शांति, अहिंसा, प्रेम, त्याग से, करें सहयोग में वृद्घि।
समझें परिवार इस वसुधा को, मित्रभाव से करें समृद्घि।
रूलाकर किसी भी प्राणी को, प्रभु हंसना अपना स्वभाव न हो।
मानव मानव के मानस में, किंचित भी कोई दुर्भाव न हो।
विज्ञान हमें ऐसा देना, जिसमें हृदय का अभाव न हो।
नही चाहिए ऐसा स्वर्ग, जहां आपस में सदभाव न हो।
लगे भलाई में मन अपना, करें प्रेम से भक्ति।
शारीरिक मानसिक और आत्मिक, दे दे ऐसी शक्ति।
हे जगत्पते! कर त्राण जगत का, हृदय हुआ विकल।
जीवन बीत रहा पल-पल।