अमितशाह की ‘फीलगुड’ और भाजपा, भाग-दो

amit shahअमितशाह की भाजपा अपने प्रचण्ड बहुमत के नशे में चूर ‘फीलगुड’ की बीमारी से ग्रसित थी इसलिए यह भूल गयी कि सरकार की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाना पार्टी का काम होता है। खरगोश की भांति अपनी गति पर भरोसा कर पार्टी आराम से सोती रही और विपक्ष का कछुआ भूमि विधेयक विरोधी प्रचार में आगे निकल गया। इस प्रचार का नेतृत्व भी एक ऐसा नया लडक़ा कर रहा था जिसके पास न तो आंकड़े हैं और ना ही बोलने के लिए कंठ की साधना है। मोदी इस नये लडक़े राहुल गांधी को कभी ‘युवराज’ कहा करते थे तो कभी ‘मां बेटे’ की सरकार कहकर उसे ‘घायल’ किया करते थे। पार्टी के खरगोशी भरोसे के नेतृत्व को इसी ‘नये लडक़े’ ने प्रचार में बाजी मारकर भाजपा को घेरना और घायल करना आरंभ कर दिया। जिससे लोगों को लगा कि पार्टी में कहीं न कहीं तो दोष है। अमितशाह शहंशाह की भाजपा आज भूमि विधेयक पर घिरी सी खड़ी है। उसका ‘फीलगुड’ का बुखार उतर गया है और उसे लगने लगा है कि भूल हो गयी है। वैसे किसी भी प्रकार की सुखदभ्रांति का परिणाम यही होता है कि लुटने के पश्चात ही ज्ञात होता है कि कहीं भूल हो गयी है।

अब आते हैं अगली बात पर। सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे सिंधिया को बचाने के लिए ललित मोदी प्रकरण में भाजपा जिस प्रकार अब बचाव की मुद्रा में खड़ी दीख रही है वह भी उसके लिए असहज ही नही अपितु लज्जाजनक स्थिति भी है। यह पार्टी का भीतरी मामला हो सकता है कि वह किस नेता का बचाव करे और किसका नही। परंतु यहां दूसरी बात है। यहां पार्टी के नेतृत्व की कार्यनीति कर प्रश्न है। पार्टी ने पुन: बहुत देर के पश्चात निर्णय लिया कि पार्टी अपनी विदेशमंत्री के साथ खड़ी है परंतु तब तक जनता को यह संदेश जा चुका था कि मामला गड़बड़ है।

जिस पार्टी में अपूज्यों, का पूजन और पूजनीयों का अपूजन होने लगता है, उसमें ऐसे ही बचकाने निर्णय लेते हुए नेता दिखाई देते हैं। शांता कुमार जो कि पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और भाजपा के एक चिंतनशील मुख्यमंत्री के रूप में जिनका नाम रहा है उनका यह कहना उचित ही है कि भाजपा के बड़ी पार्टी बनने की बात इतनी महत्वपूर्ण नही है जितनी कि ‘अच्छी पार्टी’ बनने की बात महत्वपूर्ण है। भाजपा के साथ जितने लोगों ने उसके सत्तारूढ़ होने पर अपने आपको सदस्य के रूप में सह संबद्घ किया है वे सभी पानी के से बुलबुले हैं। सरकार उनसे नही चलने वाली। ना ही वे लोगों को अपने साथ मतदाता के रूप में जोड़ पाएंगे। उन्हें भी सरकार के अच्छे कार्यों की दरकार है और उन्हें ऐसे नेतृत्व की भी इच्छा है जो अपने आम कार्यकर्ता से भी हंसकर बात कर सके। लोग उत्तर प्रदेश के भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को यूं ही स्मरण नही करते हैं वह अपने छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी मिलने का समय देते थे और उसका उत्साहवर्धन करने के लिए अपने आपको सदा उसके साथ खड़ा दिखाते थे। अमितशाह की भाजपा में ऐसे अनुभवी राजनीतिज्ञों से कुछ सीखने की इच्छाशक्ति का अभाव दिखाई देता है। इसलिए ‘बुजुर्ग मिटाओ, भाजपा बचाओ’ की कार्यनीति पर भाजपा चल रही है, यह आत्म प्रवंचना का मार्ग है।

प्रधानमंत्री मोदी से लोगों को अभी बहुत कुछ अपेक्षाएं हैं। लोग उनके प्रति अभी बंधे हुए हैं। उन्होंने अपनी सरकार के एक वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर कहा था कि-‘‘हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि हम पर कोई दाग नही है।’’ पर अब जनता देख रही है कि भाजपा पर अनेकों दाग हैं। इन दागों को छिपाने के लिए भाजपा कांग्रेसियों से कह रही है कि तुम तो महादागी हो। तुम्हारे दाग तो हम से भी बड़े हैं। प्रधानमंत्री जी! भाजपाइयों से कहो कि ये कोई तर्क नही है, यह तो कुतर्क है, जबकि आपकी सरकार से लोगों को वितर्क की अपेक्षा थी। अपने अध्यक्ष से कहो कि मुस्कराना सीखें, और लोगों को साथ लेकर चलें। भाजपा के पास राजनाथ भी हैं, गडक़री भी हैं, और कल्याणसिंह भी हैं। नये नेताओं को आगे बढ़ाने के लिए पहले बड़ों की अंगुली पकडऩा सिखाओ। अंगुली छोडक़र भागोगे तो ‘फीलगुड’ चिपट जाएगा, और नाले में जा पड़ोगे। तब क्या मिलेगा, आंखें खुलेंगी तो ज्ञात होगा कि 2004 फिर दोहरा दिया गया है। याद रहे इतिहास अपने आपको नही दोहराता है, अपितु लेाग इतिहास से कोई शिक्षा खबर न लेकर स्वयं ही इतिहास के गडढे में जा पड़ते हैं। पार्टी नेतृत्व के अहंकार के कारण इतिहास का गडढा गहरा रहा है-इससे बचके रहने की आवश्यकता है। बहुतों की बलि ले सकता है।

‘‘सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।’’

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