भारत की विदेश नीति और इजराइल
जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनातनी बढ़ते हुए युद्ध की स्थिति पैदा हो गई थी हुए और पाकिस्तान ने भारत के अभिनंदन को पकड़ लिया था तो उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी के तल्ख तेवर देखकर कहा था कि ‘भारत अब कुछ बड़ा करने वाला है।’
यह पहली बार हुआ था जब एक विश्व शक्ति भारत को किसी भी ‘बड़ा काम’ करने से अपने आपको रोकने में असमर्थ अनुभव कर रही थी और उसने यह मन बना लिया था कि यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर पाकिस्तान ने भारत के अभिनंदन को नहीं छोड़ा तो भारत के ‘कुछ बड़ा’ करने पर उसका नियंत्रण नहीं रहेगा। यही कारण था कि अमेरिका के राष्ट्रपति के द्वारा ऐसा कहने का संकेत और संदेश पाकर पाकिस्तान घुटनों के बल भारत के सामने आ गया था। उसे अभिनंदन को छोड़ना पड़ा था और सारे संसार के सामने उसने भारत की शक्ति का लोहा मान लिया था।
भारत की आज विश्व राजनीति में जिस प्रकार महत्ता बढ़ती जा रही है उसमें हमारा एक नया मित्र इजरायल हमारे लिए विशेष लाभकारी सिद्ध हो रहा है। जानकारों का यह भी कहना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा चक्र को मजबूत करने में भी इजराइली सुरक्षा एजेंसियां विशेष सहयोग दे रही हैं।
अब भारत, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका की नई मित्रता विश्व के कई देशों के लिए ईर्ष्या का कारण बन रही है। ये चारों देश मिल बैठकर जिस प्रकार विश्व राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं उससे लगता है कि विश्व इस समय इन चारों देशों की मित्रता को लेकर नए-नए आकलन और अनुमान लगा रहा है। चीन जैसा देश भी इस नए गठबंधन पर बहुत गंभीरता से ध्यान रख रहा है।
इन चारों देशों के गुट को वैश्विक राजनीति के विशेषज्ञ लोग न्यू क्वाड के नाम से जान रहे हैं । प्रधानमंत्री ने अपने विदेश मंत्री एस जयशंकर बनाए हैं। जिन्हें इस क्षेत्र का लंबा राजनयिक व कूटनीतिक अनुभव रहा है। यह एक अच्छी परंपरा है कि किसी भी मंत्रालय में बैठने वाला मंत्री उसका विशेषज्ञ होना चाहिए। अब हमारे वर्तमान विदेश मंत्री का यह ज्ञान देश के काम आ रहा है। विदेश मंत्री बहुत कम बोलते हैं परंतु काम अधिक करते हैं और लोकतंत्र में राजधर्म के सम्यक निर्वाह के लिए यह गुण बहुत आवश्यक है।
श्री एम जयशंकर इजराइल के दौरे पर रहते हुए अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी विलंकन, संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्लाह बिन जायर अल तहयान और इजरायल के विदेश मंत्री येर लेयिड के साथ बातचीत कर चुके हैं। हमारे विदेश मंत्री अपने मंत्रालय का विशेष और गंभीर ज्ञान रखते हैं। वह जहां भी गए हैं और जिस मंच को भी उन्होंने संबोधित किया है उसी पर उन्होंने उभरते हुए भारत के तेजस्वी नेतृत्व का गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया है। अपने इस यात्रा काल में उन्होंने उपरोक्त जिन विदेश मंत्रियों से भी बातचीत की है, उन पर भी वह अपना सिक्का जमाने में सफल रहे हैं। अपने साथ हुई इन मंत्रियों की बैठक में भारत के विदेश मंत्री श्री एम जयशंकर ने एशिया और मध्य पूर्व में अर्थव्यवस्था के विस्तार, राजनीतिक सहयोग, व्यापार और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा की है और उन क्षेत्रों में भारत का दृष्टिकोण भी स्पष्ट किया है।
