इनके संयोग से जन्म लिया, इनमें ही होना है विलीन।
जीव, ब्रह्मा, प्रकृति, अजर है, सृष्टि की ये शक्ति तीन।
है अरबों सौर परिवार यहां, उन पर भी जीवन संभव है।
किंतु अपना विस्तीर्ण ब्रह्माण्ड, ये कहना अभी असंभव है।
बोलो सूरज चंदा बोलो, तुम से भी बड़े सितारे हैं।
सृष्टि से प्रलय, प्रलय से सृष्टि, के कितने देखे नजारे हैं?
मृत्यु से जीवन जूझ रहा, जाती है जहां तक भी दृष्टि।
कब कितनी मिट गयी सभ्यता, कैसे क्यों उजड़ी सृष्टि?
ये दौड़ रही है सरिता क्यों, यह गरज रहा है सागर क्यों?
सर्द गर्म वायु के थपेड़ों में, सन-सन की सरगम क्यों?