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संपादकीय

थाईलैंड का रामराज्य बनाम गांधी का रामराज्य

भारत में स्वतंत्रता पूर्व महात्मा गांधी ने रामराज्य की परिकल्पना की थी। उनका सपना था कि जब देश आजाद हो जाएगा तो रामराज्य की स्थापना कर राम के आदर्श राज्य को लोक हितकारी नियमों और विधान के अनुसार चलाया जाएगा। यह अलग बात है कि जब देश आजाद हुआ तो गांधी की कांग्रेस के नेताओं ने समय आने पर राम को ही नकार दिया । यद्यपि गांधी स्वयं भी अपने जीवन काल में स्पष्ट कर चुके थे कि रामचंद्र जी का कोई अस्तित्व नहीं रहा। वे अपने जीवन में जहां रामराज्य स्थापित करने की बात करते थे, वहीं स्वयं राम को भी काल्पनिक कहते रहे। इस प्रकार गांधीजी का रामराज्य पहले दिन से ही दोगला और अस्पष्ट हो गया।
     इस प्रकार भारत में रामराज्य केवल नारे की चीज बन कर रह गया। धर्मनिरपेक्ष भारत के सेकुलर नेताओं ने  राम के अस्तित्व, राम की नीति, राम की मर्यादा और राम के आदर्शों की धज्जियां उड़ा दीं। यह सब उस संविधान के रहते हो गया जिस संविधान की मूल प्रति में रामचंद्र जी के चित्रों को स्थान दिया गया था। छद्म धर्मनिरपेक्ष नेताओं ने हमारे संविधान निर्माताओं की उस भावना को भी सेकुलरिज्म के खिलाफ माना जो रामचंद्र जी के चित्रों को संविधान में इसलिए स्थान देकर गए थे कि रामचंद्र जी के चित्रों के माध्यम से यह संविधान कभी भी अपने राजधर्म से विचलित नहीं होगा।    
     इस सबके उपरांत भी आज भी संसार में एक ऐसा देश है जहां पर रामराज्य अभी भी स्थापित है। यह देश थाईलैंड के नाम से जाना जाता है। आज हम इस लेख के माध्यम से थाईलैंड की महान सांस्कृतिक विरासत के उस गौरवपूर्ण पक्ष पर विचार करेंगे जो थाईलैंड और वहां के लोगों को सीधे भारत से जोड़ने का काम करती है और आज की परिस्थितियों में भी रामराज्य कैसे स्थापित हो सकता है ? – इस बात को स्पष्ट करती है।
    इस संदर्भ में विचार करते हुए में यह स्पष्ट होना चाहिए कि थाईलैंड के वर्तमान शासक को राम नौवां के नाम से जाना जाता है । वहां के लोग और शासन में बैठे अधिकारी अपने शासक को इस नाम से पुकार कर बहुत ही आत्मसंतोष और गौरव की अनुभूति करते हैं। वहां आजकल भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज सम्राट “भूमिबल अतुल्य तेज ” राज्य कर रहे हैं ।
   थाईलैंड में लोगों की यह बहुत ही गहरी मान्यता है कि मिथिला के राजा सीरध्वज थे , जिन्हें लोग विदेह भी कहते थे। उनके यहां प्रचलित रामायण और हमारे वाल्मीकि कृत रामायण में बहुत कुछ समानता है। वे उन्हीं तथ्यों और सत्यों को स्वीकार करते हैं जो सामान्यतया हमारी वाल्मीकि कृत रामायण के अनुकूल पाए जाते हैं । यही कारण है कि थाईलैंड में मिलने वाली रामायण या रामायण के संबंध में प्रचलित धारणाओं का वाल्मीकि कृत रामायण के साथ बहुत गहरा और स्पष्ट संबंध दिखाई देता है। उनकी रामायण की कहानी वैसे – वैसे ही आगे बढ़ती जाती है जैसे – जैसे बाल्मीकि जी ने अपनी रामायण में इस कहानी को ऊंचाई तक पहुंचाया है।
    केशव दास रचित ” रामचन्द्रिका “-पृष्ठ 354 ( प्रकाशन संवत 1715 ) .के अनुसार, राम और सीता के पुत्र लव और कुश, लक्ष्मण और उर्मिला के पुत्र अंगद और चन्द्रकेतु , भरत और मांडवी के पुत्र पुष्कर और तक्ष, शत्रुघ्न और श्रुतिकीर्ति के पुत्र सुबाहु और शत्रुघात हुए थे ।
