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ब्रिटेन की संसद में भारत को स्वाधीन करने की मजबूरी के बारे में प्रधान मंत्री क्लिमेंट एटली ने कहा था कि भारत की ब्रिटिश सेना हमारे प्रति वफ़ादार नही रही है और हमारे पास वह ताक़त नही है कि हम उसे भारत में भेज कर भारत की विद्रोही सेना को नियंत्रण में ले सके। फिर अपने भारत सफ़र के समय एटली ने और और भी अधिक स्पष्ट किया कि सुभाष चंद्र बोस व उनकी आज़ाद हिंद सेना के संघर्ष ने भारतीय सैनिकों की वफ़ादारी ब्रिटिश ताज से बदल कर उसक़े प्रति विद्रोही और पूर्णतया उग्र कर दी,,इसलिए विश्व युद्ध जीतने व भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के बाद भी हमें भारत को स्वतंत्रता देनी पड़ी।
महात्मा गाँधी की इसमें क्या भूमिका थी ? – इस पर एटली का कहना था कि नही के बराबर थी।
भारत में विचित्र परिहास है। आज़ाद हिन्द सेना की झाँसी रानी रेजिमेंट की कर्नल डाक्टर लक्ष्मी सहगल के अनुसार, सरकारी दस्तावेज़ो में आज़ाद हिन्द सेना एक देशद्रोही संगठन है। उन्होंने पण्डित नेहरू से लेकर प्रायः प्रत्येक प्रधान मन्त्री से आज़ाद हिन्द सेना व सुभाष बाबू जिसके बारे में हमारे शत्रु ब्रिटिश भी स्वीकार करते हैं कि आज़ाद हिन्द सेना व सुभाष चन्द्र बोस ने ब्रिटिश भारतीय सेना की वफ़ादारी ब्रिटिश ताज से बदल दी, इसलिए उन्होंने मजबूर हो कर भारत को स्वाधीन करना पड़ा।
भारत सरकार के दस्तावेजों में,आज़ाद हिन्द सेना एक देशद्रोही संगठन है,उसको हठाये व सुभाष चन्द्र बोस की देश को स्वाधीन कराने में भूमिका को उचित स्थान दे। पर आज तक किसी भी प्रधानमन्त्री ने इसमें सुधार नही किया। सुभाष बाबू कहते हैं कि सावरकर के हिंदुओं के सैनिकीकरण के कारण ही हमें आज़ाद हिन्द सेना में प्रशिक्षित सैनिक मिल रहे हैं। यानी सावरकर के चलते ही आज़ाद हिन्द सेना बन पायी। पर हम क्या देखते हैं कि २७ वर्ष कालापानी की कठोर सजा व राजनीति नही करने की शर्त पर नज़रबन्दी का जीवन जीने वाले सावरकर पर,ये कांग्रेसी व वामपंथी लगातार झूठा आरोप लगा रहे हैं कि,सावरकर माफ़ी माँग कर अंडमान की जेल से रिहा हुए थे। वही अंग्रेजों के विशेष कृपा पात्र रहे कांग्रेस के सर्वे सर्वा गांधी को झूठ मूठ में ही देश की आजादी लाने का श्रेय दे दिया गया और आजाद भारत का उन्हें राष्ट्रपिता भी घोषित कर दिया गया।
गाँधी की भारत के स्वतंत्रता समर में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
गाँधी ने स्वतंत्रता समर में,स्वतंत्रता आंदोलन के साथ साथ मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करने के लिये ख़िलाफ़त आंदोलन भी चलाया। उनका कहना था कि मुसलमानों के सहयोग के बिना स्वतंत्रता प्राप्त करना असम्भव है। जिसको प्राप्त करने में वे पूर्णतः असफल रहे व मुसलमानों ने अपना अलग मुस्लिम रास्ट्र बनाया। गाँधी ने अहिंसा के मार्ग से ही स्वाधीनता प्राप्त करनी हैं,एक नया सिद्धांत प्रतिपादित किया।गाँधी द्वारा मोपला की हिन्दु हत्याओं व स्वामी श्रधानंद की अब्दुल रशीद द्वारा हत्या करने पर प्रतिवाद नही करने पर हिंदुओं के प्रति उनका असली रूप निकलकर सामने आया। गाँधी का अहिंसा का सिद्धांत क्रांतिकारियों के हाथों सिर्फ़ अंग्रेजों को बचाने का हथियार था। गाँधी ने १९४५ के केंद्रीय लेजिस्लेटिव असेम्ब्ली के चुनाव को जीतने के लिए दिया हुआ वचन कि कांग्रेस कभी भी मुस्लिम लीग की माँग,देश का विभाजन कर मुस्लिम होमलैंड का निर्माण स्वीकार नही करेगी। परन्तु गाँधी देश को संगठित रखने में पूर्णतः असफल रहे। मुस्लिम होमलैंड पाकिस्तान का निर्माण स्वीकार कर उन्होंने भारतवर्ष को विभाजित किया। पाकिस्तान निर्माण के पश्चात मुस्लिम होमलैंड पाकिस्तान में वहां रह गए हिन्दुओं का इतना रक्तपात हुआ कि, वह संख्या २० लाख तक या इससे ऊपर पहुँच गयी।पाकिस्तान में हिन्दुओं का यह नरसंहार सम्पन्न ही नही होता, यदि गाँधी अपनी वोटबेंक बनाने के लिए जिन्ना की स्पष्ट चेतावनी की नोवाखाली हिन्दु हत्याओं की तरह, हम पाकिस्तान से हिन्दुओं को निकलने के लिए हिन्दुओं का नरसंहार करेंगे।हिन्दुओं का यह नरसंहार हमें ना करना पड़े,इसलिए गाँधी जनसंख्या की अदलाबदली के मेकेनिजम की स्थापना करे। पाकिस्तान में रह गए हिन्दुओं का क्या भविष्य होगा ?,जिन्ना की चेतावनी को जानने के बाद भी गाँधी ने उनको बचाने के लिए कोई भी मेकनिजम नही स्थापित किया। अपना वोट बैंक बनाते रहे और हिन्दुओं का नरसंहार देखते रहे। हाय भारतवर्ष का परिहास।