राष्ट्रगान के एक शब्द अधिनायक को लेकर नई बहस शुरू है। बहस और अदालती मामले पहले भी सुर्खियां बने हैं। इस बार राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठे दो लोगों में इस मुद्दे पर मतभिन्नता है। अधिनायक शब्द हटाने या न हटाने को लेकर राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह और त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय आमने-सामने हैं। कल्याण सिंह का मानना है कि जन-गण-मन अधिनायक जय हे में अधिनायक शब्द वास्तव में अंग्रेजी हुकूमत की प्रशंसा है। इसे हटाकर जन-गण-मन मंगल दायक कर दिया जाना चाहिए।
वहीं राज्यपाल तथागत रॉय ने ट्वीट कर कहा है कि अधिनायक शब्द को हटाने की कोई जरूरत नहीं है। आजादी के 67 साल बाद भी आज हमारे अधिनायक क्या अंग्रेज ही हैं? मजेदार बात यह है कि दोनों ही राज्यपाल भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं। कल्याण सिंह का मानना है कि इस गीत को वर्ष 1911 में कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने तब लिखा था, जब भारत में अंग्रेजों का राज था और असल में यह उन्हीं की तारीफ है, जिसकी अब कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने संसद में सभी दलों को मिलकर इस पर विचार करने और संशोधन करने की सलाह दी है।
प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर ये कौन अधिनायकऔर भारत भाग्य विधाता हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं? यह सर्वविदित है कि सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले जाना उपयुक्त समझा और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। सम्पूर्ण भारत में उस समय लोग अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह से भरे हुए थे। ऐसी परिस्थिति में अंग्रेजों ने अपने इंग्लैण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जायें। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर एक गीत जॉर्ज पंचम के स्वागत में लिखने का दबाव बनाया गया। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक अर्थात डाइरेक्टर भी रह चुके थे । उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था, और स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के लिए बहुत सहानुभूति थी। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल हैं-‘जन गण मन अधिनायक’ जय हे भारत भाग्य विधाता। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जार्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता चलता है कि ये तो वास्तव में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।
इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है -भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महाराष्ट्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदियां जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित हैं, खुश हैं, प्रसन्न हैं , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते हैं और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते हैं। तुम्हारी ही हम गाथा गाते हैं। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो, जय हो जय हो।
जार्ज पंचम के 1911 में भारत आगमन पर उसके स्वागत में यह गीत गाया गया। वापस इंग्लैंड लौटने पर जार्ज पंचम ने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है? जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लैण्ड में भी किसी ने नहीं की। इस पर वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जार्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जार्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।
उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया, तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्योंकि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा कि आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक ‘गीतांजलि’ नामक रचना लिखी है उस पर मुझे यह पुरस्कार दिया जाए लेकिन इस गीत के नाम पर मत दीजिए और यही प्रचारित किया जाये कि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वह गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जार्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
लेकिन रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों के प्रति यह सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में, जब जलियांवाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा कि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डांटा कि अभी तक तुम अंग्रेजों की अंधभक्ति में डूबे हुए हों ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नींद खुली और जलियांवाला बाग़ काण्ड का टैगोर ने विरोध करते हुए नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजों के खिलाफ होने लगे थे।
रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और आई सी एस ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था। यह 1919 के बाद की घटना है। इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजों के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक
सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी मृत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रविन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा कि ये ‘जन गन मन’ गीत न गाया जाये। 1914 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार अर्थात कोअलिशन गवर्नमेंट बने।
जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।
गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना।
हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत जन गण मन गाया करते थे और गरम दल वाले वन्दे मातरम।
One reply on “जन-गण-मन मंगलदायक जय हे”
बहुत ही बढ़िया जानकारी और बिल्कुल नई जानकारी