यहाँ कुछ नाम बहुत महत्वपूर्ण हैं। यदि पाठक इन पर ध्यान नहीं देंगे तो मेरा लिखना बेकार हो जाएगा।
1- पंडित जगतनारायण मुल्ला –
पण्डित जगत नारायण मुल्ला- ब्रिटिश सरकार की ओर से सरकारी वकील थे। बिस्मिल और बाकी क्रांतिकारियों को फांसी दिलवाने मे जी जान लगा दिया। 1926 मे ब्रिटिश सरकार से काकोरी केस के लिए इन्हे 500 रुपया प्रतिदिन मिलता था। सेशन कोर्ट के बाद जब ये केस चीफ कोर्ट मे गया तब भी सरकारी वकील यही थे। प्रसिद्ध काकोरी क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल व अन्य 4 को मृत्युदण्ड दिलवाने मे इनकी बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका थी। ये सरकारी वकील थे। इसके विपरीत आर्यसमाजी चन्द्र्भानु गुप्ता जी क्रांतिकारियों के वकील थे जिन्हे नेहरू ने छल से मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था।
पंडित जगत नारायण , पंडित मोती लाल नेहरू के भाई नन्द लाल नेहरू के समधी थे। नन्दलाल नेहरू के पुत्र किशन लाल नेहरू का विवाह जगत नारायण की पुत्री स्वराजवती मुल्ला से हुआ था।1916 ई. की लखनऊ कांग्रेस की स्वागत-समिति के अध्यक्ष वही थे। लगभग 15 वर्षों तक लखनऊ नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। मांटेग्यू चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के बाद उत्तर प्रदेश कौंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और प्रदेश के स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री बने। जगत नारायण मुल्ला 3 वर्ष तक वे लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे।
इसी के पुत्र आनन्द नारायण मुल्ला बाद मे हाईकोर्ट के जज रहे और राज्यसभा सदस्य भी बनाए गए।
2- सर चिमनलाल हरीलाल सेतलवाड़- 13 अप्रैल 1919 को हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग का हत्याकाण्ड की जाँच के लिए 14 अक्टूबर 1919 को हन्टर कमीशन बिठाया गया। इसमें चार ब्रिटिश और तीन हिंदुस्तानी- पंडित जगतनारायण मुल्ला, सर चिमनलाल हरीलाल सेतलवाड़, सरदार साहिबज़ादा सुल्तान अहमद खान थे।
तीस्ता सीतलवाड़ इनकी पोती है इनके पुत्र और तीस्ता के पिता मोतीलाल सीतलवाड़ नेहरू के बेहद विश्वसनीय 1950 से 1963 तक भारत के अटॉर्नी जनरल थे व भारत के पहले लॉं कमीशन के चेयरमैन थे। तीस्ता सीतलवाड़ को तो आप सब जानते ही हैं।
3- कुंज बिहारी थापर —
जनरल डायर की मृत्यु सेरिब्रल हेमरेज से 1927 में हुई। तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओड्वायर का वध शहीद उधम सिंह ने 13 मार्च 1940 में की। ऐसी दुर्दांत घटना के बाद तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओड्वायर को स्वर्ण मंदिर में सम्मानित किया गया था। मृत्यु के बाद उसके परिवार को पंजाब से ही कुंज बिहारी थापर, उम्र हयात खान, चौधरी गज्जन सिंह और राय बहादुर लाल चंद की ओर से 1,75,000 रुपये दिए गए।
