घृणा, ईष्र्या, हिंसा, शत्रु, जिनको गले लगाता है।
प्रेम, त्याग, सहचर्य, अहिंसा, मित्रों से नाक चढ़ाता है।
घृणा है जननी युद्घों की, जो करती सृष्टि का अनिष्ट।
जब हृदय में ये पनप उठे, तो काटती है संबंध घनिष्ठ।
ये प्रेय मार्ग का गह्वर है, जिसे तू समझ रहा आनंद।
घृणा पीओ, प्रेम को बांटो, कह गये ईशा और दयानंद।
पुजते हैं, पुजते रहेंगे, जिन्होंने प्रेम दिया अविरल।
जीवन बदल रहा पल-पल,
पल-पल बीत रही है, यहां पर हर प्रणी की आयु।
रहे अनादि इस सृष्टि में, नभ, भू, जल, अग्नि, वायु।