ममता के सामने चुनौतियां भाग -२ —-————श्याम सुन्दर पोद्दार,भूतपूर्व महामन्त्री,जादवपुर बिश्वविद्यालय स्टूडेंट्स यूनियन
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१९७७ के विधान सभा चुनावों के पहले एक बार विजय सिंह जी नाहर ने मुझसे कहा था कि श्याम ! ईद मास्को के आदमी सिद्धार्थ शंकर राय ने कांग्रेस को ख़त्म कर दिया है। मैंने कांग्रेस को ३५ सीट से १०५ सीट पर ही नही पहुँचाया कांग्रेस के फ़्रंट को १२९ सीट मिली । वाम मोर्चा को १२३ सीट मिलीं। सीपीआई के फ़्रण्ट को २८ सीट मिलीं। सीपीआई फ़्रंट के सहयोग से अजय मुखर्जी को मुख्यमन्त्री बनाया गया और मै उपमुख्यमंत्री बना, कांग्रेस नेतृत्व वाली कांग्रेस फ़्रंट की सरकार बनी। पर इन्दिरा गाँधी सिद्धार्थ की बातों में आ गई और अपनी कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिराकर सिद्धार्थ शंकर राय को पश्चिम बंगाल के मामले में केंद्रीय मन्त्री बना दिया। सिद्धार्थ शंकर राय ने प्रिय रंजन-सुब्रत का समर्थन यह कहकर प्राप्त किया कि प्रियरंजन नया चित्तरंजन दास है व सुब्रत नया सुभाष चंद्र बोस है ।
क्लास ४ का विद्यार्थी जो टापर गोल्ड मेडलिस्ट है उसको बीच की क्लासों में न पढ़ा कर नही सीधे डॉक्टरेट की पढ़ायी दोगे तो वह पागल हो जाएगा। यही प्रिय-सुब्रत के साथ हुआ। मैं इन्हें पांचवी आठवीं की पढ़ायी पढ़ाई पढ़ाता तब १९७७ में कांग्रेस २० नही २०० सीट पाती। इन्दिरा गाँधी सुब्रत की क्षमता समझती थी । उसको प्रदेश की इन्दिरा कांग्रेस का महामन्त्री बनाया। सुब्रत ने कांग्रेस को १ सांसद से ५ सांसद पर पहुँचा दिया । २० विधायकों से ४९ पर पहुचा दिया। कलकत्ता कारपोरेशन में सत्ता के नज़दीक पहुँचा दिया। अचानक मास्को मेन प्रणब मुखर्जी ने इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद मास्को की मदद से प्रधान मन्त्री बनने का असफल प्रयास किया था ।राजीव गाँधी जब विजयी होकर प्रधान मन्त्री बने तो प्रणब मुखर्जी को केंद्रीय वित्त मन्त्री के पद से निकाल फेंका व बंगाल भेज दिया। प्रणब मुखर्जी ने मास्को मेन होने के चलते कांग्रेस का मेयर नही बनाकर परेश पाल व अन्य अपने पार्षदों से सीपीएम के पक्ष में वोट कराकर सीपीएम का मेयर बना दिया। फिर प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी बनाई । १९८७ के चुनाव में इनका कोई भी प्रत्याशी अपनी ज़मानत नही बचा सका।
१९९८७ का विधान सभा चुनाव प्रियरंजन दासमुंशी के नेतृत्व में कांग्रेस ने लड़ा । कांग्रेस की सीट १९८२ के सुब्रत मुखर्जी के समय की ४९ से घट कर ४० पर पहुँच गयी। राजीव गाँधी की हत्या के बाद धवन व मास्को लॉबी के सहयोग से प्रणब मुखर्जी कांग्रेस में फिर से जुड़ने में सफल रहे। पर इनका राज्य सभा का कार्यकाल इसी वर्ष समाप्त हो रहा था। कांग्रेस के पास मात्र ४० विधायक थे , जीतने के लिए ४९ विधायकों की ज़रूरत थी , ९ और विधायकों का समर्थन मिले, बिना प्रणब मुखर्जी राज्यसभा में पहुँच नही सकते थे। मास्को मेन ज्योति बसु ने दूसरे मास्को मेन प्रणब मुखर्जी को सीपीएम के प्रबल शत्रु कांग्रेस के उम्मीद्वार प्रणब मुखर्जी को सीपीएम से ९ वोट दिलाकर राज़्यसभा में भेज दिया।
