Categories
इतिहास के पन्नों से

विश्वासघात: भारत विभाजन के बाद कश्मीर हड़पने के लिए किए गए पाक हमले को भुलाया नहीं जा सकता


पाकिस्तानी सेना ने 22 अक्टूबर, 1947 को ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ नाम से पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर सैन्य हमला किया। वह ऑपरेशन गुलमर्ग की तैयारी महीनों से कर रहा था।
15 अगस्त, 1947 के बाद पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में जरूरत के बहुत से सामान की सप्लाई बंद कर दी थी, जिससे वहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हो गई थी। उसने पश्चिम पंजाब से तेल, खाना, नमक, चीनी और कपड़ों की सप्लाई रोक दी थी।
पाक ने पोस्टल सेवा भी बंद कर दी थी, पश्चिम पंजाब बैंक की चेक पर भुगतान नहीं होता था। बैंकों में लेनदेन असंभव हो गया था। पोस्टल सर्टिफिकेट पर नकद मिलना नामुमकिन हो गया था। पश्चिम पंजाब बैंक की चेक पर भुगतान नहीं होता था। इंपीरियल बैंक की शाखाओं की चेक पर भी नकद मिलना मुश्किल हो गया था। जम्मू-कश्मीर के साथ पाकिस्तान के विश्वासघात की यही कहानी है। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले इस हिस्से पर उसके द्वारा बोए गए हिंसा के बीज आज भी रह-रहकर मानवता का खून कर रहे हैं।
इस साजिश में न केवल पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री, बल्कि उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत के मुख्यमंत्री, पाकिस्तान के वित्त मंत्री, मुस्लिम लीग के मुख्य नेता और पाकिस्तानी सेना के अधिकारी शामिल थे।
खुद जिन्ना ने इस ऑपरेशन को मंजूरी दी थी। तत्कालीन मेजर खुर्शीद अनवर ने श्रीनगर पर हमले के लिए उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत के कबीलाइयों का नेतृत्व किया था। शुरू में हथियारबंद दस्ते कोहाला-बारामुला रोड पर गांवों को उजाड़ते हुए तेजी से आगे बढ़े। उन्होंने उड़ी को अपने कब्जे में ले लिया। 26 अक्टूबर को बारामुला पर भी कब्जा कर लिया। वहां वे आगजनी, लूट-खसोट और दुष्कर्म में लग गए। बहुत-सी लड़कियों, औरतों को जबरन उठा लिया। उनमें से कुछ ही बचाई जा सकीं।
पाकिस्तान के आम नागरिकों को पेट्रोल मिलना असंभव हो रहा था, वहीं कबीलाइयों को यह आसानी से उपलब्ध था। उस समय पाकिस्तानी सेना द्वारा उत्तर-पश्चिम प्रांत में मोटर गाड़ियों का आवागमन नियंत्रित कर दिया गया था। यहां भी हमलावरों की गाड़ियों को छूट मिली हुई थी। किसी तरह की टूट-फूट होने पर उनकी गाड़ियों की मरम्मत रावलपिंडी के वर्कशॉप में होती थी। कश्मीर में हमलावरों ने जिन आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, वे भी पाकिस्तानी सेना के थे। हमलावरों के हथियारों में मशीनगन, मोर्टार, माइंस, सिग्नल के उपकरण और वायरलेस सेट भी शामिल थे। इनकी संख्या भारतीय और कश्मीर राज्य की सेनाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों से कहीं अधिक थी। हमलावरों के रेडियो संदेशों में इस्तेमाल किए जाने वाले कोड वैसे ही थे, जिनका इस्तेमाल विभाजन से पहले भारतीय सेना करती रही थी। छुट्टी का दिखावा करते हुए पाकिस्तानी सेना के अनेक अधिकारी और सैनिक हमलावरों के साथ मिलकर उनकी मदद कर रहे थे।
कश्मीर के महाराजा ने 24 अक्टूबर को मदद के लिए भारत सरकार से संपर्क किया। फिर औपचारिक रूप से अपने राज्य का भारत में विलय किया। 27 अक्टूबर की सुबह भारतीय सेना की पहली टुकड़ी श्रीनगर हवाईअड्डे पर उतरी। आठ नवंबर को भारतीय सेना ने बारामुला पर वापस कब्जा कर लिया। उस समय तक शहर पूरी तरह से उजड़ चुका था। 15 नवंबर को भारतीय सेना ने उड़ी को वापस हासिल किया और हालात गंभीर होने से पहले ही श्रीनगर, घाटी और उसके आसपास के इलाकों को बचा लिया।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version