कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता और बयानों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में एक बार नहीं कितनी ही बार हिंदू विरोधी बयान देकर इस देश की मौलिक चेतना के साथ खिलवाड़ करने में कभी कोई संकोच नहीं किया है। उनका मुस्लिम प्रेम स्पष्ट झलकता रहता है। उन्हें मुगलो, तुर्कों और अन्य मुस्लिम शासकों के हिंदू विरोधी दृष्टिकोण और अत्याचारों में भी कोई बुराई दिखाई नहीं देती बल्कि इसके विपरीत वह यह कहने में भी संकोच नहीं करते कि मुगलों के समय में हिंदू पूर्णतया सुरक्षित रहे थे।
अब एक बार फिर दिग्विजय सिंह ने दावा किया है कि सावरकर, गाय को माता कहने के विरुद्ध थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की अयोध्या पर आधारित किताब के विमोचन पर दिग्विजय सिंह ने ये बातें कहीं।
जहां तक गाय के बारे में सावरकर जी के ज्ञान की बात है तो वह गाय के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे, परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं था कि वह गौ हत्या के समर्थक थे । भारतीयता भारतीय संस्कार और भारतीय संस्कृति के प्रति पूर्णतया समर्पित सावरकर जी से अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह कांग्रेसी मानसिकता के किसी विचार का पोषण कर सकते हैं । बात 1930 के दशक की है। मराठी भाषा के प्रसिद्ध जर्नल ‘भाला’ में सभी हिंदुओं को संबोधित करते हुए पूछा गया, ‘वास्तविक हिंदू कौन है? क्या वह जो गाय को अपनी माता मानता है!’ तब इसका उत्तर वीर सावरकर ने ‘गोपालन हवे, गोपूजन नव्हे’ में दिया है। इसका हिंदी अनुवाद कुछ इस तरह है, ‘गाय की देखभाल करो, उसकी पूजा नहीं।’ इस निबंध से स्पष्ट होता है कि वीर सावरकर गाय की पूजा के विरोधी थी। उन्होंने इस निबंध में लिखा, ‘अगर गाय किसी की भी माता हो सकती है, तो वह सिर्फ बैल की। हिंदुओं की तो कतई नहीं। गाय के पैरों की पूजा करके हिंदुत्व की रक्षा नहीं की जा सकती है। गाय के पैरों में पड़ी रहने वाली कौम संकट के आभास मात्र से ढह जाएगी।”
हमें ध्यान रखना चाहिए कि सावरकर जी हिंदू इतिहास के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने उन अनेकों भूलों और घटनाओं को बड़ी गंभीरता से चित्रित किया है जिनके कारण हिंदू को कई बार अपनी किसी परंपरागत धार्मिक रूढ़ि के कारण पराजय का सामना करना पड़ा । उनमें से एक पृथ्वीराज चौहान के शहाबुद्दीन गोरी के हाथों पराजित होने की घटना भी है। जिसमें गायों को आगे करके शहाबुद्दीन गोरी ने हमारी धार्मिक रूढ़ि वादी भावना का दुरुपयोग किया था। यदि उस समय गायों के प्रति अंध निष्ठा को थोड़ा दरकिनार कर केवल शत्रु को मारने का उद्देश्य लेकर पृथ्वीराज चौहान युद्ध करते तो युद्ध का परिणाम दूसरा होता ।
सावरकर जी मनुष्य की बुद्धि हत्या की भावना को उचित नहीं मानते थे वह किसी भी विचार को अंधी आस्था के रूप में स्वीकार करने के विरोधी थे । इसके उपरांत भी वह गाय को आर्थिक दृष्टि से देश के लिए उपयोगी मानते थे। जबकि कांग्रेस ने गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक दोनों लाभों को दरकिनार करते हुए पिछले 75 वर्ष में उसे पूर्णतया साफ करने में सहयोग दिया है । सावरकर जी जहां गाय के आर्थिक और वैज्ञानिक लाभ को स्वीकार करते हुए उसके संरक्षण के समर्थक थे, वहीं कांग्रेस ने उसे पूर्णतया एक पशु मानकर उसे थाली में परोसने में सहायता की है। उसी का परिणाम है कि आजादी के बाद गाय देश से बहुत तेजी से समाप्त हुई है । सावरकर जी ने गाय के संरक्षण को राष्ट्रीय जिम्मेदारी कहकर महिमामंडित किया था। जिसे दिग्विजय सिंह की कॉन्ग्रेस आज तक नहीं कह पाई है । सावरकर का कहना था कि गाय का संरक्षण आर्थिक और वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर होना चाहिए। इस संदर्भ में सावरकर ने अमेरिका का उदाहरण दिया था, जहां अधिसंख्य पशु उपयोगी साबित होते हैं।
दिग्विजय सिंह का मानना है कि ‘हिंदुत्व’ शब्द का हिंदू धर्म और सनातनी परंपराओं से कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस नेता ने कहा- “आज कहा जाता है कि हिंदू धर्म खतरे में हैं। 500 साल के मुगल और मुसलमानों के शासन में हिंदू धर्म का कुछ नहीं बिगड़ा। ईसाइयों के 150 साल के राज में हमारा कुछ नहीं बिगड़ा, तो अब हिंदू धर्म को खतरा किस बात का है”।
उन्होंने आगे कहा कि खतरा केवल उस मानसिकता और कुंठित सोची समझी विचारधारा को है जो देश में ब्रिटिश हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो’ की विचारधारा थी। उसको प्रतिवादित कर अपने आप को कुर्सी पर बैठाने का जो संकल्प है, खतरा केवल उन्हें है। समाज और हिंदू धर्म को खतरा नहीं है।
इसी कार्यक्रम में बोलते हुए दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि सावरकर बीफ खाने को गलत नहीं मानते थे। उन्होंने कहा- सावरकर धार्मिक नहीं थे। उन्होंने यहां तक कहा था कि गाय को माता क्यों मानते हो। बीफ खाने में कोई दिक्कत नहीं है। वह हिंदू पहचान स्थापित करने के लिए ‘हिंदुत्व’ शब्द लाए, जिससे लोगों में भ्रम फैल गया।”
उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व मूल सनातनी परंपराओं और विचारधाराओं के विपरीत है। कांग्रेस नेता ने आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा- “प्रचारतंत्र में संघ से जीतना बहुत मुश्किल है। क्योंकि अफवाह फैलाना और अफवाह को आखिरी दम तक ले जाना उनसे बेहतर कोई नहीं जानता है। आज के युग में जहां सोशल मीडिया और इंटरनेट है, ये उनके हाथ में ऐसा हथियार आ गया है, जोकि अकाट्य साबित होता चला रहा है”।
दिग्विजय सिंह ने मंदिरों को लेकर कहा कि इस देश के इतिहास में भारत में इस्लाम के आने से पहले से ही धार्मिक आधार पर मंदिरों का विनाश होता रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो राजा, दूसरे राजा के क्षेत्र पर विजय प्राप्त करता था, उसने उस राजा के विश्वास पर अपने विश्वास को वरीयता देने का प्रयास किया।
आगे राम मंदिर के मुद्दे पर सिंह ने कहा कि 1984 में जब भाजपा केवल 2 सीटों तक ही सीमित रह गई, तो उन्होंने इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने का फैसला किया। क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी का गांधीवादी समाजवाद 1984 में विफल हो गया था।