१९९१ का विधान सभा चुनाव सोमेन मित्रा के नेतृत्व में लड़ा गया। कांग्रेस की सीट १९८७ से मात्र तीन सीट बढ़कर
कर ४३ हो गई। १९९६ के चुनाव में नरसिम्हाराव ने १४७ सीट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सोमेन मित्रा के गुट को दी, व १४७ सीट ही पश्चिम बंगाल युवक कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी के गुट को दी। कांग्रेस को १९९१ की ४३ सीट की तुलना में दोगुनी सीट ८६ सीट मिली। २००१ के चुनाव के पहले ममता बनर्जी ने अपनी तृणमूल कांग्रेस बना ली । भाजपा के केंद्रीय मंत्रीमंडल को त्याग कर विधान सभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ा । कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने ममता बनर्जी को २४५ सीट छोड़ीं व प्रदेश कांग्रेस को ४९ सीट छोड़ी। ममता बनर्जी को २४५ सीट लड़ने पर मात्र ६० सीट मिली व सोमेंन मित्रा की कांग्रेस को ४९ सीट लड़ने पर ३० सीट मिली।
सोमेंन मित्रा का स्ट्राइकिंग रेट ६१.२२ प्रतिशत रहा। ममता बनर्जी का स्ट्राइकिंग रेट २४.४८ प्रतिशत रहा । २००६ में ममता ने अपने बलबूते अकेले २९४ विधान सभा की सीटों पर चुनाव लड़ा। उसे २९४ में मात्र २९ प्लस १ सीट मिली। वहीं कांग्रेस को 24 सीट मिली। २०११ में मास्को मेन प्रणब मुखर्जी लगातार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मानस भुइयाँ के माध्यम से प्रयास रत थे। कांग्रेस ममता का गठबन्धन न हो नामांकन आरम्भ होने के एक दिन पहले सोनिया गाँधी के करीबी ओस्कर फ़र्नांडेस की नज़र में प्रणब मुखर्जी की टीएमसी का गठबन्धन नही होने देकर सीपीएम को जिताने की शाज़िश सामने आई। उन्होंने सोनिया गाँधी से कहकर कांग्रेस-टीएमसी गठबन्धन करवाया । सीपीएम पश्चिम बंगाल से बिदा हुवा। ओस्कर फ़र्नांडिस यह गठबन्धन नही करवाते तो ममता को २००६ में ६० सीट मिली थी उस के बजाय अधितम ८० सीटें मिल पाती। मुख्यमन्त्री कभी नही बन पाती। मेरे साथ पार्थ चटर्जी एमबीए में पढ़ते थे । ओस्कर फ़र्नांडीस मेरे माध्यम से पार्थ चटर्जी द्वारा ममता से सम्पर्क रखते थे। पार्थ चटर्जी ने मेरे को कहा कि लोग मुझे सूचना प्रसारण मन्त्री देखना चाहते हैं। तुम चाहो तो मुझे उद्योग मन्त्री बना सकते हो। मैंन ममता को पत्र लिखा उसने मेरा सम्मान रखा।
पार्थ चटर्जी उद्योग मन्त्री बनगये। मै भी स्वाभाविक आशा करता था । ममता बनर्जी जिसकी राजनीति को मैंने प्रणब मुखर्जी की कुटिल राजनीति से बचा कर पश्चिम बंगाल का मुख्यमन्त्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कम से कम छात्र परिषद का उससे सीनियर नेता होने के चलते मेरे पास पार्थ चटर्जी के साथ फूल लेकर आएगी व धन्यवाद देगी । ममता ने तो मेरी स्थिति ओस्कर फ़र्नांडिस के सामने ख़राब कर दी। क्योंकि मुख्य मन्त्री बनने के बाद वह कांग्रस को ही ख़त्म करने में लग गई। ममता कितनी बड़ी लड़ाकू नेता है – यह आप विधान सभा चुनावों में उसकी सफलता से समझ सकते है? लोक सभा चुनावों में तो उसकी स्थिति विधान सभा चुनाव से भी बुरी है। ममता सात बार लोकसभा चुनाव जीती। १९८४ में इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लिये उपजी लहर के चलते जीती । जादवपुर की तरह सीपीएम के गढ़ दमदम से आशुतोष लाहा भी जीते तो कोई बड़ी बात नही हुई। १९८९ में जादवपुर से हार गई। जादवपुर से पलायन करके दक्षिण कलकत्ता से लोकसभा का चुनाव लड़ा। राजीव गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लिये उपजी सहानुभूति के कारण १९९१ के लोकसभा चुनाव जीत गई। दक्षिण कलकत्ता लोकसभा केंद्र में २५ प्रतिशत मुसलमान मतदाता हैं। टांडा क़ानून विरोध कर १९९६ का लोकसभा चुनाव जीत गई। १९९८ व १९९९ का लोकसभा चुनाव वाजपेयी के साथ गठबन्धन करने के चलते जीत गई । २००४ का चुनाव स्वयम जीती । पर टीएमसी सब जगह हार गई। २००९ में लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ के गठबन्धन के चलते जीती। प्रशांत किशोर विधान सभा निर्वाचन में पूरी तरह असफल रहे। प्रशांत किशोर कहते थे कि भाजपा २०० तो क्या १०० सीट के नीचे आएगी। भाजपा २०० सीट का अनुमान इस लिए लगा रही थी कि जिस तरह भाजपा का उत्थान १० प्रतिशत वोट से ४० प्रतिशत वोट व २ सीट से १८ लोकसभा की सीट मिली है, वह क्रिया चलती रहेगी तथा सीपीएम, ममता व नयें वोटर उसको वोट देंगे तो १२८ बिधान सभा केंद्रो में लाखों बंगाली वोटर भाजपा से टूटकर ममता को मिलेगा।
भाजपा को लोकसभा चुनाव में २ करोड २८ लाख वोट मिले थे बिधान सभा चुनाव में भी उतना ही २.२८करोड़ वोट मिले। प्रशांत किशोर भाजपा से टीएमसी में वोट डालने में असफल रहे। हाँ, एक बात में सफल रहे कि टीएमसी का वोट भाजपा में नही गया । तब तो भाजपा को १२८ सीट मिलनी थीं। टीएमसी को १६४ व कांग्रस को विधानसभा में १२लोकसभा चुनाव परिणाम के हिसाब से। वसमफ़्रंट-कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में ७२ लाख वोट व १२ विधान सभा में बढ़त मिली थी। ममता ने गुजराती गुंडा मोदी गुजराती गुंडा अमित शाह का नारा मुस्लिम इलाक़े में देकर गुजरात दंगे की याद दिला दी । ४० लाख मुस्लिम मतदाताओं ने सीपीएम-कांग्रेस को वोट नही देकर ममता को दिया व ममता १६४ के बजाय २१३ पहुँच गयी व भाजपा १२८ के बजाय ७८ पर आ गयी। मेरा इन्दिरा गांधी परिवार के विस् श्री उमा शंकर जी दीक्षित से बहुत नज़दीकी सम्बंध था। उन्होंने मुझे संजय गाँधी को इन्दिरा गाँधी राजनीति में क्यों लाई इस बात की सच्चाई बताई। सिद्धार्थ शंकर राय ने पहले तो इन्दिरा गाँधी को इलाहाबाद हाई कोर्ट केस में हराया।
इमरजेंसी लगवाया, फिर एक दिन देव कान्त बरूआ व सिद्धार्थ शंकर राय इन्दिरा जी के पास गये। बरूँव ने इन्दिरा जी से कहा कि मेडम आपको इलाहाबाद कोर्ट केजजमेंट के अनुसार प्रधान मन्त्री का पद छोड़ना होगा आप सिद्धार्थ को प्रधानमन्त्री बना दे मै कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ देता हूँ। आप कांग्रेस अध्यक्ष बन जाएं। थोड़े दिन की बात है आप क़ेस जीत जाऐंगी। तब सिद्धार्थ प्रधान मन्त्री का पद छोड़ देंगे। आप फिर से प्रधानमन्त्री बन जाई एगा। इन्दिरा जी ने सिद्धार्थ से पूछा कि यह कामआज ही करना होगा क्या ? सिद्धार्थ ने कहा एक सप्ताह में भी यह काम कर सकते है।