वेदों से ईश्वर के अजन्मा, सर्वव्यापक, अजर, निराकार होने के प्रमाण।
अजन्मा
१. न जन्म लेने वाला (अजन्मा) परमेश्वर न टूटने वाले विचारों से पृथ्वी को धारण करता है ।
(ऋग्वेद १/६७/३)
२. एकपात अजन्मा परमेश्वर हमारे लिए कल्याणकारी होवे ।
(ऋग्वेद ७/३५/१३)
३. अपने स्वरुप से उत्पन्न न होने वाला अजन्मा परमेश्वर गर्भस्थ जीवात्मा और सब के ह्रदय में विचरता है ।
(यजुर्वेद ३१/१९)
४. परमात्मा सर्वशक्तिमान, स्थूल, सूक्षम तथा कारण शरीर से रहित, छिद्र रहित, नाड़ी आदि के साथ सम्बन्ध रूप बंधन से रहित, शुद्ध, अविद्यादि दोषों से रहित, पाप से रहित सब तरफ से व्याप्त है । जो कवि तथा सब जीवों की मनोवृतिओं को जानने वाला और दुष्ट पापियों का तिरस्कार करने वाला है । अनादी स्वरुप जिसके संयोग से उत्पत्ति वियोग से विनाश, माता-पिता गर्भवास जन्म वृद्धि और मरण नहीं होते वह परमात्मा अपने सनातन प्रजा (जीवों) के लिए यथार्थ भाव से वेद द्वारा सब पदार्थों को बनाता है ।
(यजुर्वेद ४०/८)
सर्वव्यापक
१. अंत रहित ब्रह्मा सर्वत्र फैला हुआ है ।
(अथर्ववेद १०/८/१२)
२. धूलोक और पृथ्वीलोक जिसकी (ईश्वर की) व्यापकता नहीं पाते ।
(ऋग्वेद १/५२/१४)
३. हे प्रकाशमय देव! आप और से सबको देख रहे हैं । सब आपके सामने है । कोई भी आपके पीछे है देव आप सर्वत्र व्यापक हैं ।
(ऋग्वेद १/९७/६)
४. वह ब्रह्मा मूर्खों की दृष्टि में चलायमान होता है । परन्तु अपने स्वरुप से (व्यापक होने के कारण) चलायमान नहीं होता है । वह व्यापकता के कारण देश काल की दूरी से रहित होते हुए भी अज्ञान की दूरिवश दूर है और अज्ञान रहितों के समीप है । वह इस सब जगत वा जीवों के अन्दर और वही इस सब से बाहर भी विद्यमान है ।
(यजुर्वेद ४०/५)
५. सर्व उत्पादक परमात्मा पीछे की ओर और वही परमेश्वर आगे, वही प्रभु ऊपर, और वही सर्वप्रेरक नीचे भी है । वह सर्वव्यापक, सबको उत्पन्न करने वाला हमें इष्ट पदार्थ देवे और वही हमको दीर्घ जीवन देवे ।
(ऋग्वेद १०/२६/१४)
६. जो रूद्र रूप परमात्मा अग्नि में है । जो जलों ओषधियों तथा तालाबों के अन्दर अपनी व्यापकता से प्रविष्ट है ।
(अथर्ववेद ७/८७/१)
अजर
१. हे अजर परमात्मा, आपके रक्षणों के द्वारा मन की कामना प्राप्त करें ।
(ऋग्वेद ६/५/७)
२. जो जरा रहित (अजर) सर्व ऐश्वर्य संपन्न भगवान को धारण करता है । वह शीघ्र ही अत्यन्त बुद्धि को प्राप्त करता है ।
(ऋग्वेद ६/१ ९/२)
३. धीर ,अजर, अमर परमात्मा को जनता हुआ पुरुष मृत्यु या विपदा से नहीं घबराता है ।
(अथर्ववेद १०/८/४४)
४. हम उसी महान श्रेष्ठ ज्ञानी अत्यंत उत्तम विचार शाली अजर परमात्मा की विशेष रूप से प्रार्थना करें ।
(ऋग्वेद ६/४९/१०)
निराकार
१. परमात्मा सर्वशक्तिमान, स्थूल, सूक्षम तथा कारण शरीर से रहित, छिद्र रहित, नाड़ी आदि के साथ सम्बन्ध रूप बंधन से रहित, शुद्ध, अविद्यादि दोषों से रहित, पाप से रहित सब तरफ से व्याप्त है । जो कवि तथा सब जीवों की मनोवृतिओं को जानने वाला और दुष्ट पापियों का तिरस्कार करने वाला हैं । अनादी स्वरुप जिसके संयोग से उत्पत्ति वियोग से विनाश, माता-पिता गर्भवास जन्म वृद्धि और मरण नहीं होते वह परमात्मा अपने सनातन प्रजा (जीवों) के लिए यथार्थ भाव से वेद द्वारा सब पदार्थों को बनाता है ।
(यजुर्वेद ४०/८)
२. परमेश्वर की प्रतिमा, परिमाण उसके तुल्य अवधिका साधन प्रतिकृति आकृति नहीं है अर्थात परमेश्वर निराकार है ।
(यजुर्वेद ३२/३)
३. अखिल अखिल ऐशवर्य संपन्न प्रभु पाँव आदि से रहित निराकार है ।
(ऋग्वेद ८/६९/११)
४. ईश्वर सबमें हैं और सबसे पृथक है । (ऐसा गुण तो केवल निराकार में ही हो सकता हैं)
(यजुर्वेद ३१/१)
५. जो परमात्मा प्राणियों को सब और से प्राप्त होकर, पृथ्वी आदि लोकों को सब ओर से व्याप्त होकर तथा ऊपर नीचे सारी पूर्व आदि दिशाओं को व्याप्त होकर, सत्य के स्वरुप को सन्मुखता से सम्यक प्रवेश करता है, उसको हम कल्प के आदि में उत्पन्न हुई वेद वाणी को जान कर अपने शुद्ध अन्तकरण से प्राप्त करें । (ऐसा गुण तो केवल निराकार में ही हो सकता हैं)
(यजुर्वेद ३२/११)
इनके अलावा और भी अनेक मंत्र से वेदों में ईश्वर का अजन्मा, निराकार, सर्वव्यापक, अजर आदि सिद्ध होता है । जिस दिन मनुष्य जाति वेद में वर्णित ईश्वर को मानने लगेगी उस दिन संसार से धर्म के नाम पर हो रहे सभी प्रकार के अन्धविश्वास एवं पापकर्म समाप्त हो जायेगें |
…….. संकलन |
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