    विद्वानों की मान्यता है कि भगवान राम के समय ही राज्यों का बँटवारा इस प्रकार हुआ था — पश्चिम में लव को लवपुर (लाहौर ), पूर्व में कुश को कुशावती, तक्ष को तक्षशिला, अंगद को अंगद नगर, चन्द्रकेतु को चंद्रावती। कुश ने अपना राज्य पूर्व की तरफ फैलाया और एक नाग वंशी कन्या से विवाह किया था । थाईलैंड के राजा उसी कुश के वंशज हैंl इस वंश को “चक्री वंश कहा जाता है । भरत के पुत्र तक्ष का राज्य आजकल के ताशकंद तक स्थापित था। उस समय उसको तक्षखंड अर्थात तक्ष के हिस्से में आया हुआ भाग कहा जाता था।
  थाईलैंड के लोग रामचंद्र जी को आयुध से सुसज्जित करके देखने में विश्वास रखते हैं। उन्हें विष्णु का अवतार मानने के कारण उनका चित्र भी आयुद्धों से परिपूर्ण और सुसज्जित एक व्यक्ति के रूप में किया जाता है।
     लोग थाईलैंड की राजधानी को अंग्रेजी में बैंगकॉक कहते हैं , क्योंकि इसका सरकारी नाम इतना बड़ा है कि इसे विश्व का सबसे बडा नाम माना जाता है , इसका नाम संस्कृत शब्दों से मिल कर बना है, देवनागरी लिपि में पूरा नाम इस प्रकार है –
  “क्रुंग देव महानगर अमर रत्न कोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महा तिलक भव नवरत्न रजधानी पुरी रम्य उत्तम राज निवेशन महास्थान अमर विमान अवतार स्थित शक्रदत्तिय विष्णु कर्म प्रसिद्धि ।”
  सचमुच संसार में किसी भी स्थान या देश की राजधानी का इतना बड़ा नाम नहीं है। इन शब्दों में जिस प्रकार का गौरव भाव दिखाई देता है उससे थाईलैंड के लोगों का अपने गौरवपूर्ण अतीत से स्पष्ट जुड़ाव और लगाव दिखाई देता है। उनकी गहरी आस्था भारत के प्राचीन गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ी हुई दिखाई देती है । जिस पर वह गर्व और गौरव करते हैं।थाई भाषा में इस पूरे नाम में कुल 163 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। अपने गौरवपूर्ण अतीत के प्रति सम्मान और गौरव का भाव प्रकट करने के लिए थाई लोग अपने देश की राजधानी के नाम को गद्य शैली में नहीं बोलते हैं बल्कि पद्य शैली में गाकर बोलते हैं। थाई मान्यताओं के अनुसार इस नगर का निर्माण स्वयं इंद्र ने अयोध्या के रूप में किया था।
       यही कारण है कि कुछ लोग इसे महेंद्र अयोध्या के नाम से भी पुकारते देखे जाते हैं। थाईलैंड के लोगों को और वहां के सभी शासकों को अपनी राजधानी महेंद्र अयोध्या से विशेष लगाव है। इसका कारण केवल एक ही है कि यह राजधानी उन्हें अपने गौरवपूर्ण अतीत से जोड़ती है। इस प्रकार संसार भर में वैदिक काल के स्वर्ण युग की एकमात्र ध्वजवाहिका या स्मरण स्थली के रूप में बैंकॉक को यदि स्थापित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । जब विश्व के अधिकांश शहरों, स्थलों या स्थानों को ईसाई और मुस्लिम आक्रमणकारियों ने या तो समाप्त कर दिया या उनका नाम बदलकर उन्हें उनके वैदिक स्वर्णिम युग से पूर्णतया काट दिया हो तब थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक का स्वर्णिम अतीत और उसके लोगों का अपने उस अतीत के प्रति लगाव देखते ही बनता है, जो दूसरों के लिए और विशेष रूप से हम भारत वासियों के लिए अनुकरणीय हो सकता है।
   यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण और हास्यास्पद तथ्य है कि आज जबकि इस्लाम और ईसाई देश अधिक से अधिक अपने संख्या बल को बढ़ाने पर लगे हुए हैं और उन देशों या क्षेत्रों को ढूंढने का प्रयास करते देखे जाते हैं जहां उनकी संस्कृति, विचारों, मान्यताओं या उनके पूर्वजों के प्रति आस्था रखने वाले लोग रहते हैं । वहीं भारत उन देशों, क्षेत्रों या स्थानों को भी कोई सम्मान या प्राथमिकता नहीं देता जो सीधे-सीधे भारत के प्राचीन गौरव पूर्ण इतिहास के साथ अपने आपको स्थापित करते हैं और उस पर गौरव की अनुभूति करते हैं।
