<img src="https://www.ugtabharat.com/wp-content/uploads/2021/10/IMG-20211030-WA0015-300x198.jpg" alt="" width="300" height="198" class="alignright size-medium wp-image-45881" /> * संजय पंकज
एक दीप द्वार पर
एक दीप देहरी!
दीप दीप जल गए
रौशनी हरी हरी!
दूर – दूर भूमि यह
दीखती कि झूमती
कि केंद्र की कील पर
मंद – मंद घूमती
तान – तान मधुरिमा
ज्योति-लय विभावरी!
आंख आंख नूर से
कोहिनूर बन गई
दीप-राग बज उठे
किरण डोर तन गई
जगमगा रहा तिमिर
भूल भूल मसखरी!
छंद छंद छानकर
अन्तरा बुहारती
काव्य की सुटेक पर
गीतिका संवारती
सांस सांस रागिनी
वियोगिनी बैखरी!
निशा दिशा भूलकर
छांह छांह डोलती
ताल ताल भर अमा
रंग गंध घोलती
झूम-झूम नाचती
समां बांध गुर्जरी!
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