पुस्तक समीक्षा : अंधेरा छटेगा जरूर
‘अंधेरा छटेगा जरूर’- पुस्तक के लेखक डॉ आदित्य कुमार गुप्त जी हैं । गुप्त जी की यह पुस्तक काव्य में है । जिसमें उन्होंने अपनी 46 कविताओं को स्थान दिया है।
‘अंधेरा छटेगा जरूर’ नामक उनकी कविता के नाम से ही इस पुस्तक का नामकरण किया गया है। वास्तव में उनकी यह कविता इस पुस्तक में 11वीं कविता के रूप में है।
वास्तव में पुस्तक बहुत ही आशावादी दृष्टिकोण से लिखी गई है। कवि का धर्म भी यही होता है कि वह सोए हुए, भटके हुए या निराशा की निशा में अपने आपको उदासियों को सौंप देने वाले समाज में कुछ आगे बढ़ने की ललक पैदा करे। लेखक अपने इस लेखन धर्म के प्रति पूर्ण ईमानदार रहते हुए दिखाई देते हैं।
वे कहते हैं —
माया मोह न मन गयो ,तजी न बंकिम चाल।
अब काहे क्रंदन करे पकड़ लियो सिर काल।।
मानव जीवन में आने वाले पतझड़ को भी वह दूर करने के प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं । वह निराश मानव मन को प्रोत्साहित करते हुए लिखते हैं :–
पतझड़ मौसम देख मानव क्यों होता हैरान?
नव किसलय दल आएंगे रोशन होय जहान
पक्षी साथ जो छोड़ गए तरु के दुर्दिन देख ।
वापस ले फिर आएंगे सब किस्मत का लेख।।
आज के समाज में माता पिता के प्रति जिस प्रकार उपेक्षा का भाव नई पीढ़ी दिखा रही है वह भी कवि को पसंद नहीं है। माता पिता के प्रति आज की पीढ़ी को समर्पित और आस्थावान बनाने के लिए यह अपने दोहे मेंकहते हैं :–
पिता विशाल वट वृक्ष सम बैठे घर सब ठाँव ।
जन्म जन्म के पुण्य फल मिले पिता की छांव।।
कवि बहुत ही भावुक और संवेदनशील होता है। जब तक भावुकता और संवेदनशीलता प्रस्फुटित ना हो तब तक कोई कविता बनती भी नहीं। कवि का अलग ही अंदाज होता है। वह किससे बात करने लगे ? यह समझ नहीं आता।
प्रकृति के कण-कण के साथ वह बड़ी आत्मीयता से बातें करने का अभ्यासी हो जाता है । उसकी संवेदनशीलता उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित करती रहती है। गुप्त जी भी कवि के इस निराले गुण से अछूते नहीं हैं। वह वट वृक्ष से बातचीत करते हुए लिखते हैं –
क्या सोच रहे आएगा कोई बुद्ध?
तपाकर स्वयं को बनाने प्रबुद्ध।
तुम्हारी सघन जटाओं की ले शरण
जगत प्रपंच भव क्लेश के क्षरण।
इसी प्रकार उनकी प्रत्येक कविता में उनकी संवेदनशीलता बड़ी सजीवता के साथ बोलती है। यह पुस्तक कुल 120 पृष्ठों में लिखी गई है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्त्यागार , धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता जयपुर है। पुस्तक प्राप्ति के लिए 0141- 2310785, 4022382, 2322382 पर संपर्क किया जा सकता है। पुस्तक का मूल्य ₹200 है।
– डॉ राकेश कुमार आर्य