इसी साल जून माह में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए भूमि समझौते पर शांतिपूर्ण अमल हो गया। दोनों देशों के 51 हजार नागरिकों को एक देश और उसकी नागरिक पहचान मिल गई है। इस दृष्टि से इन नागरिकों को शनिवार की सुबह उम्मीद की नई किरण के साथ फूटी है। शुक्रवार की आधी रात को 12 बजे दोनों देशों के बीच बस्तियों का आदान-प्रदान हो गया। इस खुशी के अवसर पर इन लोगों ने अपनी-अपनी बस्तियों में अपने-अपने देश के राष्ट्रीय झण्डे लहराए और राष्ट्र गान गया। अब तक ये लोग किसी राज्य का हिस्सा नहीं थे,किंतु अब भारत में शामिल हुए नागरिक असम,मेघालय,त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के नागरिक होंगे।
भारतीय क्षेत्र में आबाद 111 बस्तियों में 37000 बांग्लादेशी रहते हैं,जो 1947 व 1972 के युद्ध के बाद आकर बस गए थे। समझौते पर अमल के बाद अब 1 अगस्त से ये सभी लोग बांग्लादेशी हो जाएंगे। ये बस्तियां यथास्थिति में रहेंगी,बस उनके नागरिकों को बांग्लादेश की नागरिकता दे दी जाएगी। भारतीय सीमा में मौजूद 51 बांग्लादेशी बस्तियों में रहने वाले लोगों ने यहीं रहने का फैसला किया है। जबकि बांग्लादेश स्थित भारतीय बस्तियों में से 980 लोग भारतीय सीमा में आएंगे। इनमें से 16 मुस्लमान है,जो अति पिछड़े वर्ग के मजदूर हैं। इसी तरह बांग्लादेश के तीन जिलों की 17000 एकड़ भूमि में 51 भारतीय बस्तियां हैं,जिनमें 14000 लोग रहते हैं। इन्हें अब भारत की स्थाई नागरिकता मिल जाएगी। अब इन नागरिकों को एक नया कोड दे दिया जाएगा। जिसके जरिए इन्हें पाठशाला,बिजली,सस्ती दर का राशन एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं भारत सरकार की ओर से मिलने लग जाएंगी। इनके आधार एवं मतदाता परिचय पत्र भी बन जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी साल जून माह में बांग्लादेश गए थे। तब उन्होंने यह बहुप्रतिक्षित भूमि सीमा समझौता किया था। पिछले 41 साल से लंबित इस विवाद का हल एकाएक निकाल लेना इस बात का संकेत था कि वाकई में नरेंद्र मोदी की इच्छाशक्ति मजबूत है और वे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि इस समस्या के निदान की कोशिश 2011 में अपनी बांग्लादेश यात्रा के पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने भी की थी,लेकिन दो कारणों से वे समझौते पर अमल कराने से वंचित रह गए थे। एक तो भूमि समझौता विधेयक संसद से पारित नहीं करा पाए थे,दूसरे समझौते में रोड़ा बनीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस समझौते के लिए राजी नहीं कर पाए थे ? मोदी ने करार की पृष्ठभूमि रचते हुए पहले तो करार से संबंधित विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित करा लिया और फिर ममता को न केवल राजी करने में सफल हुए,बल्कि उन्हें अपनी यात्रा में भी सहयात्री बनाने में कामयाब हो गए थे। इस समझौते पर भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के साथ ममता बनर्जी के भी हस्ताक्षर हैं।
बांग्लादेश यात्रा,दोनों देशों के परस्पर हित जुड़े होने के कारण बेहद अहम् थी। इस यात्रा से भारत के सामरिक और व्यापरिक हित तो जुड़े ही थे, भौगोलिक और नागरिकों की पहचान भी जुड़ी थी।
इसके पहले किए प्रयासों में यह विवाद इसलिए हल नहीं हो पा रहा था,क्योंकि भारतीय संविधान में प्रावधान है कि किसी भी अन्य देश से भूमि ली अथवा दी जाती है तो इस विधेयक के प्रारुप को संसद के दोनों सदनों से पारित कराया जाना जरूरी है,वह भी दो तिहाई बहुमत से ? इसके बाद विधेयक पर देश के 50 प्रतिषत राज्यों की सहमति भी जरूरी है। केंद्र की राजग सरकार इन दोनों प्रावधानों को पालन कराने में सफल रही। इस हेतु विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी प्रधानमंत्री से पहले बांग्लादेश की यात्रा करके अनुकूल माहौल बनाने का काम कर चुकी थीं। दोनों देशों के विदेश सचिवों की भी अनेक बैंठके हो चुकी थीं। तय है,यह समझौता बातचीत के कई चरणों को आगे बढ़ाने के बाद अंतिम रूप में परिणत हो पाया है। हालांकि यह समझौता 16 मई 1974 से लंबित था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान ने भी हस्ताक्षर कर दिए थे। बांग्लादेशी जातीय संसद ने भी समझौते को मंजूरी दे दी थी,लेकिन एक तो भारत में इसके लिए संविधान में जरूरी संशोधन नहीं हो पाया,दूसरे इसी दौरान मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई थी,नतीजतन समझौता लटका रहा।
भारतीय नागरिकता कानून 1955 के अनुसार भारत सरकार जम्मू-कश्मीर राज्य को छोडक़र किसी भी खास इलाके में रहने वाले लोगों को भारत का नागरिक घोषित कर सकती है। अधिकतम 51 हजार लोगों को भारतीय नागरिकता देने की सीमा शायद इसलिए रखी गई है,जिससे उन अवैध घुसपैठियों को नागरिक न बनाया जा सके,जो 2011 की जनगणना के बाद भारतीय बस्तियों में नाजायज तौर से घुसे चले आए थे। इन घुसपैठियों में मुस्लिमों की संख्या ज्यादा से ज्यादा हो सकती है ? लिहाजा नागरिकता देने से पूर्व इनकी ठीक से पहचान कर लेने की जरूरत है।
भूखंडों की अदला-बदली में भारत को तकरीबन 2,777 एकड़ जमीन मिली है,जबकि भारत से बांग्लादेश को 2,268 एकड़ जमीन हस्तांतरित की गई है। परिवर्तन की इस प्रक्रिया के पूरे हो जाने के बाद 6.5 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा का एक सीधी रेखा में नए सिरे से निर्धारित हो गई है। फिलहाल,भारत और बांग्लादेश से जुड़ी सीमा की लंबाई 4096 किमी है। यह सीमा सुनिश्चित हो जाने के बाद भारत यदि अपनी सीमा में बागड़ लगाने का काम पूरा कर लेता है,तो बांग्लादेश की तरफ से अवैध घुसपैठ लगभग प्रतिबंधित हो जाएगी। नतीजतन पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में शांति कायम होने की उम्मीद बढ़ जाएगी। बहरहाल इस अदला-बदली से 51000 लोगों को 70 साल बाद एक निश्चित देश और उसकी नागरिकता मिल गई हैं।