विश्व के राजनीतिक विशेषज्ञ भारत के विदेश मंत्री की इन नेताओं से हुई इस प्रकार की चर्चा को नए सामरिक और राजनीतिक ध्रुव के रूप में देख रहे हैं। वे यह अनुमान लगा रहे हैं कि निश्चय ही भारत अब विश्व राजनीति का एक अटूट और अपरिहार्य अंग बन चुका है। उभरता हुआ भारत अपने पैरों पर खड़ा होकर अपना स्वतंत्र निर्णय लेने वाले राष्ट्र के रूप में स्थापित हो चुका है। अब वह किसी का पिछलग्गू बन कर निर्णय नहीं लेता बल्कि धीरे-धीरे कई देश उसके पीछे खड़े होकर अपने आपको सुरक्षित अनुभव करने लगे हैं। वह दिन चले गए हैं जब एक गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नाम पर कुछ ‘बिन पेंदी के लोटे’ देश किसी मंच पर बैठ जाया करते थे और वहां बैठकर अपने देश के पैसे से मौज-मस्ती कर लिया करते थे। अब भारत विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए विश्व के बड़े पंचों के बीच बैठकर निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता प्राप्त कर चुका है। जिस पर प्रत्येक देशवासी को गर्व करने का पूरा अधिकार है।
इस समय चीन और पाकिस्तान भारत को घेरने का प्रयास कर रहे हैं। कई देशों की इच्छा है कि भारत तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत कर दे और ऐसा करते हुए वह चीन पर आक्रमण बोल दे तो कई देशों को चीन के युद्ध अपनी भड़ास निकालने का अवसर मिल जाएगा। हमारे वर्तमान विदेश मंत्री यह भली प्रकार जानते हैं कि यदि भारत ने इस प्रकार उतावलेपन में किसी का मोहरा बनने का प्रयास किया तो इससे देश का भारी अहित होगा। इस बात को अमेरिका सहित दुनिया के सभी बड़े देश भली प्रकार जानते हैं कि भारत में जो नेतृत्व इस समय काम कर रहा है उसे किसी प्रकार से भ्रमित किया जाना संभव नहीं है।
उपरोक्त मंत्रियों के साथ विदेश मंत्री जयशंकर की हुई बैठक के संदर्भ में इजराइल का कहना है कि उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए जिस प्रकार ये देश सामने आए हैं, वह स्वागत योग्य है। यद्यपि अभी तक क्वाड में से किसी ने उनके देश से किसी प्रकार का संपर्क स्थापित नहीं किया है। इजराइल का यह भी कहना है कि वह क्वाड से वेक्सीन, तकनीक, जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा को लेकर जुड़ने का प्रयास करेगा।
इजरायल और अमेरिका दोनों यह चाहते हैं कि भारत मध्य पूर्व में अपनी भूमिका निभाए और इस क्षेत्र की सभी समस्याओं के प्रति वैश्विक मंचों पर भी अपनी उपस्थिति गरिमापूर्ण ढंग से प्रकट करे। इजरायल और अमेरिका जैसे दो महत्वपूर्ण देशों की भारत से इस प्रकार की अपेक्षा को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। यह बात तब और भी अधिक समझने योग्य हो जाती है जब इस क्षेत्र से पाकिस्तान जैसे आतंकी देशों ने भी अपने आपको नेता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । परंतु उन्हें वैश्विक मंचों पर नकार दिया गया है । जिसका कारण केवल एक है कि विश्व नेतृत्व ने अब इस बात को भली प्रकार समझ लिया है कि भारत एक गंभीर देश है और किसी भी क्षेत्र से विश्व नेता के रूप में किसी आतंकी देश को मान्यता प्रदान करना विश्व को आतंक की भट्टी में झोंकने के समान होगा।
