जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर खड़ा भारत

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देवेन्द्र कोठारी (जनसंख्या विश्लेषक)

भारत में अनेक गंभीर समस्याएं हैं। गरीबी, भ्रष्टाचार, सुशासन की समस्या, सामाजिक और धार्मिक विवाद इत्यादि। ऐसे में, जनसंख्या को लेकर इतना अधिक चिंतित होने की क्या जरूरत है? इस सवाल का सीधा सा जवाब यह है कि इन तमाम समस्याओं का संबंध घूम-फिर कर देश में तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या से ही जुड़ा हुआ है।
राष्ट्रीय संसाधनों का बहुत बड़ा हिस्सा देश की विशाल आबादी के भरण-पोषण पर खर्च हो जाता है, जबकि इन संसाधनों का उपयोग निवेश और उत्पादकता को बढ़ाने, इनकी गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल आदि सार्वजनिक सेवाओं को व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराया जा सकता है। तेज रफ्तार से बढ़ रही आबादी देश के समग्र विकास पर असर डाल रही है। जनसंख्या के बढऩे की वर्तमान गति को रोक कर इसे स्थिर किए बिना, भारत अपनी वर्तमान समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।
भारत की जनसांख्यिकी को देखकर दिमाग चकरा जाता है। वर्ष 1947 में भारत की आबादी 33 करोड़ थी। यह मार्च 2018 में 135 करोड़ हो चुकी है। पिछले सत्तर सालों में यह चार गुना बढ़ोतरी है। दुनिया की कुल आबादी में अब भारत की हिस्सेदारी 17.8 प्रतिशत हो गई है। यानी दुनिया का हर छठा व्यक्ति भारतवासी है। चीन ही एकमात्र देश है, जिसकी जनसंख्या भारत से ज्यादा है। यह महज सात करोड़ ही अधिक है जबकि 1990 में यह भारत की जनसंख्या से 30.2 करोड़ अधिक थी।
भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्घि दर 2010-15 के दौरान 1.24 प्रतिशत प्रति वर्ष रही है, जबकि इसी अवधि में चीन में जनसंख्या वृद्घि की वार्षिक दर 0.61 प्रतिशत दर्ज की गई। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग का अनुमान है कि 2030 में भारत की आबादी चीन की आबादी से अधिक हो जाएगी। जनसंख्या वृद्घि दर पर आधारित इस अनुमान के अनुसार 2030 में भारत की जनसंख्या 147.6 करोड़ से अधिक हो जाएगी, जबकि चीन की जनसंख्या के बारे में अनुमान है कि यह उस समय 145.3 करोड़ सर्वोच्च स्थिति में पहुंचने के बाद कम होना शुरू हो जाएगी।
हाल के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तो यह कहा जा सकता है कि भारत की जनसंख्या वर्ष 2023 में ही चीन से अधिक हो जाएगी। जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को देखते हुए क्या यह आशा की जा सकती है कि भारत की जनसंंख्या भी निकट भविष्य में कम होना शुरू हो जाएगी? वास्तविकता यह नहीं है। हकीकत यह है कि भारत की जनसंख्या अभी और बढ़ेगी। वर्ष 2060 तक हमारी आबादी करीब 170 करोड़ के आस-पास होगी। इसका मुख्य कारण भारत की जनसंख्या में युवकों की बड़ी संख्या है। जनसंख्या के लगातार बढऩे को जनसांख्यिकीय गति कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की जनसंख्या में से 31 प्रतिशत की आयु 0-14 वर्ष थी। ऐसे में आबादी का घट कर एक अरब पर आना नामुमकिन है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि का बड़ा कारण अनचाहा गर्भ है। हर दस जीवित शिशुओं में से लगभग पांच बच्चे अनचाहे या अनियोजित होते हैं। अवांछित गर्भ के परिणाम व्यापक कुपोषण, खराब स्वास्थ्य, शिक्षा की निम्न गुणवत्ता, भोजन-पानी और आवास जैसे बुनियादी संसाधनों की कमी के रूप में देखे जा सकते हैं। वर्ष 2017 में कुल 2.6 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे। इनमें 1.3 करोड़ प्रसव अवांछित के रूप में वर्गीकृत किए जा सकते हैं।
इसके अलावा, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के आधार पर अनुमान है कि भारत में 2017 में लगभग 135 करोड़ में से 43 करोड़ लोग अवांछित गर्भ का परिणाम थे। देश में लगभग 1.3 करोड़ ऐसी महिलाएं हैं जो और बच्चे नहीं चाहतीं। इन महिलाओं को आधुनिक गर्भनिरोधक उपाय सुलभ नहीं हो पा रहे हैं। गर्भनिरोधकों की कमी, स्टॉक खत्म होना, अनुपलब्धता या डॉक्टरों और चिकित्सीय सहायकों की अनुपलब्धता जैसी गंभीर समस्याएं इसका कारण हैं। ऐसे में महिलाएं खुद को अवांछित व अनियोजित गर्भ तथा यौन संक्रमण से सुरक्षित रखने में असमर्थ पाती हैं। परिवार नियोजन की अपूर्ण स्थिति जनसंख्या वृद्धि दर में जल्द कमी की संभावनाओं को कमजोर कर देती है।
अवांछित गर्भधारण पूरी तरह से तो खत्म नहीं किया जा सकता, पर एक दशक में इन पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इसके लिए नवविवाहित जोड़ों को आवश्यकता अनुसार परिवार नियोजन सेवाएं सहज उपलब्ध करानी होंगी। नब्बे के दशक के दौरान आंध्रप्रदेश ने इसका बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया। यदि आंध्रप्रदेश ने अपनी जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया है तो कोई वजह नहीं है कि अन्य राज्य खासतौर से उत्तर भारत के चार बड़े राज्य – बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश ऐसा नहीं कर सकते?
भारत को गर्भ निरोध के उपायों के माध्यम से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर दंपती की इच्छा और चाह के अनुसार ही बच्चे हों। इसे केंद्र में रखकर परिवार नियोजन कार्यक्रम को पुनर्गठित करने की जरूरत है। भारत की जनसंख्या स्थिर करने में नाकामयाबी का गंभीर परिणाम देश के विकास और भविष्य पर होगा।

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