इंडोनेशिया (सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश) में हिंदू धर्म की वापसी: पहले राष्ट्रपति की बेटी छोड़ रहीं इस्लाम
'इंडोनेशिया में हिंदू धर्म फिर से वापस आएगा': हिंदू पुजारी ने की थी भविष्यवाणी
(साभार: ANTARA/ Victorianus Sat Pranyoto)
इंडोनेशिया के बाली के सिंगराजा शहर में सुकमावती सुकर्णोपुत्री दो दिन बाद यानी 26 अक्टूबर को औपचारिक रूप से इस्लाम से वापस हिंदू धर्म अपना लेंगी। सुकर्णोपुत्री इंडोनेशिया के संस्थापक राष्ट्रपति सुकर्णो और उनकी तीसरी पत्नी फातमावती की बेटी हैं। वह इंडोनेशिया की 5वीं राष्ट्रपति मेगावती सोकर्णोपुत्री की बहन भी हैं। उनके इस फैसले की काफी सराहना हो रही है। उम्र के इस पड़ाव पर (70 साल) सुकमावती का यह फैसला लेना उन्हें देश के दिग्गज लोगों में से एक बनाता है, जो इस्लाम मजहब को अपनाने की बजाए वापस अपने हिंदू धर्म को अपनाना चाहते हैं।
आज इंडोनेशिया दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम बहुल देश है। एक समय में यहाँ हिंदू धर्म का मजबूत प्रभाव था। यह पहली शताब्दी की शुरुआत में जावा और सुमात्रा के द्वीपों में फैल गया और 15 वीं शताब्दी तक समृद्ध हुआ। हालाँकि, यहाँ इस्लाम के आगमन के बाद हिंदुओं की संख्या घटने लगी, जिससे देश में हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा दे दिया गया। आज भी इंडोनेशिया के हिंदू अपने पूर्वजों विशेष रूप से राजा जयभय और पुजारी सबदापालन की भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते हैं।
हिंदू पुजारी सबदापालों की भविष्यवाणियाँ
सबदापालन इंडोनेशिया के सबसे शक्तिशाली मजापहित साम्राज्य के राजा ब्रविजय पाँचवीं के दरबार में एक सम्मानीय पुजारी थे। जब देश का इस्लामीकरण होना शुरू हुआ और 1478 में ब्रविजय पाँचवीं इस्लाम में परिवर्तित हो गए, तब सबदापालन ने राजा को शाप दिया था। उन्होंने देश में प्राकृतिक आपदा आने और राजनीतिक भ्रष्टाचार का शाप देते हुए 500 साल बाद यहाँ लौटने की कसम खाई थी। साथ ही पुजारी ने इस्लाम के चंगुल से इस देश को मुक्त करने और फिर से यहाँ हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ेगी, ऐसी भविष्यवाणी की थी।
धर्म परिवर्तन की घोषणा
कल्पवृष के अनुसार, सबदापालों ने कहा था, “मैं जावा की भूमि में रानी और सभी डांग हयांग (देवों और आत्माओं) का सेवक हूँ। मेरे पूर्वज विकु मनुमानस, सकुत्रम और बंबांग सकरी से लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी तक जावानीस राजाओं के दास रहे हैं। अब तक 2,000 वर्षों से उनके धर्म में कुछ भी नहीं बदला था। मैं यहाँ जावानीस राजाओं के वंशजों की सेवा करने के लिए आया था, लेकिन अब मैं यहाँ से लौट रहा हूँ। 500 वर्षों के बाद मैं पूरे जावा में हिन्दू धर्म को वापस लाऊँगा।”
उन्होंने भविष्यवाणी की थी, “महाराज, आपको समझना होगा कि अगर आप इस्लाम मजहब को अपनाते हैं, तो आपकी संतानों को नुकसान होगा। जावा में रहने वाले लोग अपनी धरती को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएँगे। जावा के निवासियों को अन्य देशों में जाकर रहने को विवश होना पड़ेगा।” जाने से पहने सबदापलोन ने चेतावनी दी, “अब से 500 साल बाद मैं वापस आऊँगा और जावा के चारों ओर आध्यात्मिकता बहाल करूँगा। जो इसे अपनाने से मना करेंगे, वे कम हो जाएँगे। वे सभी राक्षसों का भोजन बनेंगे। मैं तब तक संतुष्ट नहीं होऊँगा जब तक कि उन्हें अपने किए पर पछतावा नहीं होगा।”
