भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में सबसे महान एवं विश्व की सभ्यताओं में सबसे पुरानी संस्कृति मानी जाती है। भारतीय संस्कारों की वैज्ञानिकता पर तो आज अमेरिका सहित अन्य कई विकसित देशों को आश्चर्य हो रहा है कि किस प्रकार आज से कई हजारों साल पहिले भारत में सभ्यता इतनी विकसित अवस्था में रही थी। भारतीय संस्कारों के विभिन्न आयाम आज विज्ञान की कसौटी पर खरे उतर रहे हैं और इस दृष्टि से कई प्रकार के शोध कार्य आज भी अमेरिका सहित अन्य विकसित देशों में जारी हैं।
भारतीय परम्पराओं के अनुसार भारतीय समाज में मातृशक्ति को सदैव ही उच्च स्थान दिया गया है। हम भारतीय तो मातृशक्ति को देवी (माता) के रूप में ही देखते हैं और भारतीय समाज के उत्थान में मातृशक्ति का योगदान सदैव ही उच्च स्तर का रहा है। चाहे वह मातृत्व की दृष्टि से राष्ट्र्माता जीजाबाई का हो, चाहे वह नेतृत्व की दृष्टि से रानी लक्ष्मीबाई का हो और चाहे वह कृत्तत्व की दृष्टि से देवी अहिल्या बाई होलकर का हो। वैसे भी भारतीय समाज में माता को प्रथम गुरु के रूप में देखा जाता है, जो हमें न केवल इस धरा पर लाती है बल्कि हमारे जीवन के शुरुआती दौर में हमें अपने धार्मिक संस्कारों, परम्पराओं, सामाजिक नियमों आदि से परिचित करवाती है।
आज की परिस्थितियों के अनुसार भी यदि ध्यान किया जाय तो मातृशक्ति का न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से बल्कि वर्तमान में भी देश के सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक विकास में उल्लेखनीय योगदान रहता आया है। देश की आधी आबादी होने के नाते भी मातृशक्ति का देश में विभिन्न आयामों के विकास में अपना योगदान देने का अधिकार सदैव ही सुरक्षित रहा है।
वर्ष 1925 की विजयादशमी के दिन जब भारतीय समाज में देश-प्रेम की भावना एवं सामाजिक समरसता विकसित करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की जा रही थी तब यह बात उभरकर सामने आई थी कि मातृशक्ति को भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में स्थान दिया जाना चाहिए। उसी समय पर यह सोचा गया था कि मातृशक्ति के लिए भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तर्ज पर मातृशक्ति में देश-भक्ति एवं सामाजिक समरसता की भावना विकसित करने के उद्देश्य से एक अलग संगठन की नींव रखी जानी चाहिए।
कुछ समय पश्चात लक्ष्मीबाई केलकर (मौसीजी), परम पूज्य डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जी के सम्पर्क में आईं और उनकी प्रेरणा से उन्होंने 25 अक्टोबर 1936 को विजयादशमी के ही दिन राष्ट्र सेविका समिति की नींव रखी। आपने राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका एवं आद्य प्रमुख संचालिका के रूप में एक सशक्त विचार प्रस्तुत किया और उन्होंने मात्रशक्ति को राष्ट्र कार्य के लिए प्रेरित किया। राष्ट्र सेविका समिति महिला संगठन का सूत्र – “फेमिनिजम” नहीं बल्कि “फेमिलिजम” की विचारधारा है और “स्त्री राष्ट्र की आधारशिला है” – यही राष्ट्र सेविका समिति का ध्येय सूत्र भी है।
आज 15 अक्टोबर 2021 को विजयादशमी के शुभ अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर द्वारा निर्धारित किए गए कुछ सूत्रों को याद किया जाकर, उन सूत्रों को देश की मातृशक्ति द्वारा अपने दैनिक जीवन में उतारकर, उनकी पवित्र याद ताजा की जा सकती है।
