manu mahotsav banner 2
Categories
आओ कुछ जाने

जीवन को सदा गति देती है-सुमति

ललित गर्ग

जिस तरह कण-कण में भगवान हैं, ठीक उसी तरह कण-कण में जीवन भी समाया है। संगीत की स्वर-लहरियों, पंछियों की चहचहाहट, सागर की लहरों, पत्तों की सरसराहट, मंदिर की घंटियों, मस्जिद की अजान, कोयल की कूक, मयूर के नयनाभिराम नृत्य, लहलहाते खेत, कृषक के मुस्कराते चेहरे, सावन की रिमझिम फुहार, इंद्रनुषी रंगों, बादलों की गर्जना, बच्चे की मोहक मुस्कान, फूलों की खुशबू, बारिश की सौंी-सौंी महक, मां की लोरियां, पानी की गगरियां— यही हैं जीवन के वास्तविक उत्सव और यही है मनुष्य-मन की उत्सवमयता।

प्रकृति के अनुपम सौंदर्य में भी जीवन का विलक्षण आनंद समाहित है। जीवन एक उत्सव है, नाचो गाओ और मुस्कराओ। जिंदादिली का नाम है जिंदगी। जीवन पुष्प है, प्रेम उसका मु। जिंदगी में सदा मुस्कराते रहो, फासले कम करो, दिल मिलाते रहो। जीवन एक चुनौती है। विपत्तियों से जूझकर चुनौती स्वीकार करना ही जिंदादिली है, साहस है तथा इसी में रोमांच भी है। लाओत्से ने कहा है कि इसकी फिक्र मत करो कि रीति-रिवाज का क्या अर्थ है। रीति-रिवाज आनन्द देते हैं, बस काफी है। आनन्द का जीवन में बहुत महत्व है। होली मनाओ, दीवाली मनाओ, बसन्तोत्सव मनाओ। कभी दीये भी जलाओ, कभी रंग-गुलाल उड़ाओ तो कभी जीवन के गीत गाओ। कभी संयम के गीत गाओ तो कभी साना के। जिन्दगी को सहज, सरल और नैसर्गिक रहने दो। मिलनसार होना अच्छा है, खाने-पीने के संस्कार देना अच्छा है, मैत्री अच्छी है, बड़ों के प्रति सम्मानभाव व्यक्त करना—यह सब करते हुए स्वयं की पहचान भी जरूरी है। जैसे हो वैसे ही अपने को स्वीकार करो। और इस सरलता और सहजता से ही ीरे-ीरे स्वयं की स्वयं के द्वारा पहचान हो सकेगी।

अपने प्रति सकारात्मकता होनी जरूरी है। एक दिव्यदृष्टि जरूरी होती है जीवन की सफलता एवं सार्थकता के लिये। सर विलियम ब्लैकस्टोन ने लिखा है—रेत के एक कण में एक संसार देखना, एक वन पुष्प में स्वर्ग देखना, अपनी हथेली में अनन्तता को देखना और एक घंटे में शाश्वतता को देखना। सचमुच यही जीवन का वास्तविक आनन्द है, उत्सव है।

जीवन का लक्ष्य होना चाहिए, निरंतर चलते रहो, तब तक चलते रहो, जब तक कि मंजिल न पा लो। जीवन चलायमान है, चलता ही रहता है, अपनी निर्बा गति से। जीवन न तो रुकता है और न ही कभी थकता है। जीवन पानी की तरह निरंतर बहता रहता है। जीवन कभी नहीं हारता है, उससे हम ही हार जाते हैं। चलते रहो और पीछे मुडक़र कभी न देखो, लक्ष्य शिखर की ओर रखो। इसीलिये नेपोलियन कहते हैं, जो व्यक्ति अकेले चलते हैं, वे तेजी से आगे की ओर बढ़ते हैं।  जीवन एक प्रयोग है, नित नए प्रयोग करते रहो, अनुभवों का विस्तार करो और नवजीवन, नवसृष्टि का सृजन करो। गिरकर उठना और उठकर पुन: अपने लक्ष्य की ओर चल पडऩा ही कामयाब जीवन का राज़ है।

चलना ही जीवन है। बस, चलते ही रहो क्योंकि ठहराव जीवन में नीरसता, विराम व शून्य लाता है। जीवन की गति रुकने पर सांसों के थमने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

गीता में कहा है, व्यक्ति पृथ्वी पर अकेला ही आता है व अकेला ही जाता है। प्रगति के नाम पर आज जो कुछ हो रहा है—उससे मानव व्यथित है, समाज परेशान है, राष्ट्र चिंतित है। अपेक्षा है आज तक जो अतिक्रमण हुआ है, स्वयं से स्वयं की दूरी बढ़ाने के जो उपक्रम हुए हैं उनसे पलट कर पुन: स्वभाव की ओर लौटने की, स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार की। जीवन शांति है, सुव्यवस्था है, समा िहै। अज्ञात की यात्रा है। विभाव से स्वभाव में लौट आने की यात्रा है। समा िसमाानों का केन्द्र है। अत: अपनी सक्रिय ऊर्जा और जीवनी शक्ति को उपयोगी दिशा प्रदान करें। व्यक्ति जिस दिन रोना बंद कर देगा, उसी दिन से वह जीना शुरू कर देगा। यह अभिव्यक्ति थके मन और शिथिल देह के साथ उलझन से घिरे जीवन में यकायक उत्साह का संगीत गुंजायमान कर देगी। नैराश्य पर मनुष्य की विजय का सबसे बड़ा प्रमाण है आशावादिता और यही है जीत हासिल करने का उद्घोष।

आशा की ओर बढऩा है तो पहले निराशा को रोकना होगा। मोजार्ट और बीथोवेन का संगीत हो, अजंता के चित्र हों, वाल्ट व्हिटमैन की कविता हो, कालिदास की भव्य कल्पनाएं हों, प्रसाद का उदात्त भाव-जगत होज् सबमें एक आशावादिता घटित हो रही है। एक पल को कल्पना करिए कि ये सब न होते, रंगों-रेखाओं, शब्दों-ध्वनियों का समय और सभ्यता के विस्तार में फैला इतना विशाल चंदोवा न होता, तो हम किस तरह के लोग होते! कितने मशीनी, थके और ऊबे हुए लोग! अपने खोए हुए विश्वास को तलाशने की प्रक्रिया में मानव-जाति ने जो कुछ रचा है, उसी में उसका भविष्य है। यह विश्वास किसी एक देश और समाज का नहीं है। यह समूची मानव-नस्ल की सामूहिक विरासत है। एक व्यक्ति किसी सुंदर पथ पर एक स्वप्न देखता है और वह स्वप्न अपने डैने फैलाता, समय और देशों के पार असंख्य लोगों की जीवनी-शक्ति बन जाता है। मनुष्य में जो कुछ उदात्त है, सुंदर है, सार्थक और रचनामय है, वह सब जीवन दर्शन है। यह दर्शन ऐसे ही हैं जैसे एक सुंदर पुस्तक पर सुंदरतम पंक्तियों को चित्रित कर दिया गया। ये रोज-रोज के भाव की ही केन्द्रित अभिव्यक्तियां हैं। कोई एक दिन ही उत्सव नहीं होता। वह तो सिर्फ रोज-रोज के उत्सव की याद दिलाने वाला एक सुनहरा प्रतीक होता है।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version