हिंसक जीवों से डरता था, जब रहता था कभी मांद में।
अब डरता क्यों निज साये से, जब पहुंच चुका तू चांद में।
इन सब का है मूल एक, निज तेरा ही व्यवहार।
जीत सका नही अब तक भी, निज मन के छहों विकार।
भौतिकता में उन्नत मानव, हो गया तू संपन्न।
आध्यात्म रूप से हुआ कहीं, पहले से अधिक विपन्न।
क्या कभी यह सोचकर देखा। निकट है काल की रेखा।
है अठ्ठाइसवां कलयुग ये, बीते हैं बहुत से मनवन्तर।
संभूति और असंभूति का, तू मिटा नही पाया अन्तर।
इतिहास साक्षी इसका है, और पतन गर्त में सड़ता है।
देखो महाभारत से पहले, था मायावाद उत्कर्ष में।