- “प्रत्येक राष्ट्र जो अपनी उन्नति चाहता है उसे अपनी संस्कृति और इतिहास को कभी भूलना नहीं चाहिए। क्योंकि भूतकालीन घटनाएं, कृतियां ही भविष्यकाल के लिए पथप्रदर्शक बनती हैं।” इस संदर्भ में भारत के गौरवशाली इतिहास को हमें सदैव न केवल याद रखना चाहिए बल्कि इस गौरवशाली परम्परा को अपनी आने वाली पीढ़ी को व्यवस्थित रूप से अपने वास्तविक स्वरूप में सौंपना चाहिए।
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“मैं समाज का एक घटक हूं अतः समाज मेरा है, इसलिए उसका अज्ञान दूर करना मेरा कर्तव्य है।” भारत में आज के माहौल में इस वाक्य को चरितार्थ करना हम सभी का दायित्व है।
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“समाज सुधार केवल पुरुषों को शक्तिशाली और चरित्रवान बनाने से ही नहीं होगा। महिलाओं को भी इसमें बराबरी से हिस्सा लेना होगा।”
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“अपना काम स्वयं करो और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहो।”
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“शाखा तो सिर्फ़ 1 घंटे की होती है, पर बाकी के 23 घंटे हमारे दिमाग में शाखा चलनी चाहिए।”
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“धर्मा रक्षति रक्षितः” इस वाक्य का वास्तविक अर्थ ना समझने के कारण बहुत नुकसान हुआ है। धर्म को भी रक्षण की आवश्यकता है। धर्म कितना भी अच्छा हो, तो भी वह रक्षक के बिना व्यावहारिक क्षेत्र में नहीं टिक सकता, इसलिए धर्म के अनुयायी होने चाहिए।”
भारतीय संस्कृति और सामाजिक परिवेश को केंद्र में रखते हुए वंदनीया लक्ष्मीबाई केलकर ने महिलाओं के जिस संगठन की नींव वर्ष 1936 के विजया दशमी के दिन रखी थी आज उस संगठन “राष्ट्र सेविका समिति” द्वारा महिलाओं के नैसर्गिक गुणों का संवर्धन और उन्हें शक्ति के अपार पुंज के रूप में स्थापित करने का पावन कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया जा रहा है।
राष्ट्र सेविका समिति द्वारा देश के विभिन्न शहरों एवं ग्रामों में दैनिक एवं साप्ताहिक अंतराल पर शाखाएं लगाई जा रही हैं। इन शाखाओं पर सेविकाओं को शारीरिक शिक्षा प्रदान की जाकर, उनका बौद्धिक विकास किया जाता है। साथ ही उनके मनोबल के स्तर को ऊंचा करने के उद्देश्य से विविध उपक्रम भी प्रारम्भ किए गए हैं। राष्ट्र सेविका समिति द्वारा वनविहार एवं शिविरों का आयोजन, शिशु, बालिका और गृहणी सेविकाओं के लिए अलग अलग स्तरों पर किया जाता है। साथ ही, सेविकाओं में अपनत्व की भावना विकसित करने के उद्देश्य से विभिन छात्रावासों में आरोग्य शिविर, उद्योग मंदिर, बाल मंदिर एवं संस्कार वर्ग सहित विभिन्न सेवाकार्यों का आयोजन किया जाता है।
आज राष्ट्र सेविका समिति भारत का सबसे बड़ा महिला संगठन है। देश भर में समिति की 3 लाख से अधिक सेविकाएं हैं और 584 जिलों में समिति की 4,350 नियमित शाखाएं संचालित होती हैं। समिति आज 800 से अधिक सेवाकार्य कर रही है इनमे महिला छात्रावासों का संचालन, निःशुल्क चिकित्सा केंद्रों का संचालन, लघु उद्योग से जुड़े स्वयं सहायता समूहों का गठन, साहित्य केंद्रों एवं संस्कार केंद्रों का संचालन, गरीब तबके की बालिकाओं के लिए निःशुल्क ट्यूशन कक्षाओं का आयोजन, आदि कार्य शामिल हैं। राष्ट्र सेविका समिति आज देश भर में अनेक शैक्षणिक, स्वास्थ्य एवं स्वावलंबन संस्थाएं चला रही है। विशेष रूप से समाज के पिछड़े, अभावग्रस्त और वनवासी क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया जा रहा है। छतीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की अनाथ बालिकाओं के लिए निःशुल्क छात्रावास और पढ़ाई की व्यवस्था भी समिति द्वारा व्यापक स्तर पर की जा रही है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।