तब इन्दिरा जी ने कहा कि आप कल आइए । मैं कल ही यह काम कर दूँगी। फिर परिवार में विचार विमर्श करके दूसरे दिन जब देवकांत बरूवा व सिद्धार्थ शंकर राय आये तब इन्दिरा जी ने कहा मै प्रधान मन्त्री का पद छोड़ने को तैयार हूँ। पर मेरे बाद प्रधानमंत्री पण्डित कमलापति त्रिपाठी बनेंगे। इतना सुनते ही सिद्धार्थ शंकर राय ने कहा मेडम मैंने फिर से देख लिया । आपको प्रधानमन्त्री का पद छोड़ना नही पड़ेगा।
अब इन्दिरा जी को कांग्रेस में जुड़े इन कम्युनिस्टों की शैतानी समझ में आई ।।तब इन्दिरा जी ने संजय गाँधी को राजनीति में उतारा और कांग्रेस मेंबको निकालना आरम्भ किया। हर समय छात्रों ने राज्य में जब शासन अति कर देता है तो छात्र समाज छात्र क्रांति कर शासन को दण्डित करता है आजपश्चिम बंगाल में तानाशाही का शासन ने छात्रों से उनके स्टूडेंट्स यूनियन का अधिकार छीन रक्खा है। जनता त्राही त्राही कर रही है। गणतंत्र विपन्न है । प्रार्थियों को निर्वाचन के समय आतंकित किया जाता है । दलमत निर्विशेष से ऊपर उठकर छात्र नेतावो को इसके बिरुद्द आवाज उठानी चाहिए। अन्यथा बंगाल रसातल में चला जायेगा।
सुब्रत दा मरे नही मारे गये है। २०१९ के लोकसभा चुनाव में बाँकुरा से पराजित होकर सुब्रत दा आये। तब मै अपने एक जादवपुर के साथी डॉक्टर सांवर धनानिया के साथ सुब्रत दा से मिला । उन्होंने अपने दिल का दर्द मेरे से बाँटा। उन्होंने कहा कि ममता मुझे संसद में भेजना चाहती तो मुझे दक्षिण कलकत्ता से लड़वाती। वह तो अभिषेक के रास्ते का मुझे काँटा समझती थी । इसलिए बाँकुरा भेजा। जहां की जनता टीएमसी से व मुनमुन सेन से बहुत नाराज़ थी। ५ वर्ष में वह कभी भी बाँकुरा नही गयी। यह गहरा ज़ख़्म सुब्रत दा को ममता ने दिया। अन्यथा सुब्रत दा और दस वर्ष ज़िंदा रहते। मुझसे जोरासांको विधानसभा का १९८२ में टिकट मिल जाने के बाद प्रणब मुखर्जी ने षड़यंत्र करके कटवा दिया।मैंने स्थानीय राजनीति से हाथ जोड़ लिया। बाद में जॉर्ज ऑस्कर से मिलाया । उस ने राजीव जी से मिलाया। बस, उतनी भर राजनीति से जुड़ा रहां। एक बार प्रिय दा ने पत्र लिखा कि तुम जादवपुर की तरह फिर से सक्रिय क्यों नही होते ? अब सुब्रत दा के साथ ममता ने अन्याय किया है। अभिषेक बनर्जी के लिये ही तो। मै अबडायमंड हार्बर से चुनाव लड़ूँगा। अभिषेक बनर्जी की हिम्मत हो तो मुझे हरा कर दिखाए।
ममता बनर्जी एकदम नाटकबाज है। कभी गले मे फाँसी लगाती है, कभी अपने पर हमला करवाती है फिर उसी हमला करने वाले को अपनी पार्टी का टिकट देती है। कभी पाँव तोड़ने का नाटक करती है। कभी प्रधानमंत्री की कुर्शी का दावेदार बनती है । ममता अच्छे से जानती है कि शरद पवार, ड़ीमक़े,शिबू सोरेन की सरकार गिर जायेगी , यदि वे कांग्रेस का साथ छोड़ देंगे। उसका लक्ष्य अपने को प्रधानमन्त्री का उम्मीदवार घोषित कर बंगाल की सब ४२ सीट जीतना है।