हमारे देश में संसद सत्रों का बे-वजह ह्रास बड़ा तकलीफ देय होता है। इतिहास गवाह है कि विपक्ष ने संसद सत्रों में सरकारों को नाकों चने चबवा दिए। किन्तु मोदी सरकार ने बीते बजट सत्र में शुरुआती गलतियों के बाद खुद को विपक्ष की इस नीति से बचाते हुए सत्र के काम-काज का बेहतर निर्धारण किया। बजट सत्र के दोनों सदनों से रिकॉर्ड 24 विधेयक पारित कराने में सफलता के साथ-साथ पिछले पांच-छह वर्षों में सबसे ज्यादा काम का रिकॉर्ड भी बना। हालांकि सदन के सुचारू रूप से चलने का एक कारण विपक्ष का साथ भी था मगर देखा जाए तो यह मोदी सरकार के नियंत्रण और विनम्र निमंत्रण के चलते ही संभव हुआ। बीते बजट सत्र में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही बांग्लादेश के साथ सीमा समझौता- जिसे दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से पारित किया। आर्थिक रफ्तार की दिशा में सरकार कई अहम विधेयक पारित कराने में सफल रही जबकि सत्र के अंतिम दिन काला धन का विधेयक भी पारित हो गया। इसके साथ ही जीएसटी और भूमि अधिग्रहण बिल को अगले सत्र (आज से प्रारम्भ हो रहे मानसून सत्र) में पारित कराने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। सरकार की उपलब्धि को इससे समझा जा सकता है कि दोनों सदनों ने 47 विधेयक पारित करवाए। साथ ही लोकसभा की 90 तो राज्यसभा की 87 बैठकें हुईं। यह पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा रहीं। लोकसभा के लगभग सात घंटे तो राज्यसभा के 18 घंटे से ज्यादा हंगामे की भेंट चढ़े। इसके बावजूद लोकसभा में 117 फीसद तो राज्यसभा में 101 फीसद ज्यादा काम हुआ। कांग्रेस की दृष्टि से देखा जाए तो सदन का यह सत्र उसके लिए भी अच्छा रहा था। लंबी छुट्टी मनाकर लौटे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बजट सत्र में जितना दिखे, उतना पिछले एक दशक में कभी नहीं दिखे। हालांकि 3-4 महीनों में राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है और सरकार को इस बार अग्नि-परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है।
क्या मोदी सरकार बीते बजट सत्र की भांति अपनी स्वर्णिम सफलता को दोहरा पाएगी? क्या मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ेगा? सरकार अहम बिलों को पास करवा पाएगी? ऐसे अनेक प्रश्न हैं किन्तु इनका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है।
दरअसल ललित मोदी विवाद में सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और उनके पुत्र दुष्यंत का नाम आना, मध्य प्रदेश में शिव’राज’ की नाक के नीचे हुए व्यापमं घोटाले में हुई फजीहत, छत्तीसगढ़ में अनाज घोटाला तथा महाराष्ट्र में युवा मंत्री पंकजा मुंडे का चिक्की घोटाला सरकार को संसद सत्र के सुचारू रूप से चलने के दावे को झुठला रहा है। विपक्ष तो क्या, खुद सरकार के अहम सहयोगी भी उसे आंख दिखा रहे हैं। मानसून सत्र की शुरुआत से पहले सदन को शांतिपूर्ण तरीके से चलाने के लिए बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अन्य दलों से भूमि बिल पर आगे बढऩे की अपील की मगर कांग्रेस सहित अन्य दलों ने सत्र के हंगामेदार होने के संकेत देने शुरू कर दिए हैं।
कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दल ललित मोदी प्रकरण में सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे का नाम जुडऩे के कारण इन्हें हटाए जाने और व्यापमं घोटाले के मद्देनजर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। हालांकि यह तय है कि किसी भी नेता को मोदी सरकार हटाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती और इसी आशंका के चलते सत्र हंगामेदार होने की पूरी संभावना है। जहां तक बात भूमि अधिग्रहण बिल को सदन के पाताल पर लाने की है तो कांग्रेस नेता अजय कुमार ने पत्रकार वार्ता लेकर स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान कानून भूमि लूटने वाला कानून है। अगर सरकार पुराने बिल को वापस लाती है तो इस मुद्दे पर बात की जा सकती है। हालांकि एक खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री की अपील के बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भूमि अधिग्रहण बिल को लेकर अपना रुख नरम किया है, लेकिन उनकी भी यही शर्त है कि इसमें कुछ बदलाव किए जाएं। प्रधानमंत्री की देश-हित में सदन को सुचारू रूप से चलाने की अपील भी विपक्ष को शांत कर पाएगी, इसमें संदेह है।
जहां तक भूमि अधिग्रहण बिल का सवाल है तो ऐसी भी आशंकाएं हैं कि सरकार मानसून सत्र में इस बिल को पेश किए जाने की बजाए रिकॉर्ड चौथी बार अध्यादेश जारी कर दे। इससे हालांकि सरकार विपक्ष के निशाने पर ज़रूर आएगी। कुल मिलकर सरकार विपक्ष के हमलों से निपटने के लिए तैयारी कर रही है किन्तु ऐसा लगता है कि विपक्ष का पलड़ा इस बार सरकार पर भारी पडऩे वाला है।