वेदवेत्ता ही महान ईश्वर को जानता: डा. रघुवीर वेदालंकार
[नोट- आज हम डा.रघुवीर वेदालंकार जी का दिनांक 1-8-2018 को देहरादून के गुरुकुल पौंधा में दिया गया व्याख्यान प्रस्तुत कर रहे हैं। यह व्याख्यान ज्ञानवर्धक, प्रेरक एवं कर्तव्य-बोध में सहायक है। हम आशा करते हैं कि हमारे मित्र व पाठक इसे पसन्द करेंगें। -मनमोहन आर्य।]
श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल, देहरादून के वार्षिकोत्सव में दिनांक 1 जून, 2018 को सायं आयोजित वेद-वेदांग सम्मेलन में सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान डा. रघुवीर वेदालंकार द्वारा दिए गए व्याख्यान को प्रस्तुत कर रहें हैं।
आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने अपने व्याख्यान के आरम्भ में कहा कि मैं वेदांग पढ़ाता हूं। वेद पढ़ता हूं परन्तु वेद पढ़ाता नहीं। इस लिए वेद नहीं पढ़ाता क्योंकि वेद पढ़ने वाले नहीं है। आप सुनने वाले हैं। आप वेद पढ़ने वाले बनंे।
आचार्य जी ने प्रश्न किया कि वेद हमें क्यों पढ़ने चाहियें? आचार्य जी ने कहा कि आज देश और समाज में जितनी भी खराबी हुई है वह ईश्वर व धर्म ने कर रखी है। सभी सामाजिक व धार्मिक बुराईयां ईश्वर व धर्म के नाम पर हो रही हैं। आजकल धर्म शब्द का प्रयोग मत-मतान्तरों के लोक में प्रचलित व्यवहारों के लिए हो रहा है। विद्वान आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि ईश्वर व धर्म मुख्य हैं। इसे जानकर संसार शान्ति से रहेगा। आचार्य जी ने कहा कि आज का मनुष्य अविवेकशील है। ऐसे अविवेकी मनुष्य अपने अपने मत को मानते हैं। ऋषि दयानन्द की तरह सच्चे मत व धर्म की खोज करने वाला कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि आतंकी भी अपने आपको धार्मिक मानते हैं। यह आतंकी अपने मत की विचारधारा को बढ़ा रहे हैं। झगड़ा ईश्वर व धर्म के नाम पर ही है। सबकी अपनी अपनी धर्म पुस्तकें हैं। अपने अपने ईश्वर व मत-प्रवर्तक आदि भी हैं।
आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि जो वेदवेत्ता नहीं है वह उस महान ईश्वर को नहीं जान सकता। आचार्य जी ने वेदमंत्र ‘वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं आदित्यवर्णं तमसः परस्तात्’ का उच्चारण किया। उन्होंने कहा कि वेद घोषणा कर रहा है कि मैं वेद पढ़ने वाला ईश्वर को जानता हूं। इसके बाद आचार्य जी ने वेदमंत्र ‘स्तुता मया वरदा वेदमाता’ मन्त्र का उच्चारण किया। आचार्य जी ने कहा कि मन्त्र में वेद पद स्त्रीलिंग में है। उन्होंने कहा कि बच्चे को उसकी माता ही बता सकती है कि उसका पिता कौन है। इसी प्रकार वेद माता हम मनुष्यों को ईश्वर के बारे में बताती है। बिना वेद माता के बताये व जाने मनुष्य को ईश्वर के सच्चे स्वरुप का ज्ञान नहीं होता। आचार्य जी ने आगे कहा कि मनु महाराज ने कहा है कि जो धर्म को जानना चाहें, उनके लिए परम प्रमाण वेद हैं। डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने कहा कि वेद की शरण न लेकर अन्यत्र जायेंगे तो वहां ईश्वर का असत्य स्वरुप बताया जायेगा। उन्होंने कहा कि यदि हम ईश्वर व धर्म के सत्य स्वरुप को जान लें तो संसार के सारे झगड़े छूट जायेंगे। आचार्य जी ने आगे कहा कि वेद को पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना परम धर्म है। आप सब स्वयं वेद पढ़िये और अपने बच्चों को सुनाईये।
आचार्य जी ने धर्म की परिभाषा की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जो वेद में प्रतिपादित है वही धर्म है। इसके अतिरिक्त दूसरा कोई धर्म नहीं है। आचार्य जी ने कहा कि वेद से इतर धर्म विषयक मान्यताओं की पुस्तकें मत-मतान्तर तो हो सकती हैं परन्तु धर्म केवल वेद प्रतिपादित व वेदानुकूल मान्यतायें ही होती हैं। आचार्य जी ने महत्वपूर्ण बात यह कही कि वेद में यह भी कहा गया है कि जो अधार्मिक हैं, सत्य के विरुद्ध व्यवहार करते है, उन्हें नष्ट कर दो। यदि वेद के विरुद्ध आचरण किया जायेगा तो धर्म नहीं चल सकता। उन्होंने स्पष्ट किया कि मैं किसी को मारने व कत्ल करने को नही कहता। उन्होंने कहा कि आजकल माताओं व बहिनों के अपहरण हो रहे हैं। यदि मैं शुद्ध व पवित्र हूं, अधर्म के काम नहीं करता तो मैं आधा धार्मिक हूं। आचार्य जी ने राम व कृष्ण के जीवन के उदाहरण दिये। राम ने राक्षसों को मारा। आचार्य जी ने राम की घोषणा सुनाई और कहा कि उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि मैं संसार को निशाचरों से रहित कर दूंगा। आचार्य जी ने कहा कि यदि आप समाज के शत्रुओं का प्रतिकार नहीं करेंगे तो अधर्म व हिंसा आदि बढ़ते जायेंगे। वैदिक धर्म की जय बोलने से कुछ नहीं होगा। आचार्य जी ने कहा कि चोरों व जेब कतरों के भी संगठन बने हुए हैं। डाकुओं के भी संगठन हैं। दिल्ली में कुछ महिलायें संगठित होकर जेबें काटती हैं। आश्चर्य एवं दुःख है कि सत्य को धर्म मानने वाले धार्मिक लोगों के संगठन नहीं है।
