जनता के पैसे को पानी की तरह बहाते पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी
अशोक मधुप
ये क्या हो रहा है? मदद के लिए दिया जाने वाला धन किसी मुख्यमंत्री की निजी संपत्ति नहीं होती। राजकीय कोष होता है। प्रदेश और देश के जिम्मेदार नागरिकों द्वारा दिए गए टैक्स से संग्रह हुआ धन है, इसको इस तरह से लुटाने की अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता।
लगता है वोट की राजनीति देश को बर्बाद करके छोड़ेगी। इसने तो अपराधी और कानून के मानने वालों में फर्क करना ही बंद कर दिया। अपराधियों और कुपात्र की मदद के नाम पर सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने के लिये देश की दूसरी संस्थाओं को आगे आना होगा। पंजाब की चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार ने निर्णय लिया है कि किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को लालकिले पर हुए उपद्रव में गिरफ्तार 83 लोगों को वह दो−दो लाख रुपये की मदद करेगी। केंद्र द्वारा संसद में पारित तीनों कृषि कानून को उसने लागू न करने का भी निर्णय लिया है। पंजाब सरकार इस उपद्रव में मरने वाले दो लोगों को पहले ही पांच−पांच लाख रुपये दे चुकी है।
ये क्या हो रहा है? मदद के लिए दिया जाने वाला धन किसी मुख्यमंत्री की निजी संपत्ति नहीं होती। राजकीय कोष होता है। प्रदेश और देश के जिम्मेदार नागरिकों द्वारा दिए गए टैक्स से संग्रह हुआ धन है, इसको इस तरह से लुटाने की अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता। मुख्यमंत्री या किसी मंत्री के निर्णय को उचित−अनुचित बताने वाली कार्य पालिका है। संबंधित अधिकारी हैं। उन्हें इसे रोकना चाहिए। क्योंकि जिम्मेदारी उनकी बनती है, किसी मंत्री या मुख्यमंत्री की नहीं। केंद्र द्वारा प्रदेश में राज्यपाल इसीलिए बैठाए जाते हैं कि वह सरकार के गलत और सही निर्णय पर विचार करें। गलत निर्णय पर रोक लगाएं। इसके ऊपर संसद और राष्ट्रपति हैं। न्यायपालिका गलत और सही निर्णय को परीक्षण करने के लिए है।
मुझे याद आता है कि उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष से प्रदेश के पत्रकारों को उपकृत किया था। मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने इस कोष से अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं का ही पैसा बांटा। इसे लेकर शोर भी मचा था। पर सारे नेता एक ही थैली के चट्टे−बट्टे हैं, इसलिए ये मामला आगे नहीं बढ़ा। न कार्यपालिका ने जिम्मेदारी निभाई। न अन्य संस्थाओं ने।
लखीमपुर खीरी में किसानों के प्रदर्शन के दौरान हुई मौत में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रत्येक मरने वाले के परिवार को 45−45 लाख रुपये दिये। फिर इनको पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कैसे 50−50 लाख रुपए अपने प्रदेश के कोष से दिया ? पंजाब और छत्तीसगढ़ के प्रदेश का धन दूसरे प्रदेश में लुटाने का अधिकार इन प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को किसने दिया ? स्वतः संज्ञान लेने वाली न्यायपालिका को इस पर विचार करना चाहिए। देखना चाहिए कि क्या कोई सरकार किसी अपराधी की इस तरह मदद कर सकती है ? आज किसान प्रदर्शन के नाम पर उपद्रव करने वालों की मदद की गई है, कल चोर, डकैत, देशद्रोही और आतंकवादियों की मदद की जाएगी।
उधर पंजाब सरकार अपराधी को मदद करती है तो प्रदेश की सारी जनता को दो−दो लाख क्यों नहीं देती ? पंजाब समेत पांच प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं। इन प्रदेश की जनता को इन मुख्यमंत्री से पूछना चाहिए कि अपराधी की सरकारी खजाने से मदद क्यों की गई ? मदद करनी है तो अपनी जेब से करो। अपने निजी पैसे से करो। अपराधी की मदद की है तो प्रदेश के प्रत्येक व्यक्ति, आम नागरिक को इनसे दुगनी राशि दो। नहीं देते तो इनका बहिष्कार किया जाना चाहिए। इन गलत निर्णय का विरोध करने के लिए प्रदेश और जिम्मेदार देशवासियों को आगे आना होगा। किसी को तो पहल करनी पड़ेगी।