जरूरत है चीन पर पैनी नजर रखने की

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प्रस्तुति – श्रीनिवास आर्य

सीमाओं पर बढ़ते चीनी सैन्य अभ्यास, पूर्वी क्षेत्र में सैनिकों की तैनाती और उकसाने वाली गतिविधियों के बाद भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को तेज किया है। सेना की तरफ से कहा भी गया है कि हम किसी भी आकस्मिक चुनौती का मुकाबला करने के लिये तैयार हैं। बाकायदा अरुणाचल में पूर्वी सेना कमांडर द्वारा मीडिया को दी गई जानकारी में कहा भी गया कि पड़ोसी देश को स्पष्ट संदेश है कि हम उसकी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिये तैयार हैं। निस्संदेह कड़ाके की ठंड बढ़ने के साथ ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चौकसी का काम बेहद चुनौतीपूर्ण हो जायेगा। लेकिन हालात उच्चतम स्तर की सतर्कता बनाये रखने की मांग करते हैं। हाल ही के दिनों में चीनी सैनिकों द्वारा अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर और उत्तराखंड के बाराहोती सेक्टर में घुसपैठ की कोशिश चिंता बढ़ाने वाली है और सतर्कता की जरूरत बताती है, जिसका निष्कर्ष विश्व बिरादरी को बताना भी जरूरी है कि वास्तविक हमलावर कौन है जबकि बीजिंग तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता रहा है। हालिया दौर की सैन्य वार्ता में जैसी नीयत चीन ने दिखायी, उससे विवादास्पद बिंदुओं पर गतिरोध समाप्त होने की संभावना कम ही नजर आ रही है। हालांकि भारत ने राजनयिक व सैन्य बातचीत के सभी विकल्प खुले रखते हुए गेंद चीन के पाले में डाल दी है। लेकिन उसके साथ ही चीन से लगी सीमा पर सजगता-सतर्कता भी बढ़ा दी है। हवाई चौकसी के साथ ही मानव रहित विमानों की तैनाती से चीन की करतूतों पर निगाह रखी जा रही है, जिससे रात-दिन सीमा पर विषम परिस्थितियों में चौकसी में जुटे सैनिकों का मनोबल व साथ ही दुश्मन का कारगर मुकाबला करने का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। वैसे भी अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम से लगी 1350 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा की चुनौतीपूर्ण निगरानी तकनीकी क्षमता बढ़ाये बिना संभव भी नहीं है।

वहीं दूसरी ओर सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी लाने की रणनीति ही चीन को सामरिक बढ़त हासिल करने की कोशिश से रोक सकती है। बीते सप्ताह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अरुणाचल में सेला सुरंग के निर्माण को अंतिम रूप दिया, यह सुरंग वर्ष 2022 तक तैयार हो जायेगी। इस सुरंग का मकसद रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तवांग में सैनिकों की आवाजाही तेज करना ही है। जिस तरह से सीमा पर चीन ने सैनिकों के लिये स्थायी निर्माण कर लिये हैं और जैसे वह सैन्य अभ्यास कर रहा है तो भारत कनेक्टिविटी के मामले में पीछे कैसे रह सकता है। हमारी चूक के कारण ही चीन ने वर्ष 1962 में जख्म दिये थे। उसके बाद छल करके 2020 में भी गलवान संघर्ष के कड़वे सबक दिये। अपनी सुरक्षा तैयारियों से हम कोई समझौता नहीं कर सकते। वह भी तब जबकि पिछले एक वर्ष से सीमा पर गतिरोध कायम है। चीन की नीयत में खोट का पता इस बात से पता चलता है कि पूर्वी लद्दाख में विवाद का निपटारा हुआ नहीं है और वह दूसरे इलाकों में भी तनाव बढ़ाने वाली गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। हाल ही में उसके सैनिकों ने जिस तरह सीमाओं का अतिक्रमण करने का प्रयास किया, उससे उसके नापाक इरादों का पता चलता है। सिक्किम व अरुणाचल की सीमाओं पर बढ़ती सैन्य गतिविधियां आसन्न चुनौती की ओर इशारा कर रही हैं। कहीं न कहीं चीन सीमा पर स्थायी निर्माण करके भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की फिराक में है। आज का भारत 1962 के भारत से बहुत आगे निकल गया है और गलवान संघर्ष में भारतीय वीरों का करारा जवाब उसे याद रखना चाहिए। लेकिन सचेत रहने की जरूरत है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीन जिस तरह अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, वह उसकी किसी लंबी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। चीनी सैनिकों की लगातार बढ़ती गश्त इन्हीं आशंकाओं की ओर इशारा कर रही है। तवांग में भारतीय व चीनी सैनिकों का आमना-सामना इस कड़ी का हिस्सा है।

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