज परिवार को अपयश और कलह का सामना करना पड़ जाता। अत: रानी ने बड़ी सावधानी से अपने पुत्र हैदर को तो रास्ते से हटाकर मां भारती को एक विदेशी के भावी शासन से मुक्त कर ही दिया, साथ ही अपने पति उड्डयनदेव और रानी से उत्पन्न उसके पुत्र को भी आश्वस्त कर दिया कि उसकी योजनाएं राष्ट्रहित में हैं, और उनमें कहीं पर भी उड्डयन देव और उसके पुत्र के प्रति छल या अनादर नही है। इसके पश्चात शाहमीर का षडय़ंत्र असफल हो गया और रानी अपने परिवार के साथ प्रसन्न रहकर शासन करने लगी।
रानी की सूझबूझ और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता ने कश्मीर को भविष्य के लिए पारिवारिक तनाव से बचा लिया। रानी ने स्पष्ट कर दिया कि सिंहासन उसका होगा जो मां भारती के प्रति निष्ठावान होगा।
रानी और सांप सीढ़ी का खेल
कोटा रानी किन्हीं सपनों का संसार बनाती और वह ढह जाता रिंचन के साथ विवाह करने से लेकर अब तक कोटा रानी ने अपने सपनों के कई महल बनाये और वे ढह गये। पर इन सब के सब सपनों में सबसे बड़ा सपना उसके लिए था-राष्ट्र निर्माण का। वह जिस संस्कार को लेकर चली थी-वह बड़ी प्रबलता से उसे कत्र्तव्य मार्ग पर धकेलता था। रानी आगे बढ़ती थी पर क्रूर नियति ने उसके आगे बढऩे और पीछे हटने को सांप सीढ़ी का खेल बनाकर रख दिया था। रानी सीढी चढ़ती थी-पर फिर वहीं गिर जाती थी, जहां खड़ी थी।
रानी के पति का देहांत
इसी प्रकार की परिस्थितियों में रानी के पति उड्डयन देव कुछ अस्वस्थ रहने लगे थे। वर्ष 1338 ई. में शिवरात्रि के दिन रानी के इस जीवन साथी ने अंतिम सांस ली और वह संसार से चला गया। रानी के लिए पुन: एक परीक्षा की घड़ी आ गयी थी-उसे पति के जाने का दुख भी था और राजा की मृत्यु से उपजे शून्य को भरकर राजकार्य को भी यथावत जारी रखते हुए अपने राष्ट्र निर्माण के कार्य में कोई व्यवधान ना आये, यह भी सुनिश्चित करना था।
रानी बन गयी धैर्य की मूत्र्ति
रानी ने पुन: धैर्य और संयम का परिचय दिया। उसे आशंका थी कि शाहमीर विदेशी सत्ता कश्मीर में स्थापित करने के लिए कोई भी षडय़ंत्र कर सकता है। इसलिए रानी ने राजा उड्डयनदेव की मृत्यु का समाचार पांच दिन तक जनसाधारण तक नही जाने दिया। इस काल में रानी ने सभी संवेदनशील स्थानों पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी और पूर्ण प्रशासनिक सक्रियता स्थापित करने पर ही राजा की मृत्यु का समाचार प्रसारित किया। रानी ने राज्य के प्रधानमंत्री का पद भिक्षण भट्ट नामक अपने एक बहुत ही विश्वसनीय सहयोगी को सौंप दिया।
प्रशासनिक सूझबूझ का दिया परिचय
रानी ने इस काल में अपनी कूटनीतिक क्षमताओं का भी परिचय दिया। भिक्षण भट्ट और लावण्य नामक दो व्यक्ति शाहमीर के भी परिचय में थे और उसके बहुत निकटस्थ थे। रानी को लगा कि ये दोनों शाहमीर के साथ जा सकते हैं, तो भिक्षण भट्ट को प्रधानमंत्री और लावण्य को एक अन्य दायित्व देकर प्रसन्न कर लिया।
इससे इन दोनों की निष्ठा रानी के साथ जुड़ गयी और जब रानी इस बात से पूर्णत: आश्वस्त हो गयी कि अब इन दोनों से संभावित संकट टल गया है, तभी राजा की मृत्यु का समाचार बाहर जाने दिया। पांचवें दिन रानी ने भिक्षण भट्ट की सहायता से अपना राजतिलक करवाया और पूर्ण शासिका बन गयी, इतनी गोपनीयता को देखकर और रानी की बौद्घिक क्षमताओं के आगे शाहमीर भी दंग रह गया था।
भिक्षण भट्ट की बढ़ गयीं शक्तियां
