बिहार में भाजपा के समर्थन में हुई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली ने यह तो प्रमाणित कर ही दिया है, कि अभी उनका जादू समाप्त नहीं हुआ है। भाजपा की इस आमसभा में उमड़ी भीड़ ने निश्चित रूप से राष्ट्रीय जनता दल और जनतादल एकीकृत के सपनों पर तुषारापात किया होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार की इस सभा में वही मुद्दा उठाया जिसके कारण वहां की जनता लम्बे समय तक परेशान रही, मतलब…… जंगलराज। राजनीतिक दृष्टि से चिन्तन किया जाए तो यह बात अभी तक कोई भूला नहीं होगा कि बिहार में लालू प्रसाद यादव के शासन को पूरी तरह से जंगलराज की श्रेणी में रखा गया था, इससे बिहार की जनता बहुत परेशान भी हुई। इतना ही नहीं कई बार तो न्यायालय ने भी बिहार में जंगलराज होने की पुष्टि भी की थी। इसी जंगलराज से मुक्ति पाकर वहीं जनता ने एक नया जनादेश दिया, जिसके फलस्वरूप भाजपा के सहारे नीतीश कुमार राज्य के मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ धोखा करके फिर से जंगलराज के प्रणेता के साथ गलबहियां करके आम जनता के बीच में हैं। सत्ता पाने के लिए हुए दो विरोधियों का यह गठबंधन बिहार को किस दिशा की ओर ले जाएगा, यह समझने की बात है। यहां पर यह कहना काफी महत्वपूर्ण होगा कि बिहार की जनता ने जिस जंगलराज से मुक्ति पाई थी, आज नीतीश कुमार उसी के साथ फिर से बिहार में जंगलराज लाने की कवायद करते दिखाई दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली ने यह तो साबित कर ही दिया है कि बिहार की जनता एक बार फिर परिवर्तन करना चाह रही है। बिहार में नरेन्द्र मोदी की सभा में जितनी भीड़ जुटी है, उससे राजनीतिक चिन्तन की धारा का प्रवाह एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी की तरफ जाता हुआ दिखाई दे रहा है। केन्द्र सरकार की कार्यप्रणाली को देखकर यह तो सभी को लगने लगा है कि भाजपा के सहारे ही देश में अच्छे दिन लाने की कार्यवाही की जा सकती है। आर्थिक भ्रष्टाचार से मुक्त केन्द्र सरकार की नीतियों पर बिहार की जनता ने विश्वास जताया है। भाजपा की इस रैली के बाद से वहां के वातावरण में एक नवीनता का अहसास हुआ है। इससे यह पूरी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि बिहार अब भाजपा के साथ जाने का मन बना चुका है।
इसके विपरीत बिहार में इस रैली के प्रभाव को समाप्त करने का पूरा षड्यंत्र किया गया। जहां लालूप्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने भाजपा की इस रैली के प्रति काफी जहर उगला, वहीं नक्सली ताकतों ने भी रैली में उपद्रव करने की सीधी धमकी दी। नक्सलियों ने पूरे बिहार को बन्द करने का आहवान भी किया, नक्सलियों का यह आहवान सफल हुआ या नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली जरूर सफल हो गई। इस सफलता के साफ मायने निकाले जा सकते हैं कि बिहार एक बार फिर से सत्ता परिवर्तन करना चाह रहा है।
राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा की इस रैली की सफलता से निश्चित ही घबराहट में होंगे। हालांकि लालूप्रसाद यादव का साफ कहना है कि भाजपा की इस रैली में भाड़े की भीड़ जुटाई गई थी, लेकिन इन लोगों को यह बात दिखाई नहीं दी कि नक्सलियों की खुली धमकी के बाद भी रैली में इस प्रकार का जनसैलाब उमडऩा कहीं न कहीं सरकार के प्रति जनता के आक्रोश का नतीजा है। उन्हें रैली में बाहर के लोग तो दिखाई देते हैं, लेकिन क्या उन्होंने यह देखने का प्रयास किया कि उनको जनता ने सत्ता से नीचे क्यों उतार दिया था। लालूप्रसाद यादव को इस विषय पर गंभीर चिन्तन करने की आवश्यकता है। बिहार में इस बात को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि नीतीश कुमार और लालूप्रसाद यादव का राजनीतिक प्रभाव पूरी तरह से शून्य हो गया है। दोनों मिलकर राज्य में जिस प्रकार की उम्मीद पालकर राजनीति कर रहे हैं, वह भले ही पूरी न हो पाए, लेकिन यह तो कहा जा सकता है कि दोनों ही महारथी एक दूसरे का खेल बिगाडऩे का सामथ्र्य रखते हैं। अब खेल कौन किसका बिगाड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। वर्तमान में लालू प्रसाद यादव के सामने मजबूरी यह है कि लम्बे समय से उनकी पार्टी का राजनीतिक अस्तित्व दांव पर लगा है, उसी अस्तित्व को बचाने के लिए लालू यादव ने मजबूरी में नीतीश का सहारा लिया है। वर्तमान में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया तो अपराधी साबित हो चुके हैं, ऐसे में उनके सामने एक ही विकल्प बचता है कि अपने परिवार को राजनीतिक शक्ति प्रदान की जाए। इसके लिए जरूर वह अपने परिवार के अधिकांश सदस्यों को विधानसभा चुनाव के मैदान में उतारने का मन बना चुके होंगे।
अब बिहार की जनता फिर से लालू यादव के संग नीतीश की सरकार चाहती है, ऐसा बिलकुल भी दिखाई नहीं देता, लेकिन लालू में ऐसे राजनीतिक गुण विद्यमान हैं कि वे खाएंगे नहीं तो फैला जरूर देंगे। कौन नहीं जानता कि बिहार में आज कांगे्रस जिस हालत में है, उसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार लालू प्रसाद यादव ही हैं। वर्तमान में कांगे्रस केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए बिहार की चुनावी राजनीति में उतरेगी, उसके लिए सत्ता प्राप्त करना बहुत दूर का खेल दिखाई दे रहा है। राजद नेता लालू यादव के बारे में अब बिहार में ही ऐसी आवाजें उठने लगीं हैं कि जिस प्रकार से उन्होंने कांगे्रस का खेल खराब किया, कहीं ऐसा न हो कि वह नीतीश के सपनों पर भी पानी फेर दें। वैसे भाजपा की रैली से यह संकेत तो मिलने ही लगा है कि उनकी उम्मीदें एक बार फिर धराशायी होने की कगार पर हैं।
बिहार की राजनीति में यह विरोधाभास अभी से यह अहसास कराने लगा है कि लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के छोटे भाई बनकर राजनीति करने के मूढ़ में नहीं हैं। उन्होंने भले ही किसी राजनीतिक मजबूरी के चलते नीतीश कुमार को अगला मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया हो, लेकिन अगर किसी चमत्कार के कारण राजद की सीटें ज्यादा आईं तो लालू को पलटी मारते देर नहीं लगेगी।