   थाईलैंड के राजाओं के द्वारा अपने नाम के पीछे राम लगाना न केवल उनकी राम के प्रति आस्था को प्रकट करता है बल्कि उनके ऐसा करने से यह भी स्पष्ट होता है कि वे अपने राज्य को पूर्णतया जनहितकारी नीतियों पर आधारित करके देखना चाहते हैं । वे राम को अपने ‘ताज और राज्य’ का न केवल प्रतीक मानते हैं बल्कि उसका एक आदर्श मानकर चलने का प्रयास भी करते हैं । यही कारण है कि जब संसार भर के लगभग सभी देशों से राजशाही समाप्त हो गई है तब भी थाईलैंड में धर्म पर आधारित अर्थात नैतिकता ,न्याय और मर्यादा पर आधारित राजशाही आज भी स्थापित है। वास्तव में संसार को राजतन्त्रात्मक लोकतंत्र भारत ने ही दिया है। जिसमें एक परिवार का दीर्घकालिक शासन होते हुए भी वह परिवार किसी भी दृष्टिकोण से तानाशाह नहीं हो सकता। क्योंकि उस पर धर्म की नकेल पड़ी होती है। धर्म सदा आंतरिक जगत की उस पवित्रता का प्रतीक होता है जो व्यक्ति को मर्यादित और संतुलित आचरण करने के लिए प्रेरित करता है। अपने आंतरिक जगत की ऐसी पवित्रता के कारण कोई भी वैदिक राजा अपनी जनता के साथ अन्याय कर ही नहीं सकता। यही कारण है कि थाईलैंड में भी राजा अपनी प्रजा के साथ न्याय पूर्ण समन्वय स्थापित किया रखने में सफल रहा है। यहां के लोग भले ही चाहे बौद्ध धर्म के अनुयायी हों परंतु इसके उपरांत भी वे अपने राजा को राम का वंशज मानते हैं और विष्णु का अवतार समझकर उसके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं।
   वास्तव में विष्णु का अवतार होना राजा के उस दिव्य-भाव को प्रकट करता है जिसके वशीभूत होकर वह अपनी जनता के प्रति अपने आपको उत्तरदायी मानकर न्यायपूर्ण शासन करता है। विष्णु के रूप में वह प्रजा का पिता होता है। पिता के रूप में वह प्रजा के भरण पोषण और उसकी सुख सुविधाओं का वैसे ही ध्यान रखता है जैसे एक पिता अपने पुत्रों या सन्तान का रखता है। जहां राजा और प्रजा में इस प्रकार का समन्वय या भावनात्मक संबंध होता है वहां पर अन्याय ,उत्पीड़न, दलन, शोषण या किसी भी प्रकार के विद्रोह की संभावना नहीं होती। वास्तव में यही रामराज्य है। 1932 में थाईलैंड में संवैधानिक शासन का शुभारंभ हुआ। तब से अब तक वहां के किसी भी राजा को किसी भी प्रकार के विवाद में नहीं लाया गया है। इसका कारण केवल एक ही है कि ये राजा राम के आदर्शों के अनुसार शासन करते हैं।
   भारत में जिस संविधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत लोकहितकारी शासन की कल्पना की गई है वह वास्तव में राम राज्य के आदर्श को अपनाकर ही स्थापित किया जा सकता है।यद्यपि भारत के साथ यह बहुत बड़ी समस्या है कि यहां के अधिकांश राजनीतिक दल भारत के मूल के साथ धोखा करते हुए देखे जाते हैं। वह भारतीय आदर्शों ,भारतीय मूल्यों और भारतीय राजनीतिक नैतिक आदर्शों को अपनाते हुए नहीं देखे जाते हैं। दुर्भाग्यवश ये सभी विदेशों की ओर देखते हुए उनके आदर्शों को भारत में लागू करने का मूर्खतापूर्ण प्रयास करते हैं । इन सबसे हमारा निवेदन है कि यदि इनको विदेशों की जूठन खाने का अभ्यास ही हो गया है तो क्या ही अच्छा होगा कि ये सभी धर्मनिरपेक्षता वादी भारतीय राजनीतिक दल और उनके नेता थाईलैंड की जूठन खाना आरंभ कर दें। यदि इन्होंने ऐसा किया तो निश्चय ही इनका भारत पर बहुत भारी उपकार होगा।

    डॉ राकेश कुमार आर्य
   संपादक :  उगता भारत

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