आचार्य जी ने श्रोताओं से पूछा कि मन्दिर में यज्ञ करने से क्या होता है? समाज की सफाई आपको करनी होगी। विद्वान आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि मनु ने धर्म के दस लक्षणों में अहिंसा को नहीं लिखा है। आचार्य जी ने कहा कि अहिंसा के कारण देश कमजोर हुआ है। धार्मिकों के प्रति अहिंसा तथा हिंसकों के प्रति हिंसा करनी होगी। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो हिंसक आपके धर्म का हनन करेंगे। आचार्य जी ने क्षमा को भी धर्म के विपरीत बताया। उन्होंने कहा कि सम्राट पृथ्वी राज चैहान ने मुहम्मद गौरी को अनेक बार क्षमा किया। इसी कारण देश की भारी हानि हुई। आचार्य जी ने कहा क्षमा उसे किया जाता है जो अपने अपराध को स्वीकार करे और उसे न दोहराने की प्रतिज्ञा करे। क्षमा मांगने वाले अपराधी को अपनी प्रकृति को बदलना चाहिये। आचार्य जी ने यह भी कहा कि सत्य समय के अनुसार बदलता है।
आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने कहा कि धर्म का यथार्थ रूप में पालन श्री कृष्ण जी ने किया। उन्होंने सबको ठिकाने लगा दिया। कृष्ण जी से पहले मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी राक्षसों को ठिकाने लगाया। विद्वान आचार्य ने कहा कि अधार्मिकों को ठिकाने लगाने पर विचार करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि कृष्ण जी न होते तो पाण्डव हार जाते। आचार्य जी ने महाभारत से कर्ण व कृष्ण जी के मध्य हुए संवाद को भी प्रस्तुत किया। कृष्ण जी ने कर्ण द्वारा धर्म की बात करने पर उससे पूछा था कि जब अकेले युद्ध कर रहे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को तुम सबने मिलकर मारा था तब तुम्हारा धर्म कहां गया था? जब तुमने अपने साथियों के साथ मिलकर सभा में सबके सम्मुख द्रोपदी को निर्वस्त्र किया था, तब तुम्हारा धर्म कहां गया था? आचार्य जी ने कहा कि अधार्मिकों को नष्ट करना ही होगा। देश के कानून के अन्तर्गत या जैसे उचित हो। आचार्य जी ने कहा कि देश व समाज में जो अधर्म व बुराईयां फैल रही हैं, उन्हें दूर करना है। यज्ञ करके से हम आधे धार्मिक बन सकते हैं। आचार्य जी ने वेदमंत्र में आये पद ‘अपघनन्तो’ का उच्चारण कर कहा कि दुष्टों की वृत्ति को अवश्य छुड़ाना पड़ेगा। यह धर्म का स्वरुप है। आचार्य जी ने कहा कि जो व्यक्ति जिसके प्रति जैसा व्यवहार कर रहा है उसके प्रति वैसा ही व्यवहार करना धर्म है। वैदिक धर्म के आदर्श पुरुष शिवाजी का उल्लेख कर आचार्य जी ने कहा कि हमें यथायोग्य व्यवहार करना होगा। यह धर्म का अंग है। कृष्ण जी ने अपने जीवन में भी यही किया व हमें यही करने की शिक्षा दी है।
आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि वेद जो कहता है वही धर्म है। उन्होंने कहा कि वेद में परमात्मा ने कहा है कि यदि कोई हमें या हमारे पशुओं की हत्या करता है तो हम उसे शीशे की गोली से मार देंगे। आचार्य जी ने कहा कि आज गाय, घोड़े व मनुष्यों की हत्यायें हो रही हैं। नारियों पर अत्याचार हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि आतंकियों पर तो हमें क्रूर होना ही चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि समाज व राष्ट्र के क्षेत्र में धर्म की परिभाषा में व्यक्तिगत धर्म की अपेक्षा कुछ अन्तर आता है। डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने श्रोताओं को प्रेरणा की कि अपने हिन्दू भाईयों में वेद की प्रतिष्ठा करायें। जब तक वेद की प्रतिष्ठा नहीं करेंगे ईश्वर व वेद की प्रतिष्ठा नहीं होगी। आचार्य जी ने सभी विद्वानों व श्रोताओं को ‘वेद पढ़ो और शास्त्रार्थ करों’ का मन्त्र दिया और कहा कि इसका सर्वत्र प्रचार करो। इसी के साथ विद्वान आचार्य डा. रघुवीर ने अपने वक्तव्य को विराम दिया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे डा. अजीत आर्य ने कहा कि हमारी क्षमा हमारी कायरता नहीं बननी चाहिये। ओ३म् शम!।
-मनमोहन कुमार आर्य