कुंज बिहारी थापर के तीन बेटे थे दया राम, प्रेम नाथ तथा प्राण नाथ। इसके अलावा उन्हें पांच बेटियां भी थीं। पत्रकार करण थापर के पिता जनरल प्राण नाथ थापर एकमात्र ऐसे सेना प्रमुख थे जिन्होंने युद्ध हारा था। 1962 में चीन से लड़ाई हारने के कारण ही उन्हें 19 नवंबर 1962 को अपमानित होकर जबरन इस्तीफा देना पड़ा था। 1936 में प्राण नाथ थापर ने गौतम सहगल की बहन बिमला बशिराम सहगल से शादी की थी। वहीं 1944 में गौतम सहगल की नयनतारा सहगल से शादी हुई। नयनतारा सहगल जवाहरलाल नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी की तीन बेटियों में से दूसरी बेटी थी। प्रसिद्ध मार्क्सवादी इतिहासकार रोमिला थापर इन्ही कुंज बिहारी थापर के बेटे दायराम थापर की बेटी हैं और रिश्ते मे कर्ण थापर की बहन हैं।
4- सर शोभा सिंह — इनके परिवार से थापर परिवार की रिश्तेदारी थी। शोभा सिंह ही 8 अप्रैल 1929 को संसद में हुए बम विस्फोट के मुख्य गवाह थे। शोभा सिंह ने ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की पहचान की थी और गवाही दी थी। । शोभा सिंह की वफादारी ब्रिटिश सरकार के प्रति वैसे ही थी जैसे कुंज बिहारी थापर की थी। इसी वजह से दोनों वंशजों को अकूत संपत्ति के साथ प्रतिष्ठा भी मिली। भारत के तत्कालिन वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ने जैसे ही भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा की ब्रिटिश सरकार ने सुजान सिंह के साथ उन्हें भी लुटियंस दिल्ली बनाने का ठेका देकर पुरस्कृत किया। साउथ ब्लॉक, और वार मेमोरियल आर्क (अब इंडिया गेट) के लिए यही अशिक्षित सोभा सिंह एकमात्र बिल्डर थे। सोभा सिंह दिल्ली में जितनी जमीन खरीद सकते थे उतनी ख़रीदते गए ।2 रुपये प्रति गज़ के हिसाब से उन्होंने कई व्यापक साइटें खरीदीं और वो भी फ़्री होल्ड के रूप में.उस समय उन्हें आधी दिल्ली दा मलिक (दिल्ली के आधे हिस्से का मालिक) कहा जाता था। उन्हें 1944 के बर्थडे ऑनर्स में सर की उपाधि से विभूषित किया गया था। शोभा सिंह के छोटे भाई सरदार उज्जल सिंह सांसद बन गए जो बाद में पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपाल भी बने।सर शोभा सिंह के चार बेटे थे भगवंत, खुशवंत, गुरबक्श और दलजीत और एक बेटी थी मोहिंदर कौर। खुशवंत सिंह एक नामी पत्रकार और लेखक होने के साथ ही एक राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने 1980 से 86 तक राज्य सभा के सदस्य व इंदिरा गांधी के आपातकाल के समर्थक खुले रूप से कांग्रेस के समर्थक थे। इसके एवज में उन्हें 1974 में पद्म-भूषण पुरस्कार से और 2007 में उनको दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित भी किया गया।
5- गोबिन्द वल्लभ पन्त –
जवाहर लाल नेहरू के खास गोबिन्द वल्लभ पन्त। पन्त ने रामप्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों का वकील बनने से इंकार कर दिया क्योंकि उन्हे ब्रिटिश सरकार द्वारा दी जाने वाली फीस कम लगी। नेहरु की कृपा से ये यू पी के मुख्यमंत्री बने.
1954 मे पन्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उस कुम्भ मे ये नेहरू की आवभगत मे इतने लीन रहे कि कुम्भ मे हैजा फैल गया। सैंकड़ों लोग मर गए। पन्त ने लावारिस की तरह उनका सामूहिक दाह संस्कार करवा दिया। सौभाग्य से एक पत्रकार के उस सामूहिक दाह संस्कार का फोटो ले लिया और यह मामला सार्वजनिक हो गया।
लिस्ट बहुत लम्बी है.
अब आप स्वयं देख लें कि आजादी के बाद सत्ता नेहरू को क्यों मिली?
गद्दारों को बड़ी चालाकी से सब छुपा दिया गया और आजादी के बाद उनके खानदान वाले मजे मे रहे।