रानी के राज्यकाल में महल में भिक्षण भट्ट की शक्तियों में अप्रत्याशित वृद्घि हुई। इस प्रकार की शक्ति वृद्घि को शाहमीर ईष्र्या भाव से ले रहा था। इसलिए शाहमीर के भीतर षडय़ंत्र का शत्रु करवटें ले रहा था, वह कभी बांयी ओर तो कभी दांयी ओर करवटें बदलता। शाहमीर ने भिक्षण भट्ट को ही समाप्त करने की योजनाओं को मूत्र्तरूप देना चाहा।
कश्मीर का इतिहास बता रहा है कि षडय़ंत्र कारी विदेशी एक ही पर्याप्त होता है और उन पर अधिक विश्वास करना घातक होता है। महाभारत काल में शकुनि नामक एक विदेशी षडय़ंत्रकारी यहां आया था, तो अब उसके स्थान पर विदेशी शाहमीर आ गया था। इसलिए विनाश कहीं निकट से ही झांक रहा था।
भिक्षण भट्ट के लिए बना लाक्षागृह
शाहमीर की दृष्टि में भिक्षण भट्ट भटक रहा था। दुष्ट शाहमीर ने कुछ समयोपरांत अपने रोगग्रस्त होने का नाटक रचा। उसने अपने प्राणलेवा रोग की सूचना रानी तक पहुंचायी। रानी को जब उसके भयानक रोग से ग्रसित होने की सूचना मिली तो रानी ने सहृदयता का परिचय देते हुए उसके कुशलक्षेम की जानकारी लेने हेतु भिक्षण भट्ट को भेज दिया। भिक्षण भट्ट अपने साथ कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और सुरक्षा सैनिकों को लेकर भिक्षण भट्ट से मिलने गया। भिक्षण भट्ट और उसके साथियों को शाहमीर के सैनिकों ने भीतर जाने से रोक दिया। उन्होंने शाहमीर के गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण अधिक लोगों को भीतर जाने की अनुमति नही दी, और केवल भिक्षण भट्ट को ही भीतर जाने दिया। भिक्षण भट्ट को षडय़ंत्र की दूर-दूर तक भी कोई भनक नही थी, इसलिए वह स्वयं ही अपना काल बनकर बैठे शाहमीर से मिलने के लिए चल दिया। अजगर के लिए स्वयं ही भोजन बनकर भिक्षण भटट भक्षण के लिए पहुंच गया। अजगर को भी भक्षण के लि प्रस्तुत हुए शिकार को देखकर असीम प्रसन्नता हुई। पर उसने अपनी प्रसन्नता को अपने चेहरे के दुष्ट भावों के पीछे छिपा लिया जो प्रकटतया तो चेहरे पर बीमारी की थकी-थकी सी आकृति के रूप में उभर रहे थे, पर उसके चेहरे के प्रत्यक्ष संसार में तो सब कुछ शांत दिखता था, पर पीछे बहुत कुछ बड़ी तेजी से परिवर्तित हो रहा था। शाहमीर ने भिक्षण भट्ट को अपने सामने ही पड़े एक आसन पर बैठने का संकेत दिया। भिक्षण भट्ट उस आसन पर जैसे ही बैठा शाहमीर ने तुरंत उतने ही झटके से उठकर अपनी तलवार उठायी और एक ही बार में भिक्षण भट्ट का भक्षण कर बैठा। भिक्षण भट्ट का कटा सिर कमरे की दीवार से टकराकर धरती पर आ पड़ा। राक्षस ने अपनी दुष्ट हंसी बिखेरकर वातावरण के विशाद को और भी अधिक व्यंग्य पूर्ण बना दिया। रानी को जब सारे घटनाक्रम की जानकारी हुई तो वह अत्यंत क्रुध हुई पर लावण्य ने रानी को तुरंत कुछ भी करने से रोक दिया।
आस्तीन का सांप शहमीर हो गया सफल
अब शाहमीर का दुस्साहस और भी बढ़ गया था। उसने पहली बार में अपने एक शत्रु को शांत करने में सफलता भी प्राप्त कर ली थी। ऐसे में उसका अगला शिकार रानी ही होगी, यह स्पष्ट होता जा रहा था। रानी अपने मोर्चे पर यद्यपि सजग थी, परंतु नियति संभवत: कुछ और ही कराना चाह रही थी।
अब रानी को बनाया निशाना
कश्मीर के कमराज नामक क्षेत्र में उन्ही दिनों एक भयंकर अकाल पड़ गया। रानी संवेदनशील शसिका थी, वह ऐसे दु:ख भरे परिवेश में अपनी प्रजा की पीड़ा के निवारणार्थ लोगों के मध्य चली गयी। जब इस बात की सूचना शाहमीर को मिली तो उसने रानी की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर राजधानी श्रीनगर में अपने कुछ सशस्त्र सहयोगियों के साथ प्रवेश किया।
