ललित गर्ग
दिल्ली के अलावा 21 शहर भी प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शामिल हैं, पटाखों के धुएं से इन शहरों एवं समूचे देश में प्रदूषण बढ़ने की संभावनाएं हैं। सर्दियां आते ही दिल्ली की आबोहवा बच्चों और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से खतरनाक होने लगती है।
इस वर्ष दीपावली पर आतिशबाजी न हो, इसके लिये सरकारें ही नहीं गैर-सरकारी संगठन भी व्यापक प्रयत्न कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इसके लिये सख्ती बरतने की तैयारी की है, प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आमिर खान दिवाली पर पटाखेबाजी के विरुद्ध एक विज्ञापन में टीवी चैनलों पर करोड़ों को प्रेरित कर रहे हैं एवं अणुव्रत विश्व भारती ईको-फ्रेंडली दीपावली का संदेश जन जन के बीच पहुंचा रही है, क्योंकि पटाखे जलाने से न केवल बुजुर्गों बल्कि बच्चों के जीवन पर खतरनाक प्रभाव पड़ने और अनेक रोगों के पनपने की संभावनाएं हैं। आम जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने वाली पटाखे जलाने की भौतिकतावादी मानसिकता को विराम देना जरूरी है। कोरोना महामारी के बाद बदले माहौल एवं स्वास्थ्य-जरूरतों को देखते हुए यह नितांत अपेक्षित भी है। प्रदूषण मुक्त पर्यावरण की वैश्विक अभिधारणा को मूर्त रूप देने के लिये इको फ्रेंडली दीपावली मनाने का संकल्प लेने की आवश्यकता है।
पटाखे के प्रदूषण से ”दीपावली“ के गौरवपूर्ण अस्तित्व एवं अस्मिता के काले पड़ने की सम्भावना संस्कृतिकर्मी एवं प्रदूषण विशेषज्ञ व्यक्त कर रहे हैं। मैं और कुछ भी कह कर ”दीपावली“ की महत्ता को कम नहीं कर रहा हूं, पर और भी जो काला पड़ रहा है वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। ”दीपावली“ हमारी संस्कृति है, सभ्यता है, आपसी प्रेम है, इतिहास है, विरासत है और दीपों की कतारों का आश्चर्य है। पटाखे जलाने से दीपावली ही नहीं, ये सब भी काले पड़ रहे हैं। स्वास्थ्य चौपट हो रहा है, फिजूलखर्ची बढ़ रही है। पटाखों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध होने के बावजूद अंधाधुंध आतिशबाजी होना जहां सरकार की लापरवाही है, गैरजिम्मेदारी है, वहीं आम जनता द्वारा गैरकानूनी तरीके से आतिशबाजी करना आपराधिक कृत्य है। इस विषम एवं ज्वलंत समस्या से मुक्ति के लिये हर व्यक्ति को संवेदनशील एवं अन्तर्दृष्टि-सम्पन्न बनना होगा। क्या हमें किसी चाणक्य के पैदा होने तक इन्तजार करना पड़ेगा, जो जड़ों में मठ्ठा डाल सके।…नहीं, अब तो प्रत्येक मन को चाणक्य बनना होगा। तभी विकराल होती वायु प्रदूषण की समस्या से मुक्ति मिलेगी।
दिल्ली के अलावा 21 शहर भी प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शामिल हैं, पटाखों के धुएं से इन शहरों एवं समूचे देश में प्रदूषण बढ़ने की संभावनाएं हैं। सर्दियां आते ही दिल्ली की आबोहवा बच्चों और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से खतरनाक होने लगती है। दिल्ली की हवा में उच्च सांद्रता है, जो बच्चों को सांस की बीमारी और हृदय रोगों की तरफ धकेल रही है। शोध एवं अध्ययन में यह भी पाया गया है कि यहां रहने वाले 75.4 फीसदी बच्चों को घुटन महसूस होती है। 24.2 फीसदी बच्चों की आंखों में खुजली की शिकायत होती है। सर्दियों में बच्चों को खांसी की शिकायत भी होती है। बुजुर्गों का स्वास्थ्य तो बहुत ज्यादा प्रभावित होता ही है। सर्दियों के मौसम में हवा में घातक धातुएं होती हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत आती है। हवा में कैडमियम और आर्सेनिक की मात्रा में वृद्धि से कैंसर, गुर्दे की समस्या और उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। इसमें आतिशबाजी एवं पराली जलाने से घातकता कई गुणा बढ़ जाती है।