इजराइल में नई सरकार बनने के पश्चात भारत के साथ इजराइल की यह पहली बड़ी बैठक हुई है। इससे पहले बेंजामिन नेतनयाहू सरकार के साथ प्रधानमंत्री श्री मोदी की मित्रता पूर्ण नीति के चलते दोनों देश एक दूसरे से बहुत अधिक निकट आ चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी के और नेतन्याहू के संबंधों को विश्व के बड़े नेताओं ने खुली आंखों से देखा है। जिससे भारत के शत्रुओं में भी खलबली मच गई थी।
इजराइल का इस प्रकार भारत के साथ आना भारत के लिए कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण और लाभकारी सिद्ध हुआ है। इजराइल भी यह भली प्रकार जानता है कि भारत जैसे गंभीर और जिम्मेदार देश के साथ मित्रता करना उसे किसी भी दृष्टिकोण से घाटे का सौदा नहीं हो सकता। वैसे भी हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि विश्व राजनीति में जब दो देश निकट आ रहे हों तो उसमें यह कभी नहीं हो सकता कि केवल एक देश के हितों को साधने के लिए ही दोनों देश एक साथ आ रहे होंगे ? ऐसी निकटता के आभास के संदर्भ में यह ध्यान रखना चाहिए कि दोनों देशों की ही आवश्यकताएं जब एक दूसरे से पूर्ण हो रही हों तभी वे इस प्रकार निकट आने का प्रयास करते हैं। स्पष्ट है कि यदि भारत और इजराइल एक दूसरे के निकट आ रहे हैं तो इसमें भारत का ही हित नहीं है बल्कि इजरायल भी भारत के प्रति तभी आकर्षित हो रहा है जब उसे भी बराबर का लाभ मिल रहा हो।
भारत को इस समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जब ‘गजवा ए हिंद’ की तैयारियां तेजी से हो रही हों और विश्व भी तेजी से मुस्लिम और ईसाई देशों में बंटता हुआ जा रहा हो तब भारत को अपने विश्वसनीय मित्रों की खोज करनी ही चाहिए। जब जोहड़ में चारों तरफ काई फैल जाती है तो तैराक को बड़े ध्यान से अपना मार्ग खोजना पड़ता है और यदि जोहड़ समुद्रसोख से भर गया हो तो उस समय तैर कर पार करना करना संभव नहीं हो पाता है। तब उसमें से निकलना भी सरल नहीं रह जाता है। उस अवस्था से निकालने के लिए मित्रों की आवश्यकता होती है। इस समय की विश्व राजनीति में भारत के लिए ‘जोहड़’ में काई नहीं बल्कि समुद्र सोख फैल चुका है । ऐसे में भारत को इजराइल जैसे विश्वसनीय मित्रों की आवश्यकता बहुत अधिक हो जाती है।
हमें इस ओर विशेष रुप से ध्यान देना चाहिए कि वर्तमान परिस्थितियों में यदि विश्व युद्ध होता है तो भारत की स्थिति क्या होगी ? क्या उसका परिणाम भारत को गजवा ए हिंद में परिवर्तित कर देना होगा या फिर भारत को ईसाई और मुस्लिम देश बांट कर खाने का प्रयास करेंगे ? इन सब दृष्टिकोणों से भारत की वर्तमान विदेश नीति निर्धारित की जानी समय की आवश्यकता है। हमारे वर्तमान विदेश मंत्री इन सब परिस्थितियों को बहुत गंभीरता से जानते समझते हैं । उन्होंने कई अवसरों पर चीन जैसे देश को भी विश्व मंचों पर लताड़ पिलाने में संकोच नहीं किया है। उन्होंने बहुत शानदार और गरिमापूर्ण रूप से चीन को यह एहसास कराया है कि आज का भारत 2021 का भारत है ,1962 का भारत नहीं। हमारे विदेश मंत्री के लिए इजराइल इस समय एक महत्वपूर्ण देश है। वह जानते हैं कि इजराइल के साथ मिलकर वह भारत को किस प्रकार एक विश्व शक्ति बनाने में सफल हो सकते हैं ,? वे यह भी जानते हैं कि इजराइल की सामरिक रणनीति भारत के साथ यदि सांझा होती है तो उसका लाभ हमें चीन और पाकिस्तान जैसे अपने परंपरागत शत्रुओं से निबटने में मिल सकता है।
