विश्व विनाश के कगार पर
वर्चस्व जमाना चाहते हैं, और तुझे भी मिटाना चाहते हैं।
सुना था प्रभु प्रलय करने का, तेरा विशिष्ट अधिकार।
लगता तुझसे भूल हुई, तू खो बैठा अधिकार।
लगती होंगी अटपटी सी तुमको, मेरी ये सारी बातें।
एटम की टेढ़ी नजर हुई, बीतेंगी प्रलय की रातें।
निर्जनता का वास होगा, कौन किसको जानेगा?
होगा न जीवित जन कोई, तब तुझको कौन मानेगा?
यदि समय रहते तू कर दे, एक छोटी सी बात।
हम भी बच जाएं, तू भी बच जाए, टले प्रलय की रात,
हे प्रभो! हम मानवों को, दे दे वह सद्बुद्घि।
बदले की न रहे भावना, करें मनोविकार की शुद्घि।