प्रचार से न होगा कष्ट पीड़ितों का भला
लक्ष्मीकांता चावला
सुनने में यह वाक्य अच्छा लगता है कि जनता का राज्य, जनता के लिए है। देश के सभी धन-धान्य व साधन बहुजन सुखाय, बहुजन हिताय हैं। वैसा ही कथन कि जैसे कहा जाये कि कानून के आगे सब बराबर हैं। वैसे भी सरकार बनने के बाद जनता से दूरी बना दी जाती है। जनता के सुख के लिए जो नीतियां बनती हैं उनमें जनता का न कोई विचार होता है, न स्वीकृति। सचिवालयों में बैठे प्रशासनिक अधिकारी या मंत्री जो चाहते हैं वह जनता को सुना दिया जाता है। दरअसल, कोई चार दिन का शासक बने या चार वर्ष का, चार दिन की चांदनी में वे चांदी बनाने, अपनी सुख-सुविधाएं बढ़ाने तथा आगामी चुनाव के लिए धन जुटाने में ही लगा देते हैं।
कमोबेश पूरे देश की यही स्थिति है, मगर पंजाब का उदाहरण ताजा है। माल मुफ्त है और बेरहमी से लुटाया भी जा रहा है। पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री ने जब शपथ ली तो सभी को यह ज्ञात था कि यह सरकार चंद महीनों की है। चुनाव संहिता लागू होने से दो महीने तक यह सरकार कोई निर्णय नहीं ले सकेगी, फिर भी जैसे मन के पुराने सारे शौक पूरा करने के लिए नए मुख्यमंत्री ने सारे पंजाब के बड़े चौक-चौराहों, मुख्य मार्गों को अपनी मुस्कुराती फोटो वाले होर्डिंग्स के साथ भरवा दिये। कुछ सरकारी खर्च पर और कुछ जी-हुजूरी करने वालों ने कसर पूरी की। जिस दिन से वे मुख्यमंत्री बने हैं करोड़ों रुपयों के विज्ञापन समाचारपत्रों में, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में और न जाने कहां-कहां दे चुके हैं। सभी जानते हैं कि पंजाब का मुख्यमंत्री कौन है, फिर भी बहुत जल्दबाजी में निवर्तमान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के चित्र वाले बोर्ड उतरवाकर कहीं फिंकवा दिए गए और नए लगा दिए। जो काम अभी तक किए नहीं गये केवल करने के लिए आश्वासन दिए जा रहे हैं। उनकी भी घोषणाएं इन्हीं बड़े-बड़े बैनर होर्डिंग्स द्वारा कर दी गई।
सवाल है कि अगर इन विज्ञापनों में या होर्डिंग्स में पंजाब सरकार की कारगुजारी का वर्णन हो तो नेता बदलने के बाद नए होर्डिंग्स-बैनर लगवाने की जरूरत ही न पड़े। अपनी जेब से किसी को एक विज्ञापन देना पड़े तो दस बार सोचता है, लेकिन यहां दर्जनों पत्रों में विशेष समारोहों के नाम पर सैकड़ों फोटो लगवा दी, पर इससे जनता के हित में कुछ नहीं हुआ।
सारे काम सरकारी धन पर बोझ बनाने वाले ही किए जा रहे हैं। नई सरकार कुछ अधिकारियों को बदलती ही है, पर यहां तो रिकॉर्ड तोड़ ट्रांसफर करके सरकारी खजाने पर भी बोझ डाला जा रहा है। विजयादशमी के एक दिन पहले पचास से ज्यादा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के जिले और विभाग बदले गए। हर वरिष्ठ अधिकारी अफरातफरी में नए जिले की ओर भागा, क्योंकि दशहरे के लिए आवश्यक प्रबंध करने थे। इसके सिर्फ एक दिन बाद आईएएस, पीसीएस अधिकारियों को बदला गया। कुछ तो चहेते रहे होंगे और कुछ सत्तापक्ष के विधायकों की सुविधा का ध्यान करके बदले गए। अब माल विभाग के तहसीलदारों और नायब तहसीलदारों के तबादले हो गए। कौन नहीं जानता कि 2022 में जब नई सरकार का गठन होगा तब एक बार फिर इनमें से बहुत से अधिकारी बदले जाएंगे। लगता है कि न किसी को जनता की फिक्र है, न पंजाब को आगे ले जाने की कोई गंभीर चाह है। बस यही कोशिश कि अपने-अपने गुट के विधायकों या अधिकारियों को तुष्ट करके आगामी चुनाव में अपनी गद्दी बचा ली जाए। जितने अधिकारी स्थानांतरित होते हैं उनके आने-जाने के खर्च, उनके आवास आदि का बोझ सरकारी कोष पर पड़ता है।
इन दिनों राजनीति में एक नया शब्द भी आ गया है—चेहरा कौन होगा? चेहरे तो पल-पल बदलते हैं, मुखौटे भी लग जाते हैं, पर पंजाब के मुख्यमंत्री का चेहरा एक सप्ताह में जिस तरह बदला उससे जनता को सीख लेना चाहिए कि चेहरा नहीं, व्यक्ति और व्यक्तित्व ज्यादा महत्व रखता है।
चेहरा चमकाने की राजनीति करने वालों को चाहिए कि जनता के दिल में उतरें। सरकार की कोशिश हो कि अगले छह सप्ताह पंजाब के हर जिले में जो लोग दिव्यांग, बुढ़ापा आदि पेंशन के अधिकारी हैं, उनके कैंप लगाकर सब योग्य लाभार्थियों को पेंशन दे दीजिए। फिर कोई चुनावी प्रचार या चुनाव में आटा-दाल बांटने और शराब पिलाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जितने लोग सरकार द्वारा चलाई जा रही आउटसोर्सिंग एजेंसियों की शोषण की चक्की में पिस रहे हैं उन्हें राहत दीजिए, पूरी रोटी और सम्मान। जो ठेके की नौकरी में बारह-चौदह वर्षों से ज्यादा समय से पिस रहे हैं, गरीबी में, अभाव में, बेरोजगार होने की आशंका में उनको सहारा दे दीजिए। नेता जनता को लुभाने में लगे हैं लेकिन महंगाई से त्रस्त, भूखे पेट और बेरोजगारी की चक्की में पिसते लोगों के दिल में इन प्रलोभनों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। अगर राज्य की आधी आबादी का दिल जीतना है तो फिर जरा हिम्मत दिखाइए, शराब पर पाबंदी लगाएं। लाखों महिलाएं आशीर्वाद भी देंगी और बच्चों की शुभकामनाएं बोनस में मिलेंगी।
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