अमेरिकन सरकारी संस्था के प्रतिवेदन अनुसार , अमेरिका मे 41 प्रतिशत लोग केन्सर का भोग बने है । अर्थात दो पुरुष मे से एक पुरुष केनसर पीडि़त एवं तीन महिला मे से एक महिला ।
इस संस्था ने खाद्य पदार्थो मे हो रहे असीमित रसायणों के उपयोग को दोषी माना है । कुछ रसायण ऐसे है जो गुणविकार द्वारा शारीरिक जैविक प्रक्रिया को बाधित करते है अमेरिकन प्रजा बहुधा त्वरिताहार ( फास्ट फूड ) एवं प्रोसेस्ड ( प्रक्रियित ) के उपयोग का अतिरेक कर रहे है
यह केन्सर रूपी साँप भारत मे भी घुस गया है , हमने अमेरिका जैसे देश का अनुकरण किया एवं विषयुक्त रसायनों पेट मे आरोपते रहे । फलस्वरूप भारत मे केन्सर पीडि़तों की संख्या में वृद्धि हो रही है ।
[] कुछ रसायण में सीसा ( लेड़ ) है, मोनोसोडियम ग्लूटामेट अपनी भाषा मे कहे तो ‘आजीनोमोटों’ जो वास्तव मे एसिड का नमक है अधिक उपयोग से जैविक प्रक्रिया रुक जाती है अत: अनेक रोगो के लिए द्वार खुल जाते है ( बहुधा रोग है वर्णन नहीं हो सकता )
[] प्रोसेस्ड फूड मे रसायन के उपयोग से मानव मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है एवं गुणविकार का सर्जन करते है । अधिक ( नमक ) की मात्र अनेक रोगो को जन्म देती है ।
‘चटपटे ‘ स्वाद के लिए हम अखाद्य रसायनों को विदेशी अनुकरण से खाते है , प्रति वर्ष 16.5 लाख लोग केन्सर से मर जाते है , शीतपेय में भी शर्करा की मात्रा अधिक है ।
************* ‘मेगी’ पर प्रतिबंध हटा , प्रसन्न होने की बात नहीं है , मेगी कोई शुद्ध एवं पवित्र न पहले थी न आज भी है ………सावधान रहे अमेरिकन संस्कार हमे रोगीष्ट न बनायें।
हमें अपने देश के अनुकूल और देश की जलवायु के अनुकूल भोजन ग्रहण करना चाहिए, अन्यथा हम अपने आपको बचा नही पाएंगे।
अजय कर्मयोगी