क्रांतिकारी खुदीराम बोस भारत के ऐये महान सपूत थे जिन्होनें सबसे कम आयु में भारत को आजादी दिलाने के लिए व अग्रेजों के मन में भय उत्पन्न करने के कारण फांसी का फंदा चूम लिया। खुदीराम बोस का जन्म ग दिसम्बर अद्वद्व् को बंगाल के मिदनापुर जिले के एक -गांव में बाबू त्रैलौक्यनाथ के घर पर हुआ था और माता कानाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बोस ने नौवी कक्षा के बाद से ही पढ़ाई छोड़ दी थी । उस समय अंगे्रजों की ओर से भारतीयों पर घोर अत्याचार किये जा रहे थे जिससे आम भारतीयों में गहरा आक्रोष था। रूकूलछोडऩे के बाद से ही बोस रिवोल्यूषनरी पार्टी मे षामिल हो गये थे । उन्होनें बंगाल विभाजन का भी विरोध किया और यगांतर के सदस्य बनकर आंदोलन में हिस्सा लिया। आज खुदीराम बोस का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। उन दिनों अनेक अंग्रेज अधिकारी भाारतीयों से दुव्र्यवहार करते थे।ऐसा ही एक मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड मुजफ्फरपुर बिहार में तैनात था। वह छोटी छोटी बातों पर भारतीयों को दंड देता था। अत: क्रांतिकारियों ने उससे बदला लेने का निष्चय किया।
कोलकाता में प्रमुख क्रांतिकारियों की बैठक हुई। बैठक में किंग्सफोर्ड को यमलोक पहुचानेे की योजना पर गहन विचार विमर्ष हुआ। बोस ने स्वयं को इस कार्य के लिए उपस्थित किया वह भी तब जब उनकी अवस्था बहुत कम थी। उनके साथ प्रफुल्ल कुमार चाकी को भी इस अभियान को पूरा करने का दायित्व सौंपा गया।
दोनों युवकों को एक बम , तीन पिस्तौल व चालीस कारतूस दिये गये । दोनों ने मुजफ्फरपुर पहुंचकर एक धर्मषाला में डेरा जमा लिया। कुछ दिन तक किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन किया। इससे उन्हें पता लग गया कि वह किस समय न्यायालय आता- जाता है पर उस समय उस साथ बड़ी सख्या में पुलिस बल तैनात रहता था। अत: उस समय उसे मारना कठिन था। अत: उन्होनें उसकी षेया दिनचर्या पर ध्यान दिया। किंग्सफोर्ड प्रतिदिन षाम को लाल रग की बग्घी में क्लब जाता था। दोनेां ने उस समय ही उसको समाप्त करने का निष्चय किया।ग0 अप्रैल अ्रद्व को दोनों क्लब के पास की झाढिय़ों में छिप गये। षराब और नाचाना समाप्त करके लो- जाने ले। अचानक एक लाल बग्घी क्लब से निकली। दोनों की खुषी का ठिकाना नहीं रहा।
परन्तु दुर्भाग्य कि उस दिन किंग्सफोर्ड क्लब आया ही नहीं था। उस बग्घी में केवल दो महिलाएं वापस घर जा रही थीं।क्रांतिकारियों के हमले से वे यमलोक पहुंच -यीं। पुलिस ने चारों ओर जाल बिछा दिया। बग्धी के चालक ने दो युवकों की बात पुलिस को बतायी। खुदीराम और चाकी रातभर भा-ते रहे। वे किसी तरह सुरक्षित कोलकाता पहुंचना चाहते थे।
प्रफुल्ल किसी प्रकार से कोलकाता की रेल में बैठ गये। उस डिब्बे में एक पुलिस अधिकारी भी था। उसे षक हो गया। उसने प्रफुल्ल को पकडऩा चाहा लेकिन इसके पहले ही प्रफुल्ल ने स्वयंको अपनी पिस्तौल से समाप्त कर लिया।
इधर खुदीराम एक दुकान पर भाजन करने के लिए बैठ गये। वहां लोग रात वाली घटना की चर्चा कर रहे थे कि वहां दो महिलाएं मारी -यीं।यह सुनकर बोस के मुंह से निकल पड़ा – तो क्या किंग्सफोर्ड बच गया? यह सुनकर लोगों को संदेह हो गया और उन्होनें उसे पकडक़र पुलिस को सौंप दिया।
मुकदमे में खुदीराम को फांसी की सजा सुनायी गयी। अगस्त, को हाथ में गीता लेकर खुदीराम फांसी पर झूल गये। उस सूर्य उनकी आयु साल आठ महीने और दिन थी।