देवेन्द्र सिंह आर्य
बहुत देर से चर्चा का विषय बना भूमि विधेयक को लेकर अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है। सरकार और विपक्ष दोनों के लिए यह विधेयक प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। विपक्ष इस विषय में पीछे हटने को या सरकार का साथ देने को तैयार नही लगता, यद्यपि सरकार इस विधेयक को लेकर झुकने को तैयार है। इसके उपरांत भी विपक्ष भूमि विधेयक पर केवल राजनीति करते हुए अड़ंगा डालने की स्थिति में आ रहा है। जिसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अच्छा नही कहा जा सकता।
आम सहमति न बन पाने की वजह से, मंगलवार को शुरू होने जा रहे संसद के मॉनसून सत्र के दौरान भूमि विधेयक को पेश किए जाने की संभावना नहीं है और इससे संबंधित अध्यादेश को अप्रत्याशित रूप से चौथी बार जारी किया जा सकता है। सरकारी सूत्रों ने बताया ‘‘आम सहमति न बन पाने के कारण मॉनसून सत्र के दौरान विधेयक को संसद में पेश किए जाने की संभावना नहीं है।’’ इस विधेयक पर विचार कर रही, भाजपा सांसद एस. एस. अहलूवालिया की अध्यक्षता वाली, संयुक्त संसदीय समिति की योजना अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए तीन अगस्त तक दो सप्ताह का समय विस्तार और मांगने की है। संकेत हैं कि समिति मानसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट नहीं दे पाएगी और समय में विस्तार की मांग कर सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए अध्यादेश एक बार फिर जारी करना जरूरी हो जाएगा। तीसरी बार यह अध्यादेश 31 मई को जारी किया गया था।
जब सरकार की ओर से लचीला दृष्टिकोण अपनाकर विपक्ष के साथ समन्वय स्थापित करने के हरसंभव प्रयास किये जा रहे हैं, तो विपक्ष के लिए उचित है इस विधेयक में आपत्तिजनक प्रावधानों को दूर कर इसे किसान के हितों के अनुकूल बनाकर पारित कराने में अपना सहयोग दें। संसद का समय नष्ट कराना उचित नही होगा।