उसका विरोध लावण्य और रानी के कुछ अन्य निष्ठावान लोगों ने किया। घमासान युद्घ हुआ, परंतु शाहमीर को अंतिम क्षणों में अपने लिए कुछ सरदारों की सहायता मिल गयी, जिससे पराजित होते शाहमीर को ऊर्जा मिल गयी। उसने लावण्य को परास्त कर दिया और स्वयं को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया।
कश्मीर का लुटेरा शाहमीर
कश्मीर भारत का ही नही विश्व का भी स्वर्ग है। दुर्भाग्य रहा देश का कि इसका पहला लुटेरा शाहमीर बना। परशिया का एक प्रचारक देश का विनाशक बन गया। इस उदाहरण से शिक्षा लेने की आवश्यकता है कि प्रचारक मिशनरी या सूफी भी किस प्रकार समय आने पर घातक सिद्घ हो सकते हैं।
रानी चली राजधानी की ओर
कोटा रानी को जब अपनी अनुपस्थिति में राजधानी में हुई भयंकर घटना की जानकारी मिली तो वह शेरनी की भांति दहाड़ती राजधानी की ओर चलने के लिए विचार करने लगी। पर इससे पहले कि रानी आगे बढ़ती उसे शाहमीर ने ही अंदूकोट में आ घेरा। रानी किले में फंस गयी और उसने विचार कर लिया कि अब अंतिम समय आ गया है। पर रानी ने अपना साहस नही छोड़ा वह अंतिम समय जानकर भी युद्घ करती रही। अंत में उसने एक युक्ति खोज निकाली।
रानी ने चलाया अंतिम तीर
रानी ने शाहमीर के पास संदेश भिजवाया कि वह स्वयं और उसकी राजधानी उसका स्वागत करने के लिए तैयार है। वह शाहमीर के साथ विवाह करने को भी तैयार है। रानी के इस प्रस्ताव पर शाहमीर झूम उठा। रानी ने निश्चित दिवस को सजधजकर एक दुल्हन की भांति शाहमीर के महल के लिए प्रस्थान किया। शाहमीर बड़ी उत्सुकता से रानी की प्रतीक्षा कर रहा था।
रानी ने एक खंजर अपने वस्त्रों में छुपा लिया था। जिससे वह उसी प्रकार एकांत में शाहमीर का वध करना चाहती थी, जिस प्रकार शाहमीर ने भिक्षण भट्ट का वध कर दिया था। रानी दुल्हन बनकर जैसे ही शाहमीर के महल में प्रविष्ट हुई उसने रानी को अपने शयन कक्ष में चलने का संकेत दिया। रानी सहर्ष उधर को चल दी। आज रानी को बहुत बड़ा काम करना था। इसलिए वह बड़े सधे पगों से शाहमीर के शयन कक्ष की ओर आगे बढ़ी।
शयन कक्ष में प्रविष्ट हुई रानी को शाहमीर ने जैसे ही अपनी बांहों में लेने का प्रयास किया रानी ने अपना खंजर निकालकर शाहमीर को मारना चाहा। पर वह दांव चूक गयी, फलस्वरूप रानी ने अगला वार स्वयं पर कर लिया और आत्महत्या कर स्वर्ग सिधार गयी।
कश्मीर के स्वर्ग की आत्महत्या
यह केवल एक रानी का बलिदान नही था यह किसी नारी का भावुकता में उठाया गया कदम भी नही था, यह एक महिला द्वारा की गयी आत्महत्या भी नही थी, अपितु यह कश्मीर के स्वर्ग की आत्महत्या थी। कश्मीर के गौरव का बलिदान था और कश्मीर के वैभव द्वारा उठाया गया ऐसा कठोर कदम था जिसे पाने के लिए कश्मीर आज तक तड़प रहा है। रानी के जाने के पश्चात कश्मीर की घाटी की शांति में आग लग गयी।
जिस रानीके जीवन पर देश की संस्कृति के लिए और धर्म के लिए संषर्ष किया और संघर्ष करते करते ही आत्म बलिदान दिया उस रानी का नाम आज भारत में कितने लोग जानते हैं? कौन खा गया रानी को और रानी के कार्य को-इतिहास से हीरों को निकालकर पत्थरों को उनके स्थान पर रखोगे तो पत्थर ही खाओगे? हो सकता है कि इसलिए हमारी बुद्घि पर पत्थर पड़ गये हैं? रानी की जय हो! रानी की देशभक्ति अमर रहे!! रानी का वैभव अमर रहे!!!
क्रमश:
मुख्य संपादक, उगता भारत