मनुष्य को अपने जीवन की रक्षा के लिए ईंट पत्थर से बने भौतिक मकान की आवश्यकता तो होती ही है। और प्रायः लोग अपने अपने मकान में रहते भी हैं। संसार में कुछ निर्धन व्यक्ति भी हैं, जिनके पास अपना मकान नहीं है। वे भी कहीं-न-कहीं सिर छुपाने की जगह ढूंढ लेते हैं, और जैसे तैसे अपना गुजारा कर लेते हैं। यह तो भौतिक शरीर की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। ठीक है।
परन्तु अब जो मुहावरे की भाषा है, उसमें ऐसा कहा जाता है, कि *"जो व्यक्ति दूसरों के हृदय में रहता है, वह बहुत भाग्यशाली और पुण्यात्मा होता है।"* ऐसा व्यक्ति अपने मकान में तो रहता ही है। परंतु साथ-साथ वह दूसरों के हृदय में भी रहता है। इस वाक्य का तात्पर्य यह है, कि दूसरे लोग उसे अपने हृदय में रखते हैं। अर्थात् उसे हृदय से प्रेम करते हैं। उसे चाहते हैं। उसके प्रति श्रद्धा और विश्वास रखते हैं। *"ऐसा क्यों होता है? सभ्यता सेवा नम्रता परोपकार दान दयालुता सत्य न्याय धर्माचरण इत्यादि उत्तम गुणों को धारण करने के कारण।*"
संसार का नियम है, कि *"यहां गुणों की पूजा होती है, व्यक्ति की नहीं।"* वे गुण जिस भी व्यक्ति में होंगे, लोग उस व्यक्ति की पूजा अर्थात सम्मान करेंगे। उस से प्रेम करेंगे। उस पर श्रद्धा विश्वास रखेंगे। उसे अनेक प्रकार से सुख देंगे। *"जैसे आज करोड़ों व्यक्तियों के हृदय में श्री राम जी श्री कृष्ण जी इत्यादि महापुरुष निवास करते हैं। आजकल भी जो लोग देश धर्म की रक्षा के लिए अपना तन मन धन लगाते हैं, उनको भी समाज एवं शासन की ओर से बहुत सम्मान मिलता है। वे भी संसार के लोगों के हृदय में निवास करते हैं।"*
और जिस व्यक्ति में सभ्यता सेवा नम्रता परोपकार दान दया इत्यादि उत्तम गुण नहीं होंगे, उसे इन सब सुविधाओं की प्राप्ति नहीं होगी। इससे पता चलता है कि *"व्यक्ति मुख्य नहीं है, गुण ही मुख्य हैं।"* इसलिए गुणों की प्रधानता होने से गुणों को ही महत्व दिया जाता है। *"अब यह ईश्वर की कृपा है, कि जिन मनुष्यों/महापुरुषों में ऐसे उत्तम गुण होते हैं, तो उन गुणों के सम्मान के साथ साथ, उन मनुष्यों/महापुरुषों का भी सम्मान हो जाता है।"*
यदि आप भी इसी प्रकार से किसी के हृदय में रहना चाहते हों, तो सीधा सा उपाय है, अपने अंदर उत्तम गुणों को धारण करें। *"यदि वे सभ्यता सेवा नम्रता परोपकार दान दया इत्यादि उत्तम गुण आपके अंदर होंगे, तो निश्चित रूप से लोग आपको भी अपने हृदय में रखेंगे। और जब आप उनके हृदय में निवास करेंगे, तब जो आपको आनंद मिलेगा, वह अन्य किसी भौतिक पदार्थ की प्राप्ति से नहीं मिलता। कितना ही सोना चांदी रुपया पैसा मकान मोटर गाड़ी आदि भौतिक संपदा आप इकट्ठी कर लें। "इन चीज़ों से वह सुख नहीं मिलता, जो दूसरों के हृदय में निवास करने से मिलता है।" चाहें, तो परीक्षण करके देख सकते हैं। यदि आपका परीक्षण हो जावे, और यह बात सत्य प्रतीत हो, तो अवश्य ही उत्तम गुणों को धारण करें, दूसरों के हृदय में निवास करें, भाग्यशाली और पुण्यात्मा बनें। तथा सम्मान प्राप्त करके सुखी होवें।"*
—– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।