ऐसा नहीं है कि इजराइल की महत्ता को वर्तमान सरकार ही समझ रही हो , अब से पहले 90 के दशक में देश के प्रधानमंत्री रहे नरसिम्हाराव के शासनकाल में भी भारत ने इजरायल के साथ अपने महत्वपूर्ण कूटनीतिक संबंधों को प्राथमिकता देना आरंभ किया था। उस समय के प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव उससे पहले विदेश मंत्री के रूप में भी काम कर चुके थे। जिससे उन्हें यह भली प्रकार ज्ञान था कि इजराइल यदि भारत के साथ आता है तो उसका भारत को अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। आज के इजराइल ने सामरिक क्षेत्र में जो महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है उसके लिए उसकी उद्योग शक्ति का विश्व लोहा मानता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जब यह घोषणा कर चुके हैं कि वह एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते हैं जो सामरिक क्षेत्र में अपने निर्णय अपने आप लेने में सक्षम हो और जितनी उसकी सुरक्षा आवश्यकताएं हैं उन सबको वह अपने आप ही पूर्ण कर सकता हो, तब सामरिक क्षेत्र के महारथी के रूप में मान्यता प्राप्त इजराइल का सहयोग भारत के लिए सोने पर सुहागा वाला हो सकता है। इसके साथ ही यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि इजराइल को आतंकवाद के विरुद्ध सफलतापूर्वक लड़ने वाले देश के रूप में भी जाना जाता है। अब जबकि भारत लंबे समय से आतंकवाद से लड़ रहा है तो उससे निपटने के लिए भी इसराइल का सहयोग और मार्गदर्शन भारत के बहुत काम आने वाला है।
जिस समय कारगिल का युद्ध हुआ था उस समय भी केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार थी। उस समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। उन्होंने भी इजरायल से संबंध बनाने व बढ़ाने को प्राथमिकता दी थी । उसका ही परिणाम था कि इजराइल ने कारगिल में हमें सफल करने में सहयोग दिया और वह हमारे लिये बहुत ही लाभप्रद रहा था। उसके बाद अब हम इजराइल से लक्ष्य भेदी मिसाइल और युद्ध सामग्री भी प्राप्त कर चुके हैं। जिसके चलते पाकिस्तान और चीनी जैसे देश भारत की ओर नजरें उठाने से पहले एक बार नहीं कई बार सोचते हैं।
कुल मिलाकर भारत को इस समय अपने सामरिक सहयोगी ढूंढने की आवश्यकता है। जिनमें इजराइल सबसे ऊपर हो सकता है। रूस और इसी प्रकार के दूसरे किसी भी देश से सामरिक समझौता करने से भी भारत को पीछे नहीं हटना चाहिए। क्योंकि विश्व राजनीति का इस समय बहुत अधिक तेजी से मजहबीकरण हो रहा है। मजहबपरस्ती विश्व राजनीति में बहुत गहराई से घर कर चुकी है। यद्यपि इसके कीटाणु पहले से ही मौजूद रहे हैं, परंतु वर्तमान में तो यह विषैले वायरस में परिवर्तित हो चुके हैं । ऐसे में भारत के लिए क्वाड बहुत महत्वपूर्ण है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ संकेत देने वाली घटना है कि जम्मू कश्मीर में जब धारा 370 को हटाया गया तो उस समय अरब देशों सहित विश्व के सभी देशों ने बड़ी संतुलित प्रतिक्रिया व्यक्त करके इसे भारत का आंतरिक मामला बताया था। उस समय भारत के नेतृत्व ने संतुलित भूमिका निभाकर देश के हितों को प्राथमिकता देकर राजधर्म का सम्यक निर्वाह किया था। अब इसी प्रकार के राज धर्म के संगठन के बाहर के लिए एक साथ कई चुनौतियां खड़ी दिखाई दे रही है जिनके लिए भारत के नेतृत्व को अभी कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना होगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत