जब कदम भटकने लगते हैं
लगी आंख फिर रात हुई, यह चलता क्रम दिन रात रहा।
कहीं अमीरी की सज धज, कहीं निर्धनता आघात सहा।
हो गये किशोर, यौवन की भोर, यह कैसी आयी मदमाती?
जीवन की राह अनेकों थीं, जो प्रेय श्रेय को ले जाती।
श्रेय मार्ग से भटक कदम, उठ गये प्रेय की राहों पर।
रे छीन निर्दोषों की खुशियां, ये जीवन बीता आहों पर।
सदा यहां किसको रहना है? जरा संभल कर चल।
जीवन बदल रहा पल-पल,
प्रात: से दोपहर हुई, अरे इस क्षणभंगुर जीवन की।
शमशान घाट पर देख जरा, जहां शाम हुई इस जीवन की।
रह गयी समाधि शेष देख, जो कल तक नृप कहलाते थे।
अतीत के गर्भ में सिमट गये, जो कल तक पूजे जाते थे।
इतिहास बेता खण्डहरों से पूछते, यहां किसकी थी राजधानी?
ताज, कुतुब दिलवाड़े के मंदिर, सांची के स्तूप।
कहां गये इनके निर्माता, कहां गये वे भूप?
अजंता एलोरा की गुफा तोड़ दो,
क्षण भर को तुम मौन।