अपने आपको परमपिता परमात्मा के साथ जोड़ दो
ना तो परमात्मा का जन्म होता है और ना ही प्रकृति का जन्म होता है इस अर्थ में दोनों एक समान है। जगत में रहते हुए सभी मिथ्या धारणाओं को त्याग दें । अपने आप पर भरोसा करें और सर्वत्र परमपिता परमात्मा की सत्ता का अनुभव करते रहें। अपने भीतर गहरी प्यास अर्थात् परमात्मा से मिलन के आभास को जगाते जाएं। सारी प्रकृति आपका साथ देने लगेगी।
परमपिता परमात्मा के प्रति समर्पण का भाव पैदा करते हुए अनुभव करें कि –
‘मैं तुझ में समा जाऊं, तू मुझमें समा जाए।’
दो की सत्ता का भाव हटा दो। अब उसके साथ एकरस होने का आनंद लो। ‘मैं’ को मिटा दो और अपने आपको शून्य में ले जाओ।
जैसे – जैसे हमारा ऐसा अभ्यास बढ़ता जाता है वैसे- वैसे ही हमारी उन्नति होती जाती है। आत्मा का परिष्कार होने लगता है और हम अपने आपको ईश्वर के कहीं अधिक निकट समझने लगते हैं। परमपिता – परमात्मा की ऐसी कृपा – दृष्टि जिस पर हो जाती है वह द्वंद -भाव से दूर हो जाता है। उसके लिए सर्वत्र प्रेम ही प्रेम रह जाता है। वह सब का प्रेमी बन जाता है और सब उसके प्रेमी बन जाते हैं।
प्रेम में पूर्ण समर्पण होता है । वह लेना नहीं जानता। देना ही जानता है। जहाँ देने का भाव आ जाता है वहां यज्ञ की भावना जीवन का श्रृंगार बन जाती है । यज्ञ की इसी पवित्र भावना से जीवन पवित्रतम होता जाता है।
पूर्ण समर्पण के पश्चात कुछ नहीं बचता, परंतु जो कुछ बचता है वही परमात्मा है। संसार में जो कुछ भी दिखाई देता है वह परिवर्तनशील है । जो आज दिखाई दे रहा है वह कल नहीं होगा और जो कल दिखाई देगा वह परसों नहीं होगा।
इस परिवर्तनशील संसार को परम सत्य मान लेना बहुत बड़ी भूल है।
पूरे ब्रह्मांड में एक ध्वनि गूंज रही है । जिसे हमारे ऋषियों और आज के वैज्ञानिकों ने ओ३म की ध्वनि कहा है। ओ३म की उस ध्वनि के साथ अपना तादात्म्य स्थापित करो और उसे अपने हृदय में गूंजता हुआ अनुभव करो । इससे परम आनंद की उपलब्धि होती है। संसार के जो लोग इस ओ३म की ध्वनि के साथ अपना तारतम्य स्थापित कर लेते हैं वही मोक्ष को प्राप्त होते हैं और संसार के सभी क्लेशों से अपने आपको बचाने में सफल हो जाते हैं।
जीवन में सफलता चाहते हो तो अपने आपको शून्य के साथ जोड़ दो। परमपिता परमात्मा के सामने पूर्ण समर्पण कर दो।उनके ज्ञान को हृदयंगम कर लो । जीवन सुधर जाएगा। निखर जाएगा । संवर जाएगा और जो कुछ हमें अभी खराब हुआ सा सूना सा दिखाई देता है वह सब भी फिर से सुधर जाएगा।
– श्रीमती कमलेश भड़ाना
फरीदाबाद
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