हम भारतीयों मे भूलने का रोग बहुत पुराना है। इसी भूलने के कारण हम 1000 साल गुलाम रहे। परंतु दुनिया नहीं भूलती है।
औरंगजेब आज भी भारतीय मुस्लिमों का हीरो है।
गुरु तेगबहादुर, भाई सति दास, भाई मति दास भाई दयाला जी को औरंगजेब ने कैसे भयानक तरीके से मारा वह किसी से छुपा नहीं है। इतना ही नहीं जब गुरु जी का सिर भाई जैता जी आनन्दपुर ले जा रहे थे तब भी औरंगजेब की फौज ने उनका पीछा किया। तब हरियाणा के एक जाट ( दादा कुशाल सिंह दहिया) ने अपना सिर कटवाकर औरंगजेब से सैनिको से गुरु जी का सिर बचवाया।
गुरु गोबिन्द सिंह के बच्चों को दीवार मे चुनने मे औरंगजेब की सहमति को सभी जानते हैं।
औरंगजेब ने किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे। हिन्दुओं को इस्लाम अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था। ऐसे में तिलपत गढ़ी में जन्मे गोकुल सिंह ने आवाज बुलंद की। उन्होंने मुगल शासक को किसी भी प्रकार की मालगुजारी देने से मना कर दिया। तिलमिलाए औरंगजेब के आदेश पर मुगल फौज ने तिलपत गढ़ी पर हमला कर दिया। 10 मई 1666 को तिलपत की लड़ाई में वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब को हरा दिया। इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों में गोकुल सिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। उसने कहा कि माफी मांग लें। गोकुल सिंह ने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इससिए माफी क्यों मागूं। इससे औरंगजेब तिलमिला गया। वह 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से मथुरा आ गया। युद्ध की तैयारिया शुरू हो गईं। दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में तिलपत से 20 मील दूर सिहोर में दूसरा युद्ध हुआ। मुगलों के पास तोपखाना थी। तीन दिन तक युद्ध हुआ। मुगलों की तोपों ने सबकुछ नष्ट कर दिया। गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य वीरों को बंदी बना लिया गया।