किसी व्यक्ति के बारे में सबसे बड़ी बात जो कही जा सकती है, वह यह है कि ”उसने अपने चरित्र पर कालिख नहीं लगने दी।“ अपने जीवन दीप को दोनों हाथों से सुरक्षित रखकर प्रज्वलित रखने के लिये ईको-फ्रेंडली दीपावली के संकल्प को आकार देना ही होगा। अगर हमने यह संकल्प नहीं लिया तो दीपावली पर दिल्ली में फिर धुएं की चादर छा जाएगी और लोगों को सांस लेना भी दूभर हो जाएगा। वैसे तो दिल्ली सरकार ने सख्ती भी की है। दिल्ली में अगर लोग पटाखे जलाते पकड़े गए तो उनके खिलाफ विस्फोटक एक्ट के तहत एक्शन लिया जाएगा। अगर कोई लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करता दिखाई दिया तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 और 286 के तहत कार्रवाई की जाएगी। बात दिल्ली की ही नहीं, समूचे राष्ट्र की है।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय पटाखे नहीं दीया जलाओ अभियान की शुरूआत कर रहे हैं, ताकि लोगों को जागरूक किया जा सके। यह सही है कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए सख्ती जरूरी है लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं होते। हर वर्ष दीपावली को देर रात गए लोग पटाखे जलाते रहते हैं। एक विश्लेषण के अनुसार राजधानी में नवम्बर माह के पहले पन्द्रह दिनों में हवा सबसे प्रदूषित होती है। इसका कारण पराली और पटाखों से निकलने वाला धुआं होता है, जो दिल्ली को स्वास्थ्य आपातकाल में धकेल देता है। राजधानी की हवा में प्रदूषण का प्राथमिक स्रोत वाहनों का जमावड़ा और पड़ोसी राज्यों में औद्योगिक संचालन से निकलने वाला धुआं भी है।
अणुव्रत विश्व भारती के जनजागृति अभियान की भी व्यापक प्रासंगिकता है। देश में 165 स्थानों पर अणुव्रत समितियां सक्रिय हैं जो देश में पर्यावरण संरक्षण, नशामुक्ति, सद्भावना, अहिंसा प्रशिक्षण, चुनाव शुद्धि जैसे विभिन्न मुद्दों पर जन अभियान चला रही है। ’ईको-फ्रेंडली दीपावली’ के प्रचार-प्रसार में योगदान देकर समितियां एक कदम और आगे बढ़ेंगी तथा जन-जागरण से पर्यावरण को शुद्ध बनाने तथा प्रदूषण नहीं फ़ैलाने में इनकी अहम् भूमिका होगी। समिति प्रचार-प्रसार के दौरान पटाखों से प्रभावित लोगों की मार्मिक कहानी, बैनर लोकार्पण, नुक्कड़ नाटक मंचन, संकल्प पत्र, ईको-फ्रेंडली दीपावली आलेख लेखन एवं प्रकाशन सरीखें कई कार्यक्रम करेगी।
आमिर खान ने दिवाली पर पटाखेबाजी के विरुद्ध जो देश के करोड़ों लोगों से अनुरोध किया हैं उसका व्यापक असर होगा। उनका अनुरोध है कि दिवाली के मौके पर सड़कों पर पटाखेबाजी न करें। अंधाधुंध पटाखेबाजी से सड़कों पर यातायात में तो बाधा पड़ती ही है, प्रदूषण भी फैलता है और विस्फोटों से लोग भी मरते हैं। इसके अलावा पटाखों के नाम पर हम चीनी पटाखा-निर्माताओं की जेबें मोटी करते हैं। आमिर ने जन-जन की जीवन रक्षा से जुड़े इस ज्वलंत मुद्दे पर विज्ञापन करके एक सकारात्मक पहल की है। आमिर खान की तरह हमारे सभी अभिनेता और अभिनेत्रियाँ ऐसे विज्ञापनों में भाग लें, जो आम लोगों को समाज-सुधार के लिए प्रेरित करें। इससे अपराध घटेंगे, विकृतियां एवं विसंगतियां समाप्त होगी और सरकार का भार भी हल्का होगा।
प्रदूषण कम करने और दिल्ली सहित देश के अन्य महानगरों-नगरों को रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की नहीं है, बल्कि हम सबकी है। हालांकि लोगों को सिर्फ एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभानी है। यद्यपि एंटीडस्ट अभियान भी चलाया जा रहा है। लोगों को खुद भी पूरी सतर्कता बरतनी होगी। लोगों को खुली जगह में कूड़ा नहीं फैंकना चाहिए और न ही उसे जलाया जाए। वाहनों का प्रदूषण लेवल चैक करना चाहिए। कोशिश करें कि हम निजी वाहनों का इस्तेमाल कम से कम करें और सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करें। हालांकि पराली जलाए जाने की घटनाएं पिछले साल के मुकाबले काफी कम हैं, इसलिए दिल्ली वालों को भी पटाखे जलाकर खुद की या दूसरों की जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए। अगर हमने पर्यावरण को लेकर पहले से ही सतर्कता बरती होती तो देश प्रदूषण का शिकार नहीं होता। हमने स्वयं अनियोजित विकास कर प्रदूषण को आमंत्रित किया है। कोरोना वायरस अभी भी हमारे बीच मौजूद है और प्रदूषण के दिनों में वायरस तेजी से फैलता है। यद्यपि कुछ जागरूक लोगों के प्रयास पूरी तरह सफल नहीं हुए तो पूरी तरह निष्फल भी नहीं हुए हैं। जरूरत है हम स्वयं को तो जागरूक बनाएं ही, पूरे समाज को इस समस्या की गम्भीरता से परिचित कराएं। देशवासियों को यह संकल्प तो लेना होगा कि वे दीप जलाकर दीपावली मनाएंगे। प्रदूषण से ठीक उसी प्रकार लड़ना होगा जैसे एक नन्हा-सा दीपक गहन अंधेरे से लड़ता है। छोटी औकात, पर अंधेरे को पास नहीं आने देता। क्षण-क्षण अग्नि-परीक्षा देता है। पर हां! अग्नि परीक्षा से कोई अपने शरीर पर फूस लपेट कर नहीं निकल सकता।