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कविता

ज्योति मुस्कुराई है

ज्योति मुस्कुराई है !

दिवाली फिर से रोशन है,
दीवों में ज्योति मुस्कुराई है…

घोर अंधेरी रात ढली,
दीपोत्सव में तरुणाई है !

चलो पटाखे नहीं छोड़ेंगे,
प्रदूषण से ठनी लड़ाई है…

लेकिन दूसरे मजहब पर भी,
कभी ऐसी पाबंदी लगाई है ?

बकर- ईद पर लाखों पशुओं की,
गर्दन पर छुरी चलाई है…

खून बहे नाली में पानी जैसे,
क्या उस पर आवाज उठाई है ?

मुल्ले – मौलवियों की तनख्वाह,
किसने, कितनी बार बढ़ाई है…

छोटे मंदिरों के पुजारियों की
हालत, कभी नजर नहीं आई है ?

तुष्टीकरण की राजनीति,
अब तक बहुत चलाई है…

गुंडों के जेहादी कुनबा में अब,
मरघट की खामोशी छाई है !

पूरे देश में अमन – चैन हो ,
विकास की गरिमा आई है…

सौ करोड़ वैक्सीन भी लग गए,
उन पर चुप्पी छाई है !

भेदभाव का अब वो खात्मा,
सब ने आवाज उठाई है…

भेड़ की खाल में छुपे भेड़ियों की,
अब तो शामत आई है…

बन रहा भव्य ‘राम मंदिर’ अब,
धारा ‘370’ भी हटवाई…

जगमग -जगमग हुई दीवाली,
दीवों में ज्योति मुस्कुराई है!!!

     प्रस्तुति-अजय कुमार आर्य

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