प्रतिशोध और केवल प्रतिशोध
भारत में पाकिस्तान ने पुन: एक बार अस्थिरता फैलाकर पंजाब के गुरदासपुर जिले में एक पीड़ादायक आतंकी घटना को अंजाम दिया है। इस पर हम फिर चुप लगा गये हैं। ‘अहिंसा, चरखा और सत्याग्रह’ के प्रपंच ने भारत के इतिहास को और हमारी वीर परंपरा को इतना विकृत और छलनी कर दिया है कि कुछ भी नही कहा जा सकता। 1940 के मदुरा अधिवेशन में वीर सावरकर ने हिंदू महासभा की बैठक को संबोधित करते हुए कहा था कि-हिंदुओं को अहिंसा, चरखा व सत्याग्रह के प्रपंच से सावधान रहना चाहिए। संपूर्ण अहिंसा की नीति आत्मघाती नीति है, एक बड़ा भारी पाप है। हिंदुओं को इस समय अधिकाधिक संख्या में सेना में भर्ती होना चाहिए। सैनिकीकरण से शस्त्र विद्या की प्राप्ति होगी और इसी विद्या के आधार पर हिंदू जाति वीर और अपराजेय बन सकती है।
इस भाषण का कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि सेना में भर्ती होने का सुझाव ठीक नही है, हमें तो सत्य, अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही स्वाधीनता प्राप्त करनी है। गांधीजी के इस कथन को वीर सावरकर मौन रहकर सुनने वाले नही थे। इसलिए उन्होंने इसका उत्तर देते हुए कहा था कि सत्य, अहिंसा से ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने की कल्पना किसी बड़े किले को बारूद की जगह फूंक से उड़ाने का दिवास्वप्न देखने के समान ही हास्यास्पद है। अत्याचार व आतंक पर आधारित ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए पहले उसकी नींव में बारूद ही लगानी पड़ेगी और यह 1857 से लगायी जाती रही है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी भारत ने अहिंसा, चरखा और सत्याग्रह को अपना राष्ट्रीय चरित्र बना लिया। जिससे यह अतार्किक और अवैज्ञानिक बात एक सत्य के रूप में प्रतिष्ठित हो गयी कि हमने एक मजबूत किले को बिना बारूद के फूंक से ही उड़ा दिया।
किसी भी जाति को या देश को खतरे कभी कम नही होते हैं, पर हमने यह मान लिया कि हमारे लिए अब कोई खतरा नही है। 1947 में हमने खतरों को जीत लिया और हमेशा के लिए खतरों को समाप्त भी कर दिया है। पर हमने यह नही सोचा कि 1947 में तो एक ऐसे खतरे की शुरूआत हुई थी, जो हमारे साथ सदियों तक के लिए नत्थी कर दिया गया था। निस्संदेह वह खतरा रूपी ‘शत्रु राष्ट्र’ पाकिस्तान ही था। हम इस शत्रु के षडय़ंत्रों को फूंक से उड़ाने का प्रयास पहले दिन से कर रहे हैं और यह शत्रु है कि उड़ता ही नही है। हमें अब समझ लेना चाहिए कि आजादी को सुरक्षित रखने के लिए हमें अपने सैनिकीकरण पर ध्यान देना चाहिए। भारत के इतिहास, संस्कृति धर्म और अस्तित्व को मिटाने के कुचक्रों का अंत नही हुआ है। इसलिए विराम लगाने की या विश्राम करने की भ्रांति यदि पाली तो अपना सब कुछ मिटता देखने के लिए हम अभिशप्त हो जाएंगे।
बात 1941 की है। मुस्लिम लीग की योजनानुसार आसाम को मुस्लिम बहुल बनाने के लिए वहां मुसलमानों को बसाया जा रहा था। जिसका सावरकर जी ने विरोध किया तब उन्होंने कहा था कि यदि आसाम में मुसलमानों की संख्या बढ़ जाने दी गयी तो भविष्य में देश के लिए यह भारी खतरा सिद्घ होगा। मुसलमान हिंदुओं को भगाकर नये अस्तित्व का निर्माण करने का षडयंत्र रचेंगे। इस पर नेहरू जी ने कहा कि आसाम में खाली जगह पड़ी है, मुसलमान वहां जाकर बस रहे हैं, प्रकृति नही चाहती कि कहीं रिक्त स्थान पड़ा रहे। तब सावरकर जी ने पलटकर पुन: उत्तर दिया कि जवाहर लाल नेहरू न तो दार्शनिक हैं, और न शास्त्रज्ञ। उन्हें मालूम नही कि प्रकृति घुस आयी विषाक्त वायु को दूर हटानी चाहती है।
समय ने सिद्घ किया कि सावरकर कितने ठीक थे? आज केन्द्र में सावरकर जी के प्रति श्रद्घा रखने वाले मोदी की सरकार है। पाकिस्तान की आतंकी प्रवृत्ति को रोकने के लिए उन्हें सावरकर वादी विचारों से ही आगे बढऩा होगा। देश को बचाने के लिए किले को बारूद से उड़ाने की योजना पर कार्य करने की आवश्यकता है। पर यह भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि किये गये कार्य का ढोल पीटने से बचा जाए। काम हो और लोगों को परिणाम दिखायी दें। माना जा सकता है कि मोदी देश की सभी समस्याओं का समाधान तुरंत नही दे सकते। उनकी इस बात से सहमत होकर देश उनके साथ चलते हुए प्रतीक्षा करने को तैयार है, परंतु फिर भी कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जो तुरंत समाधान चाहती हैं। पाकिस्तान नाम की समस्या और उससे आयातित आतंकवाद ऐसी ही समस्या है।
हमें पाकिस्तान को अपना शत्रु देश घोषित करना होगा। उससे मित्र देश के संबंध बनाकर देख लिए, परंतु वह अपनी प्रकृति से हटा नही। सांप को दूध पिलाने का अर्थ यह नही हो जाता है कि वह आपका मित्र हो जाएगा। सांप अपने सांपत्व को छोड़ नही सकता। इसलिए अपने वीरत्व की रक्षा के लिए वीरत्व को छोडऩा पाप है। पंजाब की घटना में शहीद हुए लोगों का बलिदान बार-बार कह रहा है-प्रतिशोध! केवल प्रतिशोध!!