दिलचस्प बात यह है कि 1978 में इस राष्ट्र में आधुनिक हिंदू मंदिरों का निर्माण पूरा हुआ। कई मुसलमान हिंदू धर्म में वापस आ गए और उस समय माउंट सेमेरू भी फूट पड़ा था। हिंदुओं का मानना था कि सबदापालन की भविष्यवाणी सच हो रही है।
राजा जयभय की भविष्यवाणियाँ
जयभय 1135 से 1157 ईस्वी तक किंगडम ऑफ केदिरी के शासक थे और पूर्वी जावा साम्राज्य में अपार समृद्धि लाए। उस समय एक भविष्यवाणी करने वाले हिंदू राजा जयभय को ‘रतु आदिल’ यानी सिर्फ राजा माना जाता था। उन्होंने उस समय द्वीप पर सामाजिक व्यवस्था बनाए रखी, जब वह संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे। उनकी भविष्यवाणियाँ आधुनिक इंडोनेशिया में आज भी सांस्कृतिक महत्व रखती हैं। जयभया ने हिंदू साहित्य का भी समर्थन किया और कवियों को एम्पू पनुलुह (Empu Panuluh) और एम्पू सेदाह (Empu Sedah) के रूप में संरक्षण दिया।
उनके शासनकाल के दौरान जावा में लोगों का मानना था कि हिंदू शासक भगवान विष्णु का पुनर्जन्म था। जयभय ने उन दावों को भी वैध बनाने की कोशिश की थी कि वह हिंदू देवताओं में से एक के वंशज हैं। विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार, हिंदू राजा को भगवान ब्रह्मा के परपोते के रूप में माना गया था। जयभय ने ‘भविष्यवाणी श्लोक’ लिखा था, जिसे बाद में ‘सेराट जयभय’ के नाम से जाना जाने लगा। इसे मौखिक पाठों के माध्यम से आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया गया और सबसे पुरानी लिखित प्रति का 1835 में अनुवाद किया गया था।
उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों में से एक है कि लंबे समय तक गोरे लोगों द्वारा जावा के लोगों का उपनिवेशीकरण होगा। दिलचस्प बात यह है कि उनकी मृत्यु के लगभग 400 साल बाद 1595 में जावा पर डच ने कब्जा कर लिया था। जयभय ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि ‘पीले रंग वाले पुरुष’ गोरे लोगों से इस द्वीप को मुक्त करा लेंगे। यह सच निकला जब जापानियों ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंडोनेशिया पर आक्रमण किया और डच का साम्राज्य खत्म कर दिया। हिंदू शासक ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि पीले लोग बेहद कम कम समय तक उन पर शासन करेंगे। हालाँकि, उनकी यह भविष्यवाणी झूठी निकली। इसी तरह उनकी भविष्यवाणी कि वह भगवान विष्णु का पुनर्जन्म हैं, वो भी गलत थी।
70 साल की उम्र में सुकमावती ने हिंदू धर्म अपनाने का फैसला किया है, क्योंकि वह अपने धर्म में वापस लौटना चाहती थीं। उनकी दादी न्योमन राय सिरिम्बेन भी एक हिंदू हैं, जो बाली की रहने वाली थीं। सुकर्णोपुत्री ने पहले कई हिंदू समारोहों में भाग लिया था और हिंदू धर्म के प्रमुखों के साथ बातचीत भी की थी। धर्म परिवर्तन के उनके निर्णय को उनके भाइयों गुंटूर सोएकर्णोपुत्र, गुरुह सोएकर्णोपुत्र, और बहन मेगावती सुकर्णोपुत्री ने भी सराहा है। यहाँ तक कि तीनों बच्चों ने भी उनके फैसले को स्वीकार कर लिया है।